पति पत्नी के मामले पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर दोहराया है कि महिला किसी की निजी संपत्ति नहीं है. इसलिए पत्नी को उसके पति के साथ जोर जबरदस्ती के साथ रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और हेमंत गुप्ता की पीठ ने एक व्यक्ति द्वारा दायर की गयी याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि तुम क्या सोचते हो? क्या एक महिला एक गुलाम है जो हम इस तरह के आदेश को पारित कर सकते हैं? क्या एक पत्नी एक गुलाम है जिसे कोर्ट आपके साथ जाने के लिए आदेश कर सकती है.
क्या है मामला ?
दरअसल यह पूरा मामला उत्तर प्रदेश के गोरखपुर का है. अप्रैल 2019 में फैमिली कोर्ट ने हिंदू विवाह ऐक्ट के सेक्शन 9 के तहत पति के हक में फैसला सुनाया था. महिला ने दावा किया था कि उसका पति उसे साल 2013 में शादी बाद से ही दहेज के लिए प्रताड़ित करता है. कोर्ट ने पति को 20 हजार रुपये महीने गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था. इसके बाद पति ने दांपतिक अधिकारों की बहाली के लिए याचिका दायर की थी.
शख्स ने कोर्ट के फैसले के बाद हाई कोर्ट में गुहार लगायी. शख्स की दलील थी कि जब वो अपनी पत्नी के साथ रहने के लिए तैयार है तो फिर गुजारा भत्ता क्यों दिया जाए? हाई कोर्ट इस याचिका को खारिज कर दिया था. इसके बाद शख्स ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, जहां बेंच ने सख्त टिप्पणी करते हुए याचिका खारिज कर दी. वहीं इस मामले में महिला की ओर से दलील दी गयी थी कि पति गुजारा भत्ता की राशि से बचने के लिए इस तरह का खेल खेल रहा है. महिला के वकील ने कहा कि गुजारा भत्ता देने के आदेश बाद ही पति ने फैमिली कोर्ट का रुख किया.