दिल्ली- पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की अस्थि कलश यात्राओं और शोक सभाओं में बीजेपी के बड़े-बड़े नेताओं की हंसते और मुस्कुराते हुए तस्वीरें लगातार सामने आ रही है। अटल जी की श्रद्धांजलि समारोह में छत्तीसगढ़ के दो मंत्रियों की हंसी राष्ट्रीय मीडिया में चर्चा का विषय बनी हुई है। लेकिन छत्तीसगढ़ की उस श्रद्धांजलि सभा में मुख्यमंत्री रमन सिंह के अलावा दूसरे बीजेपी नेताओं का भी हंसते-मुस्कुराते वीडियो कैमरे में कैद हुए हैं। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमण सिंह और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान की ऐसी ही तस्वीरे भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं। सूत्र बताते हैं कि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने अपने छोटे बड़े नेताओं को नसीहत दी है कि वो इस मामले में गम्भीरता का परिचय दें।
अटल जी की श्रद्धांजलि सभा में मुस्कुराना हिंदू संस्कृति के लौकिक परंपरा का हिस्सा, विपक्ष बेवजह दे रहा है तूल @BJP4India pic.twitter.com/a6h1cDAJpu
— namamibharat (@namamibharat) August 27, 2018
वहीं दूसरी तरफ पार्टी के एक बड़े नेता का कहना है कि विपक्ष और मीडिया बेवजह इस मामले को तूल दे रही है। उसके मुताबिक अटल जी के नही रहने का दुख सबको है। लेकिन मामले का एक अन्य पहलू यह भी है कि अटल जी की उम्र 94 साल थी। हिन्दू संस्कृति में इस उम्र में किसी का जाना मोक्ष की प्राप्ति माना जाता है। हिंदू संस्कृति में लौकिक परपंरा को मान्यताएं मिली हुई है जिसमे व्यक्ति की अन्तिम यात्रा गाजे बाजे के साथ निकली जाती है और खुशियां मनाई जाती है।
पार्टी नेताओं का कहना है कि परिपार के किसी भी सदस्य का बिछुड़ना दुखद होता है लेकिन उम्र की इस पड़ाव में इस बात का संतोष भी होता है कि उन्होंने कष्टों से मुक्ति पाकर अंतिम यात्रा को प्राप्त किया। लेकिन विपक्ष जानबूझ कर इस पर राजनीति कर रहा है। विपक्ष मीडिया में इस तरह से प्रचारित कर रही है कि बीजेपी के नेताओं के अटल जी की मौत का दुख नहीं बल्कि इस बात की खुशी है।
ज्योतिषविद् आचार्य श्रीकांत शरन के मुताबिक हिंदु संस्कृति में लौकिक और वैदिक परंपरा दोनों हैं। समाज में दोनों परंपराओं को मानने वाले है। इसलिए किसी भी व्यक्ति की मोक्ष प्राति के उपरांत किन-किन परंपराओं को कैसे निर्वहन किया जाए, इस पर कुछ भी एक राय जाहिर करना संभव नहीं है।
पंडित शील भूषण पांडे जी के मुताबिक हिंदू परंपरा में ‘गमी‘ नही बनाते है यानि हम सार्वजनिक तौर पर दुख का इजहार नहीं करते है। हिंदूओं में मृत्यु भी उत्सव है। यही वजह है कि हिंदू परंपरा में तेरह दिन रिति रिवाजों का अनुसरण किया जाता है। परिजन शोकाकुल परिवार को घेरे रखते हैं ताकि उन्हें दुख से उबारा जा सके। अगर इस बीच कोई दार्शनिक बात होती है तो हंसी एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। हमारे यहां ये माना जाता है कि शोकाकुल परिवार और परिजन दुखी होंगे। हमारे यहां शोक दिखने-दिखाने की परपंरा नहीं है अगर हंसने-मुस्कुराने का कोई अवसर मिले तो हंसने में कोई बुराई नहीं है। अगर पिता को कष्टों से मुक्ति मिली है तो बेटे के चेहरे पर तनाव नहीं दिखेगा। मुस्कुाराने से कोई अपमान नहीं होता है। पंडित शील भूषण पांडे जी के मुताबिक हिंदू परंपरा में आत्मा अजर-अमर है वो सिर्फ शरीर का त्याग करती है। मृत्यु का मतलब है शरीर एक कपड़ा बदल कर दूसरा कपड़ा पहन लेगी।