*देश की अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए व्यापार को लेकर सिस्टम में मौजूद खामियों को दूर करने के साथ साथ लोगों में सकारात्मक सोच विकसित करने की है ज़रूरत:उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया*
*देश का सिस्टम व्यापार को लेकर इतना उदासीन कि देश में बने कंप्यूटर को 5-6 साल तक टाइपराइटर के रूप में करना पड़ा निर्यात: उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया*
*छात्रों में एंत्रप्रेन्योर माइंडसेट विकसित करने की ज़रूरत ताकि देश का हर युवा जॉब सीकर्स के बजाय बने जॉब प्रोवाइडर: उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया*
*दिल्ली में उद्योगों के विकास में सबसे बड़ी बाधा डीडीए, अपने अनावश्यक नियमों से दिल्ली में नहीं पनपने दे रही उद्योग-धंधे: उद्योग मंत्री सत्येंद्र जैन*
*दिल्ली में विश्व की सबसे स्किल्ड वर्क-फ़ोर्स, दुनिया को गुणवत्तापूर्ण उत्पाद और सेवाएं देने में निभाया है महत्वपूर्ण योगदान: उद्योग मंत्री सत्येंद्र जैन*
*इज ऑफ़ डूइंग बिज़नेस के लिए केजरीवाल सरकार प्रतिबद्ध, दिल्ली के व्यापारिक समुदाय को सभी आवश्यक सहायता करेगी प्रदान: उद्योग मंत्री सत्येंद्र जैन*
*दिल्ली में हो रहा है दो दिवसीय वाणिज्य उत्सव का आयोजन, दिल्ली में निर्यात की संभावनाओं और उत्पादन में सुधार लाने के विषय पर मंथन में भाग लें रहे हैं दिल्ली के व्यापारी*
दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि देश में व्यापार को लेकर लोगों को अपनी सोच बदलने की ज़रूरत है| उन्होंने कहा कि 75 सालों में देश का एक्सपोर्ट 1.7 बिलियन डॉलर से बढ़कर 300 बिलियन डॉलर ही पहुंचा है इसके पीछे हमारी मानसिकता और सिस्टम जिम्मेदार है| और एक्सपोर्ट इतना बढ़ा इसके लिए व्यापारियों को सलाम है वर्ना सिस्टम की उदासीनता के साथ ये भी संभव नहीं था| देश का सिस्टम व्यापार को लेकर इतना उदासीन है कि जब देश में पहली बार कंप्यूटर बना तो उसके निर्यात के लिए कानून में 5-6 साल तक कानून में कोई बदलाव नहीं किया गया और कंप्यूटर को 5-6 साल तक टाइपराइटर के रूप में निर्यात करना पड़ा।
उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया व उद्योग मंत्री सत्येंद्र जैन ने दिल्ली में निर्यात के अवसरों और उत्पादन में सुधार लाने के विषय पर मंगलवार को व्यापारियों के साथ चर्चा की| इस अवसर पर उद्योग मंत्री सत्येंद्र जैन ने कहा कि दिल्ली में न तो अवसरों की कमी है और न ही जगह की कमी है| लोग दिल्ली में उद्योग-धंधे स्थापित करना चाहते है लेकिन न तो डीडीए उन्हें जमीन देती है और न ही काम करने देती है| साथ ही व्यापार को बढ़ाने में सहयोग करने के बजाय उसमे रोड़ा अटकाती है| ये उद्योग-धंधों के विकास में एक बड़ी बाधा है| उल्लेखनीय है कि देश की आज़ादी के 75वें साल में आज़ादी का अमृत महोत्सव कार्यक्रम की श्रृंखला में मंगलवार को दिल्ली सरकार का उद्योग विभाग, भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के कोलैबोरेशन के साथ 2 दिवसीय वाणिज्य उत्सव का आयोजन कर रहा है|
