मौत से ठन गई
ठन गई
मौत से ठन गई !
जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था
रास्ता रोक कर खड़ी हो गयी
यों लगा जिंदगी से बड़ी हो गयी
अटल बिहारी वाजपेयी जी की ये खूबसूरत पक्तिंया आज सच हो गयी। 93 साल के वाजपेयी जी आज हमें अलविदा कह गए। वाजपेयी जी ओजस्वी वक्ता, मंझे हुये राजनीतिज्ञ तो थे ही साथ ही उन्होंने अपने अंदर छिपे कवि को कभी मरने नहीं दिया। अपनी कविताओं के जरिये बड़ी आसानी से वाजपेयी जी अपनी मन की अभिव्यक्ति किया करते थे। मेरी इक्यावन कविताएं वाजपेयी जी प्रसिद्ध काव्यसंग्रह है। वाजपेयी जी को काव्य रचनाशीलता और रसास्वाद के गुण विरासत में मिले हैं। उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी ग्वालियर में अपने समय के जाने-माने कवि थे। वाजपेयी जी का पारिवारिक वातावरण ही साहित्यिक एवं काव्यमय रहा। और यही एक बड़ी वजह थी कि उनके संघर्षमय जीवन , परिवर्तनशील परिस्थितियां, राष्ट्रव्यापी आंदोलन, जेल-जीवन आदि अनेक आयामों के प्रभाव और अनुभूति ने काव्य में हमेशा ही अभिव्यक्ति पायी।
राजनीतिक सफर
वाजपेयी जी भारतीय जनसंघ की स्थापना करने वालो में से एक हैं। 1968 से 1973 तक वो राष्ट्रीय अध्यक्ष थे । 1955 में वाजपेयी जी ने पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा। परिस्थियां अनुकूल नहीं थी और उन्हें हार मिली।
1957 में बलरामपुर (उत्तर प्रदेश) से चुनाव लड़ा और जनसंघ प्रत्याशी के तौर पर विजयी होकर लोकसभा पहुंचे।
1957 से 1977 तक जनता पार्टी की स्थापना तक, मतलब लगातार 20 साल तक वाजपेयी जी जनसंघ के संसदीय दल के नेता रहे। 1977 से 1979 तक विदेश मंत्री रहे और विश्व पटल पर भारत की मजबूत छवि बनाने में बहुत हद तक कामयाबी पायी।
1980 में वाजपेयी जी ने जनता पार्टी से असंतुष्ट होकर जनता पार्टी छोड़ दी और भारतीय जनता पार्टी की स्थापना में मदद की। लिहाजा 1980 में भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी वाजपेयी जी को ही दी गयी।
दो बार राज्यसभा के लिए चुने गए। लोकतंत्र के सजग प्रहरी वाजपेयी जी 1996 में प्रधान मंत्री बने लेकिन बतौर प्रधानमंत्री उनका कार्यकाल महज 13 दिन का था। 1998 में वाजपेयी जी दोबारा प्रधानमंत्री बनें । 13 दलों की गठबंधन वाली एनडीए की सरकार बनीं। गठबंधन सरकार की अपनी मजबूरियां होती हैं बावजूद इसके वाजपेयी जी के नेतृत्व में देश ने प्रगति के कई आयाम छुए। 2004 में इंडिया शाइनिंग का नारा दिया लेकिन किसी भी राजनीतिक पार्टी को बहुमत नहीं मिली और वामपंथी के समर्थन से यूपीए की सरकार बनी। एनडीए विपक्ष में बैंठी।
सम्मान
1992 में वाजपेयी जी को पद्म विभूषण सम्मान से सम्मानित किया गया।
1993 में वाजपेयी जी को कानपुर विश्वविद्धालय से डॉक्ट्रेट की उपाधि मिली।
1994 में लोकमान्य तिलक अवार्ड से सम्मनित किया गया।
1994 में पंडित गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।
1994 में सर्वश्रेष्ठ सांसद का सम्मान भी वाजपेयी जी को मिला।
2015 में सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
2015 में बांग्लादेश की ओर लिबरेशन वार अवार्ड से सम्मानित किया गया।
आज भले ही हमारे बीच वाजपेयी जी नहीं है। लेकिन ये पक्तियां हमारे साथ हमेशा रहेंगी
मौत की उमर क्या है ? दो पल भी नहीं,
जिन्दगी का सिलसिला आजकल का नहीं ।
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं,
लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं ?…
-सुप्रिया शर्मा