विश्व के सबसे शक्तिशाली देशों में से एक चीन चर्च से डरा हुआ है। आखिर चर्च के भीतर वो कौन सी शक्ति है जो चीन को डरा रहरी है? क्यूं एक के बाद एक चर्च बंद कराए जा रहे हैं? क्यूं चर्च के पदाधिकारी चीनी अझधिकारियों के निशाने पर हैं? ये सवाल चीन के भीतर लगातार सिर उठाते जा रहे हैं। धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाने के लिए बदनाम चीन इन दिनो चर्च से उलझा हुआ है।
हाल ही में दक्षिणी चीन में एक प्रोटेस्टैंट चर्च पर चीनी अधिकारियों की गाज गिरी। चीनी अधिकारियों ने इसके एंट्री और एक्जिट रूट बंद कर दिए। चर्च के भीतर करीब 4000 धार्मिक किताबें थीं जिन्हें जब्त कर लिया गया। चीन के गुवांनझू प्रांत के इस रांगोली चर्च में केवल ईसाई धर्म से जुड़ी गतिविधियां चल रही थीं। यहां सरकार विरोधी कोई कामकाज नही हो रहा था। इसके बावजूद चीनी अधिकारी इस चर्च पर टूट पड़े।
यह कोई पहला वाकया नही है। साल 2018 के सितंबर से लेकर अब तक ये तीसरा चर्च है जिस पर चीनी अधिकारियों ने इस तरह हमला बोला है। इसके पहले बीजिंग के जिआन चर्च में भी कुछ इसी तरह की कार्यवाही की गई थी। चेंगडू के अर्ली रेन कांवेंट चर्च मे भी चीनी अधिकारियों ने कठोर कार्यवाही की और उसे बंद करा दिया।
ये सभी चीन के अंडरग्राउंड चर्च हैं जिन पर शी जिनपिंग की अगुवाई वाली चीनी सरकार कहर बनकर टूट पड़ी है। एक के बाद दूसरे चर्च पर रेड की जा रही है। चीन में धार्मिक स्वतंत्रता खतरे में रही है। चर्चों पर ताजा कार्यवाही को इसी रूख के तहत देखा जा रहा है। चीन एक नास्तिक देश है।
एक कम्युनिस्ट देश होने के चलते धार्मिक रूझान के प्रति चीन की सरकार कभी भी गंभीर नही रही है। हालांकि चीन में राज्य की ओर से दूसरे धर्मों को मानने और उपासना करने पर मनाही नही है मगर राज्य की नीतियों और धर्म के प्रति सोच की अवमानना नही की जा सकती।
चर्चों को लेकर हाल में हुए विवाद के पीछे बिशप पर सरकारी मुहर भी एक बड़ी वजह है। चीन बिशप की नियुक्ति में अपना हस्तक्षेप चाहता है। चीन की मंशा है कि राज्य की स्वीकृति के बाद ही बिशप की नियुक्तियां की जाएं। ये पोप के अधिकार क्षेत्र में सीधा दखल है। बीजिंग की ओर से इस सिलसिले में वेटिकन के साथ एक तात्कालिक समझौता भी किया गया है।
इस समय चीन में दो तरह के चर्च प्रचलन में हैं। एक राज्य द्वारा स्वीकृत चर्च और दूसरे अंडरग्राउंड चर्च। इन्हीं अडरग्राउंड चर्चों पर चीन की सरकार कहर बनकर टूट रही है। चीन में साल 2017 में एक संशोधन लाया गया। इस संशोधन के मुताबिक इंडिपेंडेंट चर्चों पर कड़ाई तेज कर दी गई। सरकार ने अथॉरिटीज को उनकी जांच पड़ताल करने और संपत्ति जब्त करने के अधिकार दे दिए।
चर्चों के मामले में चीन के रूख का एक और बड़ा प्रमाण वहां एकत्र होने वाले उपासकों पर लगाई जाने वाली पेनाल्टी है। चीन इस बात की पूरी कोशिश कर रहा है कि लोग चर्चों मे इकट्ठा ही न होने पाएं ताकि चर्चों के प्रसार और उनके भीतर के कामकाज को ठप्प किया जा सके। यही वजह है कि चर्चों में एकत्र होने वाले उपासकों पर भारी पेनाल्टी लगाई जा रही है। उन्हें चेतावनियां जारी की जा रही हैं।
चीन को इस बात का डर है कि अगर चर्चों में इसी तरह लोग इकट्ठा होते रहे और चर्च की विचाधारा का यूं ही प्रचार-प्रसार होता रहा तो कम्युनिस्ट रिजीम संकट में आ सकता है। लोग सरकार की बातों के ऊपर धार्मिक संस्थाओं की बातों या फतवे को तरजीह दे सकते हैं और ये चीन के कम्युनिस्ट प्रशासकों के लिए बेहद चिंता की बात होगी।