लखनऊ: आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर उत्तर प्रदेश में राजनीतिक सरगर्मियां तेज होते ही अजब -गजब प्रयोग होने लगे हैं। सूबे की विपक्षी पार्टियां एक दूसरे से गठबंधन करने की बजाए एक दूसरे को कमजोर करने की राजनीति कर रही हैं। इसके चलते प्रमुख राजनीतिक दल एक दूसरे के वोट काटने और पार्टी तोड़ने में जुटे हैं। आम आदमी पार्टी (आप) की कोशिश कांग्रेस के वोट में सेंध लगाने की है तो समाजवादी पार्टी (सपा) भी बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के नेताओं को तोड़ते हुए बसपा के दलित वोटबैंक में सेंध लगाने की मुहिम में जुटी है। कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनाव के बाद अचानक सपा से गठबंधन तोड़ने के मायावती के फैसले खफा अखिलेश यादव बदला लेने के लिए बसपा को कमजोर करने में जुटे हैं। कुल मिला कर हालात ऐसे हो गए हैं कि बसपा को अब भाजपा से ज्यादा सपा से खतरा है। अखिलेश की बसपा को कमजोर करने की मुहिम के चलते ही सोशल इंजीनियरिंग के मंत्र से कभी सत्ता के शिखर तक पहुंची बसपा के महारथी लगातार पार्टी छोड़ सपा का दामन थाम रहे हैं। फिलहाल बसपा अपने दिग्गजों को सपा में जाने से रोक नहीं पा रही है।
दूसरी तरफ बसपा के दलित वोटबैंक को रिझाने के लिए अखिलेश यादव ने बाबा साहब वाहिनी विंग का गठन किया है। अखिलेश ने इस विंग का पहला राष्ट्रीय अध्यक्ष मिठाई लाल भारती को बनाया है। बसपा से सपा में आए दलित नेताओं के सुझाव पर इस वाहिनी का गठन किया गया है, जिसका मुख्य उद्देश्य दलित वोटर्स को सपा से जोड़ने का है। मिठाई लाल भारती कुछ समय पहले बसपा छोड़ कर सपा में शमिल हुए थे। बलिया के रहने वाले मिठाई लाल भारती बसपा के पूर्वांचल जोनल के कोआर्डिनेटर भी रहे चुके हैं। सपा नेताओं का मत है कि बसपा नेताओं का सपा की तरफ लगातार रुझान बढ़ रहा है। बसपा के दिग्गज नेता एक -एक कर पार्टी छोड़ कर सपा से साथ आ रहे हैं। वीर सिंह सरीखे नेताओं का सपा के साथ जुड़ना मायावती के लिए झटका है। वीर सिंह पहले बामसेफ में सक्रिय थे और बसपा के संस्थापक सदस्य थे। तीन बार राज्यसभा सदस्य और प्रदेश महासचिव रहे। महाराष्ट्र प्रभारी के साथ बसपा के कई महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं। उनका सपा में जाना बसपा के लिए बड़ा झटका है। इसके अलावा बसपा छोड़ने वालों की लंबी फेहरिस्त हैं। पार्टी छोड़ने वालों ने बसपा मुखिया मायावती पर तमाम आरोप भी लगाए हैं। पिछले दिनों पार्टी के विधानमंडल दल के नेता लालजी वर्मा और विधायक व राष्ट्रीय महासचिव राम अचल राजभर को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। तो उन्होंने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से मुलाकात कर ली है। माना जा रहा है कि वे साइकिल पर सवार हो जाएंगे। वर्ष 2007 की बसपा सरकार में जिन दिग्गजों को मंत्री बनाया गया था उनमें आज नाम मात्र को ही बचे हैं। उस समय स्वामी प्रसाद मौर्य, नसीमुद्दीन सिद्दीकी, चौधरी लक्ष्मी नारायण, लालजी वर्मा, नकुल दुबे, रामवीर उपाध्याय, ठाकुर जयवीर सिंह, बाबू सिंह कुशवाहा, फागू चौहान, दद्दू प्रसाद, वेदराम भाटी, सुधीर गोयल, धर्म सिंह सैनी, इंद्रजीत सरोज, राम अचल राजभर, राकेश धर त्रिपाठी और राम प्रसाद चौधरी को महत्वपूर्ण मंत्रालय सौंपे गए थे। इनमें से अब नकुल दुबे सरीखे कम लोकप्रिय नेता ही बसपा में बचे हैं।
