शिवपाल को न मुलायम के जन्मदिन में बुलाया न रामगोपाल के अमृत महोत्सव में
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का विजय रथ आगे बढ़ाने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जिलों -जिलों में जाकर जनता से संवाद कर रहे हैं। जिसके तहत सीएम जिलों में जाकर जनता को सरकार द्वारा कराए गए जनहित के कार्यों के बारे में बताते हुए विपक्षी दलों पर हमला भी बोल रहे हैं। वही दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी (सपा) के मुखिया अखिलेश यादव जनता से संवाद स्थापित करने की अपेक्षा अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव को झटके पर झटका देने को महत्व दे रहें हैं। जिसके चलते ही अखिलेश यादव ने लखनऊ में सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के मनाए गए जन्मदिन समारोह और प्रो रामगोपाल यादव के अमृत महोत्सव पर आयोजित सम्मेलन में अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव की तरफ दोस्ती का हाथ नहीं बढ़ाया। जबकि बीते दो माह से सपा नेताओं की तरफ से यह संदेश दिया जा रहा था कि मुलायम सिंह यादव के जन्मदिन पर अखिलेश अपने चाचा शिवपाल के साथ चुनावी तालमेल होने का ऐलान करेंगे, लेकिन अखिलेश यादव ने इस मामले में चुप्पी साधते हुए अपने चाचा शिवपाल सिंह को फिर झटका दे दिया।
अखिलेश यादव का अपने चाचा शिवपाल सिंह के प्रति अपनाया जा रहा रुखा रूखा रवैया सपा समर्थकों को अखर रहा है। ये लोग अखिलेश और शिवपाल की बीच छिड़ी सियासी जंग से कन्फ्यूज हैं। सपा समर्थक चाहते हैं कि अखिलेश और शिवपाल मिलकर यूपी में चुनाव लड़े, ताकि पार्टी का वोटबैंक बटे नहीं। इस लड़ाई के चलते सपा को वर्ष 2017 के विधानसभा चुनावों में और वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में नुकसान उठाना पड़ा था, सपा समर्थकों का ऐसा मत है। सपा नेताओं का यह भी मानना है कि अखिलेश तथा शिवपाल के बीच छिड़ी जंग के चलते सपा के पारंपरिक कहे जाने वाले इस वोट बैंक में फैली सियासी अनिश्चितता से बसपा सहित अन्य विपक्षी दल खासे उत्साहित हैं। यह सभी दल सपा के इन वोटरों की सेंधमारी में जुटे हैं। इसी के चलते बीएसपी नेताओं ने बड़ी संख्या में मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट देने की तैयारी की है। ओवैसी भी सपा से खफा मुस्लिम नेताओं को अपने साथ जोड़ने की जुगत में लग गए हैं। जिसका अहसास होने पर अखिलेश ने शिवपाल सिंह यादव से चुनावी तालमेल कर चुनाव लड़ने का ऐलान किया था, पर अब वह इस मामले में अपने कदम पीछे खींच रहे हैं। ताकि शिवपाल सिंह यादव सपा से चार पांच सीटें मिलने पर भी सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने पर सहमत हो जाए। शिवपाल सिंह यादव को अखिलेश यादव का यह प्रस्ताव मंजूर नहीं है। जिसके चलते ही उन्होंने गत सोमवार को यह ऐलान कर दिया कि अखिलेश यादव एक हफ्ते में उनके साथ मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला कर लें।
