यदि केन्द्र सरकार रक्षामंत्री राजनाथ सिंह को वार्ताकार बनाए तो किसान समस्या का समाधान एक घंटे में हो जाएगा क्योंकि किसान उन पर भरोसा करते हैं। यह हम नहीं, बल्कि भारतीय किसान संघ के अध्यक्ष नरेश टिकैत कह रहे हैं। और ऐसा मानने वाले वे अकेले नहीं हैं, ज्यादातर किसान संगठन भी यही मानते हैं कि किसानों से बातचीत के लिए राजनाथ सिंह को चुना जाना चाहिए।
ऐसे में यह सवाल उठता है कि किसान, राजनाथ सिंह को संकटमोचक के रूप में क्यों देखते हैं? इस बात को समझने के लिए थोड़ा पीछे जाना होगा। अगर उससे परहेज हो तो 30 दिसंबर के बयान पर गौर करना होगा। दरअसल, उन्होंने राहुल गांधी को जवाब देते हुए कहा था “मैं उनसे ज्यादा कृषि के बारे में जानता हूं क्योंकि मैं एक किसान-मां के गर्भ से पैदा हुआ हूं। मैं एक किसान का बेटा हूं और हम किसानों के खिलाफ फैसले नहीं ले सकते। हमारे प्रधानमंत्री भी गरीब परिवार में पैदा हुए थे। मैं सिर्फ किसानों का हित चाहता हूं और कुछ कहने की जरूरत नहीं है।” यही सवाल का जवाब भी है और यही से बात शुरू भी होती है।
वह यह कि राजनाथ सिंह किसान परिवार से जुड़े हैं, इस कारण आंदोलनकारी किसान, उन पर भरोसा करते हैं। लेकिन बस यही एक कारण नहीं है। जो ज्यादा महत्वपूर्ण है, वह यह कि वे किसानों की चिंता करते हैं। इसे उन्होंने जिम्मेदारी मिलने पर साबित भी किया। मसलन जब वे कृषि मंत्री बने तो कोई बहुत लंबा, उनका कार्यकाल नहीं था। 2003 में उनको कृषि मंत्रालय का प्रभार मिला था। फरवरी 2004 में चुनाव की घोषणा हो गई थी। बावजूद इसके छोटे से कार्यकाल में उन्होंने जो काम किया, वह कृषि क्षेत्र में मील का पत्थर साबित हुआ।
जब वे कृषि मंत्री बने तो उन्होंने कृषि सुधार के तहत कृषि कर्ज पर काम किया। यह जरूरी भी था क्योंकि वैश्विक नियम के अनुसार किसानों को आने वाले दिनों में अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों से दो-दो हाथ करना था। उसके लिए जरूरी था कि उन्हें सशक्त बनाया जाए। तो बतौर कृषि मंत्री राजनाथ सिंह ने किसानों को न्यूनतम दर पर कर्ज दिलाने में जुट गए। उसके लिए तत्कालीन वित्त मंत्री जसवंत सिंह से बजट में एग्रीकल्चर लेंडिग रेट का प्रावधान कराया। इसका फायदा हर किसान को मिले, उसके लिए प्रचार-प्रसार की व्यवस्था की गई।
‘किसान चैनल’ उसी के तहत शुरू किया गया। ‘भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद’ को इसकी जिम्मेदारी दी गई। किसानों की समस्या को दूर करने के लिए ‘किसान काल सेंटर’ बनाए गए ताकि किसान, कृषि से जुड़ी समस्या का निदान सीधा विशेषज्ञयों से ले सकें। मानसून के अनियमित चरित्र को ध्यान में रखते हुए ‘कृषि आय बीमा योजना’ शुरू की गई। काश्तकार को उसकी काश्त के हिसाब से अग्रिम कर्ज मुहैया कराने के दिए ‘किसान क्रेडिट कार्ड’ लाया गया। किसान और उनसे जुड़ी समस्याओं के निदान के लिए ‘राष्ट्रीय कृषि आयोग’ बनाया गया। यही वह दौर था जब देश में पहली बार ‘राष्ट्रीय कृषि नीति’ आई। जाहिर है यह राजनाथ सिंह का जौहर था और अटल बिहारी बाजपेयी का कौशल।
वह कौशल राजनाथ सिंह को विरासत में मिला। किसानी उनके खून में थी ही। इसी कारण जब अध्यक्ष बने तो एक बदलाव किया। पारंपरिक रूप से भाजपा कार्य समिति में दो ही तरह के प्रस्ताव आया करते थे। एक राजनीतिक होता था और दूसरा आर्थिक। बतौर अध्यक्ष उन्होंने इसे बदला। वे जबतक अध्यक्ष रहे, इन दोनों के अलावा कृषि प्रस्ताव भी कार्य समिति में रखा जाने लगा। कहा जाता है कि उनके अध्यक्ष बनने के बाद भाजपा की गांवों में भी पैठ बनने लगी। किसान तेजी से जुड़े क्योंकि वे राजनाथ सिंह को अपना नुमांइदा मानते थे। वही स्थिति आज भी है। किसान, राजनाथ सिंह में अपना अक्स देखते हैं। इसी कारण उन्हें लगता है कि किसान को वही समझ सकते हैं, दूसरा कोई नहीं।