लखीमपुर।जंगल में थारू महिलाओं को आत्म निर्भर बनाने के लिए समूह से समृद्धि ला रही इस महिला को देश के राष्ट्रपति भी कर चुके हैं सम्मानित।उत्तर प्रदेश के सबसे बड़ी आबादी वाले जिले लखीमपुर खीरी जिले पलिया ब्लाक में आदिवासी जनजाति थारू क्षेत्र के गोबरौला गांव की आरती राना ने हथकरघा का प्रशिक्षण लेने के बाद गांव की महिलाओं का समूह बनाकर उन्हें हथकरघा उद्योग के काम में दक्ष किया और आज वह 15000 महिलाओं को रोजगार दे चुकी हैं। आरती राना से जुड़ी कुछ महिलाएं समूहों में काम कर रही हैं तो कुछ अपने घर पर ही यह कार्य कर रोजगार पा रही हैं।
आरती राना ने नमामि भारत से बात करते हुए बताया कि 1997 में हथकरघा का प्रशिक्षण लिया था। इसके बाद 2003 में गांव की ही 12 महिलाओं का समूह बनाकर उन्होंने काम की शुरूआत की। शुरूआती दिनों में रुपयों की कमी और कच्चे माल की दिक्कतें आईं। वहीं बाजार न होने के कारण तैयार उत्पाद की बिक्री में भी दिक्कत रही।
2006 में डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के सहयोग से आरती राना ने और समूहों को विस्तार किया। मौजूदा समय में 1000 समूह तैयार हो गए हैं, जिनमें 15000 महिलाएं प्रशिक्षण लेकर रोजगार कर रही हैं।आरती राना आगे बताती हैं कि ग्रामीण आजीविका मिशन ने जनजाति महिलाओं के जीवन में नई रौशनी बनकर आया है।इसके माध्यम से उन्हें उत्पादों को बेहतर बनाने का प्रशिक्षण मिलने के साथ- साथ उनको बाज़ार भी मुहैया कराया जा रहा है।जिसके चलते आज उनके उत्पादों की भारी डिमांड रहती है।
मूंज कि डलिया की विदेशों में भारी डिमांड.
शुद्ध व प्राकृतिक संसाधनों से तैयार मूंज की बनी डलिया और उसकी उकेरी गई चित्रकारी लोगो को बेहद पसंद आती हैं।यही ख़ास वजह हैं कि डलिया का मनचाहा दाम मिलता है।और लोगो इसका एडवान्स ऑर्डर देते हैं।
पांचवी पास हैं आरती राना.
आरती ने बताती है कि वो पारिवारिक समस्याओं के चलते महज कक्षा 5 तक ही पढ़ाई कर पाई।लेकिन उनके हांथो की कला और उनके हुनर को देख कर लोग आज पीएचडी कर रहें हैं।इस लिए उन्हें अपनी पढ़ाई को लेकर ज़रा भी अफ़सोस नहीं है।