लखनऊ, समाजवादी पार्टी (सपा) के मुखिया अखिलेश यादव और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया (प्रसपा) के सर्वेसर्वा शिवपाल सिंह यादव के राजनीतिक रास्ते फिर अलग -अलग हो गए. अब अखिलेश यादव सपा और उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव प्रसपा के जनधार को आगे बढ़ाने के लक्ष्य पर जुटेंगे. लेकिन क्या ऐसा करते हुए शिवपाल सिंह यादव सपा के वोट बैंक को नुकसान नहीं पहुंचाएंगे? बीते दो माह से अखिलेश यादव और शिवपाल सिंह के बीच जो तल्खी देखी गई, उसे लेकर अब यह सवाल पूछा जा रहा है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दोनों के बीच असली जंग वोट बैंक के कब्जे को लेकर होगी और इसकी शुरुआत मुलायम सिंह यादव के बयान से भी हो चुकी है.
सपा के संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने शुक्रवार को पार्टी के प्रदेश मुख्यालय में विभिन्न जिलों से मिलने आए नेताओं और कार्यकर्ताओं को संबोधित किया. इसी दौरान उन्होंने कि यूपी में लड़ाई दो पार्टियों सपा और भाजपा के बीच है. इसके अलावा अब कोई नहीं है. शिवपाल सिंह के अपनी पार्टी और संगठन को मजबूत करने के क्रम में नौ फ्रंटल संगठनों के प्रदेश अध्यक्षों की घोषणा करने के कुछ देर बाद ही मुलायम सिंह यादव ने यह ऐलान किया. राजनीति के जानकारों के अनुसार सपा में अखिलेश यादव के खिलाफ विधायकों की नाराजगी और शिवपाल सिंह यादव द्वारा पार्टी के हो सकने वाले नुकसान को संज्ञान लेते हुए ही सपा के संरक्षक मुलायम सिंह यादव को शुक्रवार अचानक ही सामने आए. ताकि अखिलेश यादव से खफा पार्टी नेता शिवपाल सिंह यादव के खेमे का रुख ना करें. अगर इस समय अखिलेश से खफा लोग शिवपाल से जुड़ेंगे तो पार्टी का नुकसान होगा.
सपा मुखिया अखिलेश यादव को पता हो या ना हो, मुलायम सिंह जानते हैं कि किसी भी राजनीतिक दल का राजनीतिक भविष्य जिस बात से तय होता है, वह यह है कि वोट बैंक पर कब्जा किस खेमे का हुआ. ऐसे में अखिलेश यादव और शिवपाल सिंह यादव के दो खेमों में बंट चुके यादव परिवार के बीच भी अभी असली लड़ाई तो पार्टी के बेस वोट बैंक (यादव+ मुस्लिम) को लेकर होनी है और यह लड़ाई जीतने वाला ही असली विजेता होगा. अब यह देखना होगा कि सपा के संस्थापक रहे शिवपाल सिंह यादव और अपने पिता के सहयोग से सपा के मुखिया बने अखिलेश यादव कैसे सपा के आधार वोट बैंक को पाने और बचाने के लिए संघर्ष करेंगे? चाचा और भतीजे के इस संघर्ष में यादव और मुस्लिम समाज किसे स्वीकार करेगा, इसे लेकर अटकले लगाई जा रही हैं.
यूपी में 8 से 9 प्रतिशत के बीच यादव वोटर हैं. मुलायम सिंह यादव उनके राजनीतिक संरक्षक के रूप में स्थापित हैं. अब तक यादवों के एकतरफा वोट एसपी को मिलते रहे हैं. लेकिन अब जब अखिलेश यादव और शिवपाल सिंह अलग-अलग पालों में होंगे तो यादव वोटरों को इनमें से एक को चुनना होगा. यूपी में यादव बेल्ट के प्रभावशाली नेताओं से बात करने पर साफ होता है कि उनके लिए मुलायम अब भी सम्मानित हैं, लेकिन अखिलेश के साथ उनकी सहानुभूति मुलायम सरीखी नहीं है. इसीलिए यादव बाहुल्य क्षेत्रों में ही विधानसभा चुनावों के दौरान अखिलेश का करिश्मा नहीं चला. अब रही बात सपा के मुस्लिम वोट बैंक की तो विधानसभा चुनावों में मुस्लिम समाज के वोट पाने के बाद भी अखिलेश यादव ने आजम खान और मुस्लिम नेताओं की अनदेखी की. उसे लेकर मुस्लिम समाज में अखिलेश यादव के प्रति नाराजगी है. शिवपाल सिंह यादव यह जानते है, इसलिए वह आजम खान से मिलने जेल भी गए और अब वह आजम खान के साथ मिलकर राज्य में लगभग 19 प्रतिशत मुस्लिम वोटर्स को अपने पाले में लाने का प्रयास करेंगे. शिवपाल के ऐसे प्रयासों का मुकाबला अखिलेश को करना है ताकि सपा के वोट बैंक में सेंध ना लगने पाए. इसके लिए वह शुक्रवार को मुलायम सिंह को आगे लाये. अब देखना यह है कि मुलायम सिंह को आगे लाकर वह कैसे सपा के वोट बैंक को शिवपाल से बचायेंगे.