नई दिल्ली। दिल्ली भाजपा अध्यक्ष श्री मनोज तिवारी ने कहा है कि पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के निधन से भाजपा परिवार ही नहीं पूरे देश में लोगों को आघात पहुंचा है। युवा अवस्था में स्वतंत्रता संग्राम से प्रारम्भ उनके राजनीतिक संघर्ष में अनेक ऐसे चुनौतीपूर्ण अवसर आये जिनके चलते कोई साधारण व्यक्तित्व होता तो पथ से डगमगा जाता पर अटल जी एक अटल पुरूष की तरह हर विपरीत परिस्थिति का सामना करने के बाद और अधिक निखरे।
डाॅ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी एवं पंडित दीनदयाल उपाध्याय के साथ जनसंघ की स्थापना हो या फिर श्री मोरारजी देसाई सरकार एवं जनता पार्टी से वैचारिक मतभेदों के बाद अलग होकर भारतीय जनता पार्टी की स्थापना, अटल जी ने अटल निर्णय लिये और उनके राजनीतिक परिश्रम के बल पर 1999 से 2004 के बीच उनके नेतृत्व में पहली पांच वर्षीय गैर कांग्रेसी सरकार देश में चली। जन नायक श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने जहां विपक्ष में रहकर एक ओजस्वी वक्ता के रूप में अपनी पहचान बनाई वहीं एक प्रधानमंत्री के रूप में उनके द्वारा देश को दी गई योजनाओं, सर्वशिक्षा अभियान एवं ग्रामीण सड़क योजना ने उन्हें राष्ट्रनायक के रूप में चिरस्मरणीय पहचान दी।
“जन नायक श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने जहां विपक्ष में रहकर एक ओजस्वी वक्ता के रूप में अपनी पहचान बनाई वहीं एक प्रधानमंत्री के रूप में उनके द्वारा देश को दी गई योजनायें सर्वशिक्षा अभियान एवं ग्रामीण सड़क योजना ने उन्हें राष्ट्रनायक के रूप में चिरस्मरणीय पहचान दी – मनोज तिवारी”
श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने जहां गौरक्षा एवं राम मंदिर आंदोलनों के दौरान देश के जनमानस को प्रभावित किया वहीं भारत को परमाणु शक्ति बनाने एवं डाॅ. अब्दुल कलाम को भारत का राष्ट्रपति बनवाने का निर्णय लेकर उन्होंने पूरे राष्ट्र का दिल जीत लिया।
दिल्ली भाजपा अध्यक्ष ने कहा है कि संयुक्त राष्ट्र में उनका हिन्दी संबोधन हो या फिर उनकी कविताओं का संग्रह, अटल जी की वाणी भारतीयों को मंत्रमुग्ध करती रही है और आज उनकी मृत्यु की जानकारी मिलते ही मेरे मन को उनकी कविता मौत से ठन गई, कौंध गई। कविता की चार पंक्तियां आज उनके शारीरिक रूप से हमारे बीच में न रहने के बाद भी हमें उस चेतना का, उस संकल्प का एहसास कराती हैं, जिसके साथ वह अपना जीवन जीते थे।
मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
जिंदगी सिलसिला, आज कल की नहीं।
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं,
लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं?