इस 6 जनवरी को अमेरिका में वहां की संसद के प्रांगण ‘कैपिटल हिल’ में हिंसा की घटनाएं हुई। उस समय हिंसा फैलाने के आरोप में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ट्विटर अकाउंट को ब्लॉक कर दिया। माना गया कि ट्रंप ने एक वीडियो के जरिये अपने समर्थकों को हिंसा के लिए उकसाया। यही नहीं. बाकी कई टि्वटर अकाउंट भी इस आधार पर ब्लॉक या स्थगित कर दिए गए । यूट्यूब, फेसबुक व अन्य सोशल मीडिया कंपनियों ने भी ऐसा ही किया।
उस समय ट्विटर ने डोनाल्ड ट्रंप का ट्विटर अकाउंट ब्लॉक करते हुए कहा कि ” ट्रम्प का एकाउंट 12 घंटे तक ब्लॉक रहेगा, और यदि उन्होंने चुनाव परिणामों को अस्वीकार करने वाली और उन ट्ववीट्स को डिलीट नहीं किया जो हिंसा फ़ैलाने जैसी लगतीं हैं, तो ये रोक आगे बढ़ा दी जाएगी।” साथ ही इस बयान में ट्विटर ने ये भी कहा कि “यदि ट्रम्प ट्विटर की हिंसात्मक धमकियों और चुनाव सम्बंधित झूठे प्रचार की नीति का उल्लंघन जारी रखते हैं तो उनका अकॉउंट स्थायी रूप से बंद कर दिया जायेगा।”
(Ref : https://www.nytimes.com/2021/01/06/technology/capitol-twitter-facebook-trump.html )
बात बिलकुल तर्कसंगत लगती है कि ट्विटर के अकाउंट का उपयोग हिंसा फैलाने के लिए नहीं किया जा सकता। यानि किसी भी मीडिया संस्थान के प्लेटफार्म का उपयोग किसी देश में उसकी सांवैधानिक व्यवस्था, मान्य संस्थाओं और कानून द्वारा स्थापित ढांचों और परम्पराओं को नुक्सान पहुँचाने के लिए नहीं किया जा सकता।
लेकिन क्या ट्विटर अपने इन सिद्धांतों का पालन दुनिया में हर जगह करता है? भारत में क्या हुआ? लाल किले पर जो कि भारत की अस्मिता और राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है 26 जनवरी के दिन दंगाइयों ने राष्ट्रीय ध्वज का अपमान किया। क्या ट्विटर ने लालकिले में 26 जनवरी को हुई हिंसा को लेकर ऐसा किया? क्या ट्विटर ने हिंसा और विद्वेष फैलाने वाले ट्विटर अकाउंट को ब्लॉक करने की चेष्टा तक की? यहां तक कि कुछ पत्रकारों ने जब दिल्ली पुलिस मुख्यालय के सामने एक किसान की ट्रैक्टर पलटने से हुई मृत्यु को पुलिस की गोली से होने वाली मृत्यु बताकर ट्वीट किया तो भी ट्विटर ने ना तो इनको कोई चेतावनी दी और ना इनके खिलाफ कोई और कार्यवाही की।
और तो और भारत में तो #ModiPlanningFarmerGenocide जैसा हैशटैग चलाया गया। इस हैशटैग का हिंदी अर्थ है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसानों के नरसंहार की योजना बना रहे हैं। अब इससे विद्वेषपूर्ण, हिंसा भड़काने और उकसाने वाला और नितांत झूठा प्रचार क्या हो सकता हैं? भारत में नए कृषि कानूनों को लेकर एक वर्ग आंदोलन कर रहा है। कुछ दिन पहले 26 जनवरी को हिंसा हो चुकी है। लालकिले और तिरंगे के अपमान पर समाज उद्वेलित है। ऐसे में इस तरह के हैशटैग के पीछे की मंशा समझने के लिए आपको कोई बड़ा विद्वान होने की आवश्यकता नहीं हैं। होना तो ये चाहिए था कि ट्विटर की सम्पादकीय टीम स्वयं संज्ञान लेकर इस पर कार्रवाई करती। ऐसा तो नहीं हुआ बल्कि ट्विटर ने अमेरिका से उलटबाँसी करते हुए इसे “खबरीला कंटेंट” बताया।
भारत सरकार ने ट्विटर को लिखित आदेश दिया कि किसानों के नरसंहार वाले इस हैशटैग #ModiPlanningFarmerGenocide को चलाने वाले 257 ट्विटर अकाउंट पर कार्रवाई करने के लिए कहा। कुछ घंटे के लिए तो ट्विटर ने इनमें से कुछ एकाउंट को ब्लॉक किया। लेकिन फिर पलटी मारते हुए ट्विटर के अधिकारीयों ने कहा कि इसे वह “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का” मुद्दा मानते हैं। और इस हैशटैग को चलने वाले एकाउंट को पुनः बहाल कर दिया। ट्विटर ने ये भी कहा कि ये हैशटैग ‘न्यूज़वर्दी’ यानि खबरीला है। यानि ट्विटर यहाँ शिकायतकर्ता, अभियुक्त , वकील और न्यायाधीश – चारों भूमिकाएं खुद निभाने लगा। अर्थात हर नियम कायदे से परे।
यह बात अलग है कि भारत के कड़े रुख के बाद ट्विटर ने पहले 297 और बाद के 1178 ट्विटर अकाउंट में से 97% परसेंट को ब्लॉक कर दिया है। लेकिन इनको भी जियो टेगिंग के जरिए भारत में ही ब्लॉक किया गया है। इनमें से कई अकाउंट्स अभी भी विदेशों में बाकयदा चल रहे हैं।
इस घटना से कई सवाल पैदा होते हैं।
पहला सवाल यह है कि क्या ट्विटर जैसी सोशल मीडिया कंपनियां जो लाभ के लिए काम करती हैं, उनको यह अधिकार है कि वह यह तय करें कि कोई देश कैसे चलेगा?
