आलोक रत्न उपाध्याय: निश्चित रूप से एक अच्छी वेब सीरीज है, लेकिन लीक से हटकर तो कतई नहीं है। सबसे पहले वो जानिए जिसका मैं पूरी वेब सीरीज में इंतजार कर रहा था और जो मुझे छठे भाग में मिला। ये वेब सीरीज मुंबई में हुए आतंकी हमले पर आधारित है। मैं खोज रहा था कि इस आतंकी हमले के बीच हिंदू धर्म की भर्त्सना कहां की गई है। इस वेब सीरीज के पांचवें/छठे एपिसोड के एक सीन में इस आतंकी हमले की तुलना दिल्ली में हुए सिख विरोधी दंगों से की गई है, और अपरोक्ष रूप से बताया गया है कि हिंदू भी उतने ही बड़े जिहादी हैं जितने मुस्लिम हैं। आठवें एपिसोड में एक महिला के मधुर वॉईस ओवर में कहा गया है कि मुंबई में जो हुआ वो जिहाद नहीं था, लो जी! सलमान भाईजान भी खुश और शाहरूख भाईजान भी खुश, अब प्रोड्यूसर/डायरेक्टर/राइटर को मुंबई में काम मिलता रहेगा।
इसके साथ में ये तो दिखाना ही था कि सभी मुसलमान एक जैसे नहीं होते, इसलिए अस्पताल में एक बेहद नेकदिल मुस्लिम डॉक्टर को जबरिया ठूंस दिया गया है। वेब सीरिज देख कर आपको भी एहसास होगा कि उसकी कोई आवश्यकता नहीं थी और ऐसा सिर्फ सलमान भाईजान और शाहरूख भाईजान को खुश करने के लिए किया गया है, जबकि हकीकत में ऐसा कुछ नहीं था।
ये तो था हमारा पर्सनल परसेप्शन अथवा निजी विचार अब मुख्य रिव्यू भी जान लीजिए, अगर इन कुछ बातों को छोड़ दे तो वाकई ये वेबसीरिज बेहतरीन बनी है। इसमें मीडिया को नंगा करके ये भी दिखाया गया है कि हिंदुस्तान की मीडिया कैसे गैर जिम्मेदाराना तरीके से काम करती है। मुंबई में मीडिया आतंकी हमले को कवर कर रही है और वहां पाकिस्तान में बैठे मुस्लिम आतंकी भारतीय टीवी चैनल देखकर मुंबई में आतंक फैला रहे मुस्लिम आतंकियों को निर्देश दे रहे हैं। हालांकी इस बात को कहने के लिए कुछ अतिशयोक्तियों का भी सहारा लिया गया है, लेकिन वो जायज है। मुंबई की पुलिस भले ही रिश्वतखोर हो, लेकिन बात जब वतन पर आती है तो यहीं पुलिस कैसे काम करती है देखिए इस वेबसीरिज में, इंस्पेक्टर का वो डायलॉग़ कि- ‘ये शहर मेरा है बीप बीप’– और उसके बाद आतंकी के गोली का शिकार हो जाना – आपके रोंगटे खडे कर देगा।
कहने को बहुत कुछ है, लेकिन बेहतर यहीं होगा कि आप खुद इसे एक बार देखें। सलमान भाई, शाहरूख भाई को खुश करने वाले बिंदुओं को छोड़ दें तो वेब सीरिज वाकई बेहतरीन है और हां सबसे जरूरी बात- इस वेबसीरिज में जो सबसे असरदार चीज है वो है मोहित रैना की एक्टिंग। एक पागल टाइप का डॉक्टर, जिसे सिर्फ लोगों की जान बचानी आती है, जो लोगों की जान बचाने के लिए लोगों के थप्पड़ भी खाता है, अपने जूनियर्स के सामने जलील भी होता है, लेकिन सभी को यही कहता है कि ‘मैं नीयत देख कर नहीं, बल्कि नब्ज देख कर इलाज करता हूं’। अब एज ऐ डॉक्टर भाई की बात तो सही है लेकिन जब बात देश की हो तो सब बेकार है। यह विचार पूर्ण रूप से निजी हैं आप भी अपनी प्रतिक्रिया दे सकते हैं।
आलोक रत्न उपाध्याय की कलम से !