लंबे समय से यूपी की राजनीति पर लिखने वाले वीएन भट्ट कहते हैं, अखिलेश यादव से चुनावी तालमेल ना होने पर शिवपाल सिंह यादव भले ही संगठन के दम पर अखिलेश यादव का कुछ ज्यादा नुकसान न कर पाएं, लेकिन खेल खराब करने की क्षमता उनमें है। ठीक उसी तरह से शिवपाल सिंह सपा को नुकसान पहुंचा सकते हैं जैसे कल्याण सिंह ने बीजेपी से अलग होने के बाद बीजेपी का खेल खराब किया था। बीते विधानसभा और लोकसभा चुनावों में सपा को हुआ नुकसान इसका सबूत है। बीते विधानसभा चुनाव में शिवपाल सिंह यादव से हुए संघर्ष के चलते सपा 47 सीटों पर ही सिमट गई थी। जबकि लोकसभा चुनावों में बसपा के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ने के बाद भी सपा को पांच सीटों पर ही जीत हासिल हुई थी। इसके बाद भी सपा मुखिया अखिलेश यादव ने कोई सबक नहीं सीखा और शिवपाल सिंह यादव के साथ गठबंधन करने में विलंब कर रहे हैं। जबकि शिवपाल सिंह ने हर मंच से यह कहा कि वह सपा से गठबंधन चाहते हैं, लेकिन अखिलेश यादव ने उनकी तरफ दोस्ती का हाथ नहीं बढ़ाया। यह जानते हुए कि इटावा, मैनपुरी, फिरोजाबाद, एटा, बदायूं, कन्नौज, फर्रुखाबाद, कानपुर देहात, आजमगढ़, गाजीपुर जौनपुर, बलिया वगैरह में शिवपाल सिंह यादव का प्रभाव है, इन जिलों के यादव और मुस्लिम समाज के लोग शिवपाल को मानते हैं, फिर भी अखिलेश ने शिवपाल से दूरी बना रहे हैं। जिसका नुकसान उन्हें हो सकता है क्योंकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जनता से संवाद करते हुए अखिलेश यादव पर तीखे हमले करना शुरू कर दिया है।
मंगलवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कानपुर में सपा का नाम लिए बिना उस पर हमला बोला। मुख्यमंत्री ने कहा, आज मैं यहां चेतावनी देता हूँ जो सिटीजन शिप एक्ट के खिलाफ भावनाओं को उकसाकर खिलवाड़ करने का काम कर रहा है, उसके खिलाफ उन अब्बाजान चचाजान के खिलाफ सरकार सख्ती से निपटना जानती है। पहले हर तीसरे दिन दंगे होते थे, अब विकास की बात होती है। मुख्यमंत्री के अनुसार ओवैसी सिर्फ समाजवादी पार्टी का साथी हैं। इसी तरह से मुख्यमंत्री ने मेरठ, गोरखपुर, आजमगढ़, सुल्तानपुर, वाराणसी, बस्ती, महोबा और झांसी में जाकर सरकार की तमाम उपलब्धियों का बखान जनता के बीच करते हुए विपक्षी दलों पर तीखा हमला बोला। बीजेपी के प्रवक्ता और कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह भी अखिलेश और शिवपाल के बीच छिड़ी जंग का संज्ञान लेते अखिलेश पर तंज कस चुके हैं। उन्होंने कहा था कि जिसने राजनीति में खुद को पार्टी का मुखिया बनने के लिए राजनीति का ककहरा सीखने वाले अपने पिता की बेइज्जती की हो, चाचा को पैदल किया हो उससे इससे अधिक की उम्मीद भी नहीं की जा सकती। चूंकि आप (अखिलेश) और आपकी पार्टी के लोग पीठ पीछे खंजर भोंकने में माहिर हैं। आप तो इसमें महारथी हैं। खुद के हित में घर वालो की पीठ में भी खंजर भोंककर आप इसे साबित भी कर चुके हैं। बीजेपी नेताओं के ऐसे सियासी हमले के बाद भी अखिलेश यादव के व्यवहार में बदलाव नहीं दिखा है। वह जनता के बीच जाकर जनता के सरोकार की बातें करने के बजाए अपने उस चाचा शिवपाल सिंह को झटका देने में जुटे हैं जिसने उनकी पढ़ाई का ध्यान रखा था।