लखनऊ। लखनऊ के बड़े अस्पताल एसजी पी जी आई में बड़े पैमाने पर भर्तियों में घोटाले की ख़बर मिल रही है। पिछले कुछ सालों में हुई भर्तियों में भाई भतीजावाद से लेकर करप्शन के मुद्दे भी सामने आ रहे हैं। इन मनमाफ़िक और घोटालों के द्वारा हो रही भर्तियों से संजय गाँधी पीजीआई के अन्य लोगों के प्रति गहरी नाराजगी चल रही है। भर्तियों में अयोग्य लोगों और पीजीआई के मठाधीशों के चहेतों और सगे संबंधियों को भरा जा रहा है जबकि योग्य लोगों को इंटरव्यू के लिए भी नही बुलाया जा रहा है। यही नही यह भी पता चला है कि अपने चहेते लोगों की भर्तियाँ करने के लिए एसजीपीजीआई के अधिकारी लोगों ने मेडिकल काउंसिल आॅफ इंडिया द्वारा निर्धारित भर्ती प्रक्रिया के नियमों को भी ताक पर रख दिया है।
क्या है पूरा मामला
दरअसल जुलाई माह में संजय गाँधी पोस्ट ग्रैजुएट इंस्टीट्यूट में जुलाई 2017 में असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोशिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर पदों की वैकेंसी निकाली गई थी जिसकी भर्ती प्रक्रिया में धांधली का आरोप लग रहा है। इन पदों पर जिन जिन कैंडिडेट को शाॅटलिस्ट किया गया है वो प्रक्रिया भी संदेह के दायरे में है।
कैसे मिली जानकारी
नमामि भारत एक मेल के जरिए यह जानकारी मिली है कि इन भर्तियों में पहले ही कैंडिडेट्स का सलेक्शन हो चुका है बाकी भर्ती प्रक्रिया तो एक दिखावा मात्र है। किसी अज्ञात नाम से भेजे गए इस इ-मेल में यह दावा किया गया है कि अपने चहेतों को इन पदों पर नियुक्त करने के लिए मेडिकल काउंसिल आॅफ इंडिया के नियमों को ताक पर रख दिया गया है। इस मेल में भेजने वाले ने पहले से नियुक्ति पाने वाले के नाम भी दिए हैं। हम उन नामों का खुलासा इसलिए नहीं कर रहे हैं कि हम यह देखना चाहते हैं कि जब फाइनल नियुक्तियाँ हों जाएंगी तो वो लिस्ट कितनी सही निकलती है।
फिलहाल आपकी जानकारी के लिए बता दें कि मेडिकल काउंसिल आॅफ इंडिया यानि MCI के अनुसार पीजीआई या एम्स में असिसटेंट प्रोफेसर की भर्तियों के लिए कैंडिडेटस को संबंधित विषय में पीएचडी के साथ साथ 3 साल का पोस्ट पीएचडी का अनुभव भी होना चाहिए लेकिन पीजीआई प्रशासन ने इन भर्तियों में पहले से फिक्स कैंडिडेट्स को “मैनेज” करने के लिए उनकी योग्यता के अनुसार ही छूट दे दी है। पूरी जानकारी आप इस मेल को पढ़कर जान सकते हैं।
इस संबंध में हमने जब पीजीआई के डाइरेक्टर से संपर्क स्थापित करने की कोशिश की तो वो इस मामले पर बात करने को तैयार नही हुए। उनका काॅल किसी सहयोगी के नंबर पर फारवर्ड किया जाता रहा।