श्री सिसोदिया ने कहा कि सिस्टम में नवाचार को लेकर इतनी उदासीनता है कि देश में कंप्यूटर को कंप्यूटर के नाम पर निर्यात करने में में 5-6 साल लग गए| उससे पहले सिस्टम में कंप्यूटर को टाइपराइटर की श्रेणी में रखा जाता था| उन्होंने कहा कि देश की आज़ादी के 75वें साल में आयोजित वाणिज्य उत्सव में हमें ये सोचने की ज़रूरत है कि ऐसी क्या कमी रह गई जिससे हम एक्सपोर्ट के मामले में अबतक 300 बिलियन डॉलर तक ही पहुँच पाए है| और यदि व्यापार व एक्सपोर्ट को आगे बढ़ाकर लंदन, सिंगापुर के स्तर तक पहुँचाना है तो उसके लिए भविष्य में हमारा एप्रोच क्या होगा|
उन्होंने व्यापारियों को संबोधित करते हुए कहा कि देश में भविष्य में होने वाला एक्सपोर्ट को किसी डेटा के साथ नहीं समझा जा सकता| असल हकीकत इससे समझा जा सकता है कि आज आई.आई.टी, डीटीयू जैसे बड़े-बड़े संस्थानों या फिर स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों से जब ये पूछा जाता है कि आप में से कितने लोग नौकरी करना चाहते है तो 99.99% बच्चे एक स्वर में कहते है की उन्हें नौकरी करनी है|
उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि हम अपने दिल को खुश करने के लिए डेटा में कितना भी बदलाव कर ले लेकिन ये हकीकत है कि जिस देश के एजुकेशन सिस्टम का डिज़ाइन ऐसा है जहाँ पीढ़ी दर पीढ़ी को नौकरी करने का सपना दिखाया जाता हो उस देश का एक्सपोर्ट नहीं बढ़ सकता| जब हमारे संस्थानों से 99% बच्चे नौकरी पाने का सपना लेकर निकलते है तो भविष्य में हमें अपने देश का नाम वर्ल्ड ट्रेड मैप और एक्सपोर्ट मैप पर ढूँढना बंद कर देना चाहिए| क्योंकि जब देश में केवल नौकरी ढूंढने वाले ही होंगे तो कंपनी बनाने वाले कहां से आयेंगे| जब युवाओं को कंपनी बनाने सा सपना देखना ही नहीं सिखाया जाता तो एक्सपोर्ट करने वाले लोग कहां से आयेंगे|
उपमुख्यमंत्री ने आगे कहा कि हमें देश में बिज़नेस को लेकर सोच बदलनी होगी| उन्होंने जीएसटी ड्राफ्टिंग कमिटी के सदस्य के रूप में अपने अनुभवों पर बात करते हुए कहा कि हमारे देश में जीएसटी या व्यापार को लेकर अन्य कानून व्यापारियों को फेसिलिटेट करने के बजाय ये सोचकर बनाए जाते है कि व्यापारी चोरी कर रहा है| ऐसी स्थिति में कोई पैरेंट क्यों चाहेगा की उनके बच्चे व्यापार करे| वो यही चाहेंगे कि उनके बच्चे कोई बढ़िया नौकरी करें| हमें इस मानसिकता को बदलनी होगी और जमीनी हकीकत पर ध्यान देना होगा|
व्यापार और एक्सपोर्ट को बढ़ाने के लिए 3 मुख्य चीजों पर ध्यान देना होगा|
1.देश के सरकारी सिस्टम का सॉफ्टवेयर खराब है, जिसे बदलने की ज़रूरत है| ये सिस्टम किसी भी नवाचार को अपनाने की जगह उसे ठुकरा देता है| यही कारण था कि देश के पहले कंप्यूटर को कंप्यूटर के नाम से बिकने में ही 7 साल लग गए इन 7 सालों तक उसे टाइपराइटर की श्रेणी में रखा गया|
2.स्कूल कॉलेजों के सिस्टम को बदलना होगा| अभी 15-20 साल की शिक्षा में बच्चों को सिर्फ यही सिखाया जाता है कि पढ़ाई के बाद उन्हें नौकरी करनी है| हमें बच्चों को नौकरी देने वाला बनाना होगा|