लखनऊ, छोटे दलों से गठबंधन कर उत्तर प्रदेश में चुनावी वैतरणी पार करने का मंसूबा पालने वाले समाजवादी पार्टी (सपा) के मुखिया अखिलेश यादव से उनके साथी दल छिटकने लगे हैं। सीटों के बंटवारे में हो रही देरी के चलते ही प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (प्रसपा) के मुखिया शिवपाल सिंह यादव ने अखिलेश से दूरी बना ली हैं, जबकि सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने ऐलान कर दिया है कि भाजपा, सपा, कांग्रेस और बसपा में से जो भी दल उनकी शर्तें स्वीकार करने को तैयार होगा उसके साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ेंगे। इसी प्रकार राष्ट्रीय लोकदल सहित कई अन्य छोटे दल भी सीटों के तालमेल करने को लेकर अखिलेश यादव के रुख से दुखी हैं। ऐसे में यदि अखिलेश यादव ने छोटे दलों के साथ सीटों का तालमेल जल्द से जल्द फाइनल नहीं किया तो उनके साथ खड़े होने का दावा करने वाले छोटे अन्य उनसे छिटक जाएँगे।
ऐसा होने पर सपा मुखिया अखिलेश यादव की समूची चुनावी रणनीति ही गड़बड़ा जाएगी। अखिलेश यादव ने सूबे में सक्रिय छोटे दलों से गठबंधन कर बीजेपी का मुकाबला करने की रणनीति तैयार की थी। जिसके तहत उन्होंने प्रसपा, रालोद, महान दल, पीस पार्टी, अपना दल (कृष्णा पटेल) और सुभासपा से साथ मिलाकर चुनाव लड़ने की योजना तैयार की थी। इन दलों के अलावा आम आदमी पार्टी को अपने साथ लेकर चुनाव लड़ने की संभावनाओं पर भी अखिलेश यादव चर्चा शुरू की थी। परन्तु अखिलेश यादव के साथ खड़े सभी क्षेत्रीय छोटे दलों की अधिक से अधिक सीटें हासिल करने की लालसा के चलते सीटों के बंटवारे का मसला अब तक सुलझ नहीं सका। जबकि विधानसभा चुनाव की तारीख नजदीक आने के साथ ही बीजेपी, कांग्रेस और बसपा की चुनावी गतिविधियों ने तेजी पकड़ ली है। खुद अखिलेश यादव भी जनता का मूड भांपने के लिए समाजवादी विजय रथयात्रा लेकर निकल पड़े हैं। अखिलेश यादव के इस रुख को देख कर सबसे पहले आम आदमी पार्टी का उनसे मोहभंग हुआ और आप के नेताओं ने अखिलेश यादव से दूरी बनाकर अकेले ही चुनाव लड़ने का फैसला ले लिया। इसी के बाद अखिलेश यादव के चाचा और प्रसपा के मुखिया शिवपाल सिंह यादव ने अपनी अलग लाइन पकड़ते हुए समाजवादी परिवर्तन रथयात्रा शुरू कर दी। रालोद मुखिया जयंत चौधरी भी सपा के साथ सीटों के तालमेल की चिंता करने के बजाए पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अकेले ही चुनावी सभाएं कर रहे हैं।
इसके बाद भी अखिलेश यादव ने प्रसपा, रालोद, महान दल, पीस पार्टी, अपना दल (कृष्णा पटेल) और सुभासपा से सीटों के तालमेल को लेकर बातचीत शुरू नहीं की तो सुभासपा के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने ऐलान कर दिया है कि भाजपा, सपा, कांग्रेस और बसपा में से जो भी दल उनकी शर्तें स्वीकार करने को तैयार होगा उसके साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ेंगे। हालांकि ओमप्रकाश राजभर सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की मंशा रखते हैं, इसे लेकर उनकी अखिलेश यादव के साथ कई दौर ही वार्ता भी हुई। इसके बाद भी अखिलेश यादव उनके साथ हुई सहमति के आधार पर सीटों के बंटवारे को फाइनल नहीं किया। जबकि आखिलेश को यह पता है कि पूर्वांचल के 29 जिलों में लगभग 146 सीटों पर राजभर वोट बैंक अच्छी खासी संख्या में हैं। इसीलिए उन्होंने ओमप्रकाश राजभर को अपने साथ जोड़ने की पहल की थी। फिर भी अखिलेश ने ओमप्रकाश को वोटिंग में रखा। तो ओमप्रकाश का धैर्य खत्म हो गया और उन्होंने ऐलान कर दिया कि आगामी 27 अक्टूबर तक बीजेपी , सपा, कांग्रेस और बसपा में से जो भी दल उनकी शर्तें स्वीकार करने को तैयार होगा उसके साथ गठबंधन की घोषणा रैली में की जाएगी। अब इसी तर्ज पर अखिलेश से जुड़े रालोद, पीस पार्टी, महान दल, अपना दल (कृष्णा पटेल) अब अखिलेश से नाता तोड़कर कांग्रेस से नाता जोड़ने की सोचने लगे हैं। अखिलेश यादव का इन दलों के साथ सीटों के बंटवारे को फाइनल ना करने की वजह से यह राजनीतिक स्थितियां बनी है। अब यदि मौके की नजाकत को भांप कर अखिलेश यादव ने फैसला नहीं लिया तो अखिलेश के साथी उनका साथ छोड़ देंगे, सूबे के राजनीतिक विशेषज्ञों का यह मत है। इन विशेषज्ञों का कहना है कि वर्तमान में अखिलेश यादव के साथ में अनुभवी नेताओं का आभाव है। मुलायम सिंह यादव बीमारी हैं आजम खान जेल में हैं, शिवपाल सिंह यादव साथ नहीं हैं। ऐसे में अखिलेश यादव समय से फैसले नहीं ले पा रहे हैं। इसी वजह से सीटों के बंटवारे में विलंब हो रहा है और जिन छोटे दलों के भरोसे अखिलेश से चुनावी वैतरणी पार करने का सोचा था वह साथी ही उनसे दूर होने की सोचने लगे हैं।