सीतापुर।ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका के आधारभूत गतिविधियों में बकरी पालन का महत्वपूर्ण योगदान है। सीतापुर जिले में लगभग पांच लाख से अधिक बकरियां पाली जाती हैं, जो की कम जोत के कृषक , भूमिहीन कृषक व ग्रामीण मजदूरों के जीवकोपार्जन का महत्वपूर्ण आधार है लेकिन बकरियों में अधिक मृत्यु दर से बकरी पालकों को समय-समय पर नुकसान उठाना पड़ता है। कृषि विज्ञान केंद्र – द्वितीय , कटिया द्वारा बकरी पालन में अधिकतम लाभ अर्जित करने हेतु अनवरत विभिन्न कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं जैसे बकरियों में नस्ल सुधार, टीकाकरण ,आहार प्रबंधन व परजीवी नियंत्रण इत्यादि पर प्रसार गतिविधियों के तहत प्रशिक्षण कार्यक्रम , स्वास्थ्य शिविर व प्रदर्शन कराए जा रहे हैं। इसी क्रम में बकरियों में परजीवी नियंत्रण पर प्रशिक्षण व प्रदर्शन कार्यक्रम के तहत कृषि विज्ञान केंद्र के पशुपालन वैज्ञानिक डॉ आनंद सिंह ने बताया कि बकरियां में परजीवी संक्रमण मुख्य रूप से गंदे पानी, दूषित चारे के माध्यम से शरीर में प्रवेश करते हैं तथा आंत की श्लेष्मा झिल्ली से चिपक कर उस पशु पर पूर्ण रूप से निर्भर हो जाते हैं जिससे बकरियां में दिन प्रतिदिन कमजोरी होती चली जाती है । रोग ग्रस्त बकरियां बदबूदार दस्त जिसमें म्यूकस आंत की श्लेष्मा झिल्ली और रक्त आ सकता है। संक्रमित बकरी में खून की कमी तथा भूख की कमी हो जाती है । कभी-कभी बकरियां में निचले जबड़े के पास सूजन आ जाती है ये सभी लक्षण यह बताते हैं कि हमारी बकरी में परजीवी का संक्रमण है।
परजीवी संक्रमण से बचाव के लिए बकरी पालकों को अपनी बकरियों को ऐसी जगह पर ना चरायें जहां पर जल भराव हो और संक्रमण होने की संभावना हो, साफ व स्वच्छ पानी पीने को दें तथा बकरियों को समय-समय पर तीन से चार महीने के अंतराल पर परजीवी नाशक दवा अवश्य दें। विशेष कर वर्षा ऋतु शुरू होने से पहले और वर्षा ऋतु खत्म होने के बाद कृमिनाशक नाशक दवा अवश्य दें।कृमिनाशक नाशक दवा मे अंतः परजीवी के लिए- एल्बेंडाजोल ,फेनबेंडाजोल,मोरंटल टाइट्रेट ऑक्सीक्लोजेनाइट , ट्राइकलैबेडाजोल इत्यादि तथा वाह्य परजीवी के लिए डेल्टामैथेरिन साइबरमेथ्रीन का प्रयोग कर सकते हैं निम्न दवा को पशुपालक भाई पशु चिकित्सक की सलाह के अनुसार उचित खुराक दें।