दिग्विजय चतुर्वेदी। केशव प्रसाद मौर्य ने बतौर उप-मुख्यमंत्री जो किया है, वह अद्भुत और ऐतिहासिक है। सड़क के बारे में उनकी तरह किसी ने नहीं सोचा। अगर किसी ने सोचा तो बस इतना कि सड़कों से पैसा कैसे बनाया जाए। यह किसी ने नहीं सोचा कि सड़कों के जरिए सूबे को खुशहाल कैसे बनाया जाए। केशव प्रसाद मौर्य ने सोचा। सड़क तकनीक का महाकुंभ उसी की देन है। यह अपनी तरह का दुनिया का पहला सम्मेलन था।
केशव प्रसाद मौर्य पर आई किताब ‘केशव प्रयास’ में यही दावा किया गया है। उसके मुताबिक सड़क तकनीक के महाकुंभ से लेकर प्रयागराज के कुंभ तक जो व्यवस्था देखने की मिली, वह केशव के नजरिए की देन है। उनकी वजह से लोक निर्माण विभाग का नया स्वरूप सामने आया है। एक दौर था जब यह विभाग भ्रष्टाचार के दलदल में डूबा था। उसे बाहर निकालने का काम केशव मौर्य ने किया। किताब की माने तो कुर्सी पर बैठते ही उन्होंने विभाग को साफ करने का मन बना लिया था। 23 मार्च 2017 का शासनादेश उनके इरादे का प्रमाण है। चाणक्य, बाज और विश्वकर्मा उनकी सोच का ही परिणाम है।
किताब के मुताबिक खाद्य प्रसंस्करण विभाग में भी कामकाज की संस्कृति बदल गई है। इसी वजह कृषि खेती-बाडी से आगे निकल चुकी है। किसान खेती के अलावा कृषि के अन्य साधनों से भी धनार्जन कर लगे हैं। किताब में किसानी के नवाचारों के बारे में बताएगा। बाकायदे केस स्टडी लिखी गई है। उससे यह भी जाहिर होता है कि केशव मौर्य बहुत योजनाबद्ध तरीके से किसानों दशा सुधारने में लगे हैं। इसके जरिए स्वरोजगार का बिगुल भी बजाने में वे जुटे है।
कम से कम ‘केशव प्रयास’ में तो पत्रकार और लेखक जितेन्द्र चतुर्वेदी ने तो यही दावा किया है। उन्होंने जो लिखा है, अगर उसकी माने तो कहना यह चाहिए कि सूबे की तस्वीर उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की वजह से बदल रही है। लेखक ने तो कई जगह हद ही कर दिया है। वह इस लिहाज कि सूबे में जो कुछ अच्छा है, वह सब केशव का कमाल है।
कई बार किताब को पढ़ते हुए लगता है कि लेखक ने बहुत सी बातों को नहीं लिखा है। हालांकि यह तथ्य भी है। मसलन सूबे के राजनीतिक गलियारों में जो जोर आजमाईश के किस्से चल रहे हैं, किताब में वे नदारद है। लेखक ने किताब को बस केशव प्रसाद मौर्य के कामकाज तक ही सीमित रखा है।