संतोष तिवारी। बिहार की तरह बंगाल चुनाव में भी कांग्रेस और वाम दल उस गठबंधन का हिस्सा होंगी जो सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस को चुनौती देगी. बिहार की स्थिती से अलग महागठबंधन को सिर्फ सत्ताधारी गठबंधन से जूझना पड़ा था क्योंकि बाकी सब तो वोटकटवा साबित हुए. बंगाल में लड़ाई कुछ अलग है क्योकि यहां कांग्रेस और लेफ्ट को ममता बनर्जी के साथ साथ बीजेपी से मुकाबला करना होगा जो बिहार से अलग होगा. बिहार में बीजेपी सत्ताधारी गठबंधन एनडीए के बैनर तले चुनाव लड़ी थी. हालांकि, आरजेडी से महज एक सीट कम आने के कारण सबसे बड़ी पार्टी नहीं बन सकी.
सबसे खास बात तो ये है कि पश्चिम बंगाल के साथ ही केरल में भी विधानसभा के चुनाव होने हैं और वहां कांग्रेस और लेफ्ट एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ने जा रहे हैं और केरल चुनाव में अगर किसी की सबसे ज्यादा दिलचस्पी होगी तो वो है राहुल गांधी क्योंकि राहुल फिलहाल केरल के वायनाड से ही सांसद हैं.
बंगाल में विधानसभा चुनाव से पहले चुनावी गुटबाजी शुरू हो गई है। सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा कि उनकी पार्टी का मुख्य मकसद आगामी पश्चिम बंगाल चुनावों में बीजेपी को हराना है। लेकिन इसके लिए वह तृणमूल कांग्रेस को साथ नहीं लेना चाहते क्योंकि ममता बनर्जी सरकार के खिलाफ लोगों में काफी नाराजगी है। इसके पीछे एक रणनीति है जिसका खुलासा भी किया गया, मार्क्सवादियों का कांग्रेस और अन्य वाम दलों जैसे पारंपरिक सहयोगियों के अलावा एनसीपी और आरजेडी जैसे गैर-वाम सहयोगियों के साथ चुनावी गठबंधन होगा। लेफ्ट के मुताबिक तृणमूल सरकार के खिलाफ लोगों की भावना इतनी गहरी है कि बीजेपी विरोधी सभी दलों की कोई एकता सिर्फ बीजेपी को ही अधिक मदद करेगी। यह गठबंधन नुकसानदेह होगा।
बिहार चुनाव में कांग्रेस के प्रदर्शन को लेकर राहुल गांधी की बड़ी फजीहत हुई. महागठबंधन की अगुवाई करने वाली आरजेडी के नेता तो राहुल गांधी को पानी पी पीकर अब तक कोस रहे हैं लेकिन बंगाल में लेफ्ट नेताओं का लालच अलग है तीन दशक से ज्यादा सत्ता काबिज रहने के बाद भी इस चुनाव में ये तीसरे नम्बर की पार्टी बनने के लिए सभी तरह के फार्मुले अपना रहे है उसमें एक कांग्रेस से गठबंधन करना भी शामिल है
बंगाल को लेकर तो पहले से ही साफ था कि कांग्रेस की राह ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस से अलग होगी लिहाजा चुनावी समझौते की कोई गुंजाइश नहीं है ये इसलिए नहीं कि 2019 के आम चुनाव में ऐसा नहीं हुआ था, बल्कि इसलिए क्योंकि अधीर रंजन चौधरी को कांग्रेस नेतृत्व ने सूबे में पार्टी की कमान सौंप दी थी. ये अधीर रंजन चौधरी ही रहे जो 2011 में भी कांग्रेस के टीएमसी के साथ गठबंधन के कट्टर विरोधी रहे है
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की एंट्री से राजनीतिक माहौल गर्म होता जा रहा है. ममता बनर्जी द्वारा ओवैसी पर निशाना साधे जाने के बाद अब पश्चिम बंगाल इमाम एसोसिशन ने कहा है कि वो राज्य में एएमआईएम की राजनीतिक एंट्री का विरोध करेगा. हालांकि राज्य में तृणमूल के अलावा सीपीएम की तरफ से भी आरोप लगाया जा चुका है ओवैसी के पीछे बीजेपी का समर्थन है.
लेकिन सिर्फ ओवैसी ही नहीं है शिवसेना कोलकाता, हुगली, दमदम समेत कई इलाकों में अपने उम्मीदवार खड़े करेगी, साथ ही जदयू लगभग पचास सीटों पर अपनी ताकत आजमाएगा। पार्टी ने सीटों की संख्या को लेकर मोटे तौर पर यह मन बनाया है। आखिरी तौर पर जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह को यह फैसला लेना है कि पश्चिम बंगाल में कितनी सीटों पर पार्टी अपनी ताकत आजमाएगी। ऐसा हुआ तो भारतीय जनता पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता है। बीजेपी इस चुनाव में एड़ी चोटी का जोर लगा रही है। हालांकि शिवसेना ने 2019 के लोकसभा चुनाव में भी बंगाल में अपने उम्मीदवार उतारे थे। उस समय शिवसेना बीजेपी वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का हिस्सा हुआ करती थी खैर शिवसेना के इस कदम से कई पार्टियाँ चौंक सकती है क्योंकि पिछले दिनों ही ओवैसी के बंगाल चुनाव में इंट्री की बात पर शिवसेना नेता संजय राउत ने कहा था कि कोई कुछ भी कर ले लेकिन बंगाल में जीतेगी तो ममता दीदी ही। इतना ही नहीं पड़ोसी राज्य में सत्ताधारी जेएमएम भी बंगाल में ताल ठोंक चुकी है इसके अलावा ऐजेएसयू भी अपनी ताकत झोंक रही है आपको बता दें कि पश्चिम बंगाल में कुल 294 विधानसभा सीटें हैं। 2016 में हुए विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को 211, लेफ्ट को 33, कांग्रेस को 44 और बीजेपी को मात्र 3 सीटें मिली थीं। हालाँकि 2019 के लोकसभा चुनाव बीजेपी ने बंगाल में शानदार प्रदर्शन किया।