मुंबई। हैरान रह गए राजनीति शास्त्र के दिग्गज पंडित, अब ये कहा जायेगा कि नैतिकता को बीजेपी ने ताक पर रख दिया, लेकिन बीजेपी-शिवसेना या कांग्रेस-एनसीपी के गठबंधन से इतर अगर कोई भी सरकार बनती तो वो नैतिकता के खिलाफ ही होती, कांग्रेस तैयार हो गई शिवसेना के साथ सरकार बनाने के लिए, जो शिवसेना बीजेपी से भी बड़ी हिंदूवादी पार्टी है, सरकार बनाने के लिए ये पार्टियां बात ही करती रह गई और अपनी पार्टियों के अंदर क्या खलबली मची थी इसपर कोई ध्यान नही दे रहा था, मुख्यमंत्री और मंत्री के पद और विभागों का बंटवारा करने में व्यस्त थे, इधर भतीजे ने पास ही पलट दिया, अगर एनसीपी ने या अजित पवार ने इतना बड़ा कदम उठाया है तो ये ज़रूर मानिए की शरद पवार का भी अंदर से समर्थन होगा, दो दिन पहले प्रधानमंत्री से संसद के कक्ष में मुलाकात होना और उससे पहले शिवसेना के सांसद संजय राउत का ये बयान देना कि शरद पवार क्या कहते हैं इसे समझने के लिए 100 बार जन्म लेने होंगे, इसके मायने को भी समझिए….इन सबके बीच देवेंद्र फडणवीस ने सरकार बनाने की कवायद से खुद को अलग कर लिया, शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी के चल रहे खेल को देखते रहे और ऐन मौके पर छक्का जड़ दिया।
कांग्रेस के नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने भी स्वीकार किया कि ” तीनों पार्टियों की बातचीत 3 दिन से ज्यादा नहीं चलनी चाहिए थी. यह बहुत लंबी चली. मौका दिया गया तो फायदा उठाने वालों ने इसे तुरंत लपक लिया.”…., कुल मिलाकर धर्मनिरपेक्ष कांग्रेस और कांग्रेस की नज़र में कुछ दिन पहले तक की साम्प्रदायिक शिवसेना और उद्धव ठाकरे की स्थिति गांव में प्रचलित उस कहावत वाली हो गई – ” जातो गइल आ भातो ना मिलल.”…
और उन लोगों को भी झटका लगा जो मोदी और बीजेपी को चित करने के लिए शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी गठजोड़ के लिए प्रार्थना कर रहे थे…..एक बार फिर मोदी को धराशायी करने की रणनीति ध्वस्त हो गई, अब फिर से लोकतंत्र को खतरा,आपातकाल वाली स्थिति, नैतिकता के तार तार हो जाने की दुहाई देते देखे या सुने जाएंगे, शायद कोई उन्हें सुन ले।