दूसरा प्रश्न है कि क्या ये कंपनियां भारत के कानून, भारतीय संसद, जनता द्वारा चुनी हुई सरकार और भारत की व्यवस्था से ऊपर हैं?
तीसरा सवाल कि क्या ये कंपनियां मुद्दई, वकील, मुजरिम और मुंसिफ – सारी भूमिका खुद ही अदा करेंगी ?
चौथा और सबसे बड़ा सवाल क्या भारत जैसे लोकतांत्रिक राष्ट्र की सार्वभौम सत्ता से ऊपर इन मीडिया संस्थानों को कोई अधिकार है?
कथित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम से इन कंपनियों को अपने राजनीतिक विचार और खास सोच इस तरह किसी देश पर लादने का अधिकार किसने दिया? ट्विटर के भारत में कोई 01 करोड़ 80 लाख अकाउंट हैं। इनमें से भी माना जाता है कि 20% अकाउंट्स स्वचालित बॉट्स यानी मशीनों द्वारा चलाए जाते हैं। यानी ये फेक अकाउंट है। ऐसे झूठे फरेबी अकाउंट के सहारे चलने वाले सोशल मीडिया संस्थानों को या उनके एक खास नजरिए को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सबसे बड़ा नियामक मान लिया जाने से बड़ी त्रासदी कोई नहीं हो सकती। अगर संख्या बल को ही मापदंड बनाया जाये तो 30 लाख से ज़्यादा एकाउंट तो भारत में कुछ महीने पहले चालू हुए ‘KOO’ (कू) नामक ऐप के भी हो चुके हैं।
वैसे अब सुप्रीम कोर्ट ने भी ट्विटर व अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को नोटिस भेजा है कि वह झूठ और फरेब से चलाए जाने वाली फेक न्यूज़ आदि पर अपनी स्थिति स्पष्ट करें। किसी भी सोशल मीडिया या मीडिया संस्थान को, खासकर जो लाभ के आधार पर चलाया जा रहा है, यह हक नहीं दिया जा सकता कि वह विधि द्वारा स्थापित भारतीय सरकार की अवमानना करें। यों भी भारत के संविधान में दिया गया अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार अनंतिम नहीं है। वह भी कुछ शर्तों के साथ ही लागू होता है। उसमें भी कई वर्जनाएँ हैं। इस कारण ट्विटर तथा अन्य सोशल मीडिया संस्थानों को भी उसी तराजू पर तौला जाना चाहिए जो तराजू भारत के संविधान ने बनाई है।
इस नाते इन्हें भारत के लोगों के द्वारा चुनी हुई सरकार तथा उसके द्वारा स्थापित नियमों और कायदों के अनुसार चलना आवश्यक है। अन्यथा भारत सरकार को यह पूरा हक है कि वह ट्विटर जैसे संस्थानों के दोगलेपन के खिलाफ कानून के अनुसार कार्यवाही करें और उन्हें उनके द्वारा चलाई जा रही एक खास सोच को देश पर थोपने से रोके।
आखिर में, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सही संदर्भ में देखना आवश्यक है। अमेरिका में जब 6 जनवरी को कोहराम हुआ तो वहाँ चारों ओर से सोशल मीडिया पर लगाम लगाने की आवाज़ उठाई गई। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के ‘लिबरल’ यानि उदारवादी पैरोकारों ने जोरशोर से कहा कि बोलने की आज़ादी के नाम पर समाज में विद्वेष फ़ैलाने की छूट किसी को नहीं दी जा सकती। इन मुद्दों पर पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा के विशेष सहायक रहे जोनाथन ग्रीनब्लेट ने स्पष्ट कहा कि “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, हिंसा फ़ैलाने की स्वतंत्रता नहीं है।” उन्होंने कहा कि “राष्ट्रपति (ट्रम्प) ने सोशल मीडिया के ज़रिये ज़हर फैलाया है।” श्री ग्रीनब्लेट, जो इस समय अमेरिका की एंटी डिफेमेशन लीग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं, ने कहा “सोशल मीडिया कंपनियों पर ये लाजिमी है कि वे सख्त कार्रवाई करते हुए इसे रोकें।”
(Ref: https://www.wsj.com/articles/facebook-and-twitter-take-steps-to-remove-calls-for-violence-as-protesters-storm-u-s-capitol-11609971394)
ऐसा नहीं है कि ट्विटर भारत में हो रही घटनाओं से अनजान था। स्वीडन की रहने वाली ग्रेटा थनबर्ग गलती से एक टूलकिट को अपने ट्विटर अकाउंट पर साझा कर चुकीं थी। इसमें विस्तार से बताया गया है कि कृषि कानून विरोधी प्रदर्शनों की आड़ में किस तरह भारत में विद्वेष और असंतोष फैलाया जाना चाहिए। यानि ट्विटर के प्लेटफार्म का इस्तेमाल सीधे-सीधे भारत के अंदरूनी मामलों को उलझाने के लिए हो रहा है, ये जानकारी सावर्जनिक थी ही। इस सबके बावजूद ट्विटर के अमेरिका और भारत में अलग-अलग मानदंड अपनाने को एक अंग्रेजी प्रतीक में शायद ऐसे कहा जा सकता है – ‘तुम्हारा कुत्ता तो कुत्ता, लेकिन मेरा कुत्ता तो टॉमी।