इन चर्चित नेताओं के आभाव में राजनीतिक रुप से कमजोर हुई बसपा के वोटबैंक को अब अखिलेश यादव अपने साथ जोड़ने में जुटे हैं। अखिलेश यह सब मायावती को सबक सिखाने के लिए कर रहे हैं। सपा नेताओं के अनुसार बीते लोकसभा चुनावों में अखिलेश यादव ने तमाम नेताओं के मना करने के बाद भी मायावती के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला किया था। यहीं नहीं गटबंधन को बनाए रखने के लिए अखिलेश ने सपा की जीतने वाली सीटे भी बसपा को दे दी थी, इसके बाद भी चुनावों के ठीक बाद मायावती ने अचानक ही सपा से गठबंधन तोड़ने का ऐलान कर दिया था। मायावती के इस फैसले से खफा होकर अब अखिलेश सूबे की राजनीति में बसपा को ठिकाने लगाने में जुटे गए हैं। जिसके तहत उन्होंने बसपा के नेताओं के लिए सपा के दरवाजे खोल दिए हैं। ऐसे में अब यदि बसपा में दलित नेताओं की बात की जाए, तो वर्तमान में मायावती ही सबसे बड़ी दलित नेता हैं। उनका साथ देने वाला कोई बड़ा दलित नेता पार्टी में नहीं है। जो थे उन्हें सपा और भाजपा ने अपने पाले में ला खड़ा किया है। भाजपा के पास सुरेश पासी, रमापति शास्त्री, गुलाबो देवी और कौशल किशोर जैसे नेता हैं। इसके अलावा विनोद सोनकर हैं, जो भाजपा अनुसूचित जाति मोर्चा के अध्यक्ष हैं। कांग्रेस के पास आलोक प्रसाद और पीएल पुनिया जैसे नेता हैं। दलित नेता के तौर पर चंद्रशेखर आजाद भी मायावती को चुनौती दे रहे हैं। इन सब राजनीतिक स्थितियों का आंकलन करते हुए अखिलेश यादव ने बसपा के दलित वोटबैंक में सेंध लगाने के लिए बाबा साहब वाहिनी विंग का गठन कर इस विंग का राष्ट्रीय अध्यक्ष मिठाई लाल भारती को दलित वोटबैंक को सपा से जोड़ने की जिम्मेदारी सौंपी है। यूपी में जाटव के अलावा अन्य जो उपजातियां हैं, उनकी संख्या 45-46 फीसदी के करीब है। इनमें पासी 16 फीसदी, धोबी, कोरी और वाल्मीकि 15 फीसदी और गोंड, धानुक और खटीक करीब 5 फीसदी हैं। कुल मिलाकर पूरे उत्तर प्रदेश में 42 ऐसे जिलें हैं, जहां दलितों की संख्या 20 प्रतिशत से अधिक है। इन्हीं जिलों में बसपा से जुड़े नेताओं को पार्टी में लाकर बसपा को कमजोर करने का लक्ष्य अखिलेश यादव ने तय किया है। जिसे हासिल करने के लिए अब लगातार बसपा के नेताओं को तोड़कर वह सपा में ला रहे हैं। इसके चलते ही वर्ष 2017 में चुनाव जीते 19 विधायकों में से अब मात्र छह विधायक ही बसपा में रह गए हैं। लोकसभा चुनावों के बाद से तमाम बसपा नेता सपा में आए हैं। अखिलेश द्वारा मायावती से बदला लेने के छेड़े गए अभियान के चलते ही बसपा की यह दशा हुई है।