ग्रीष्मकालीन दलहनी फसलों में मूँग एवं उर्द की बहुमुखी भूमिका है। इसमें पौष्टिक तत्व प्रोटीन प्राप्त होने के अलावा फली तोड़ने के बाद फसलों को भूमि में पलट देने से यह हरी खाद की पूर्ति भी करता है। महायोगी गोरखनाथ कृषि विज्ञान केंद्र के शस्य वैज्ञानिक डॉ अवनीश कुमार सिंह द्वारा बताया गया कि ग्रीष्म मूंग एवं उर्द की खेती रबी के फसलों की कटाई के बाद खाली हुए खेतों में की जा सकती है। गेहूं-धान फसल चक्र वाले क्षेत्रों में जायद मूंग एवं उर्द की खेती द्वारा मिट्टी उर्वरता को उच्च स्तर पर बनाए रखा जा सकता है। इसकी बुवाई मार्च द्वितीय पखवाड़ा से अप्रैल के द्वितीय पखवाड़ा तक किया जाता है। बुवाई में देरी होने पर फूल आते समय तापमान में वृद्धि के कारण फलियां कम बनती है या बनती ही नहीं है,इससे इसकी पैदावार प्रभावित होती है। बुवाई से पूर्व खेत की गहरी जुताई करें। इसके बाद एक जुताई कल्टीवेटर तथा देशी हल से कर भलीभांति पाटा लगा देना चाहिए, ताकि खेत समतल हो जाए और नमी बनी रहे। दीमक को रोकने के लिए 2 प्रतिशत क्लोरोपाइरीफॉस की धूल 8-10 कि.ग्रा./एकड़ की दर से खेत की अंतिम जुताई से पूर्व खेत में मिलानी चाहिए। बीज की मात्रा 10-12 किग्रा/एकड़ रखनी चाहिए।
बुवाई के समय फफूंदनाशक दवा (थीरम या कार्बेन्डाजिम) से 2 ग्राम/कि.ग्रा. की दर से बीजों को शोधित अवश्य करें। इसके अलावा राइजोबियम और पी.एस.बी. कल्चर से (250 ग्राम) भी बीज शोधन किया जा सकता है जो कि 10-12 किलोग्राम बीज के लिए पर्याप्त है।
मूंग की प्रमुख प्रजातियों में सम्राट, एचएमयू 16, पंत मूंग-1, पूजा वैशाखी, आई. पी.एम 2-3, आई. पी.एम 205-7( विराट),आई. पी.एम-410-3 (शिखा) आदि है।
उर्द की प्रमुख प्रजातियों में शेखर 2, आई पी यू 2-43, सुजाता, आज़ाद उर्द 2 आदि हैं।
दलहनी होने के कारण मूंग एवं उर्द को अन्य खाद्यान्न फसलों की अपेक्षा नाइट्रोजन की कम आवश्यकता होती है। जड़ों के विकास के लिए 20 किग्रा नाइट्रोजन, 50 किग्रा फास्फोरस तथा 20 किग्रा पोटाश एवं 20 किग्रा गंधक प्रति हैक्टेयर डालना चाहिए।
सिंचाई प्रबंधन पहली सिंचाई 25-30 दिनों में करें। इसके बाद 10-12 दिनों के अंतराल में सिंचाई करें। इस प्रकार कुल 3 से 4 सिंचाइयां करें। यहां यह ध्यान रखना आवश्यक है कि, फूल आने की अवस्था तथा फलियां बनने पर सिंचाई अवश्य करनी चाहिए।
मूंग की फलियां जब 50 प्रतिशत तक पक जाएं तो फलियों की तुड़ाई करनी चाहिए। दूसरी बार संपूर्ण फलियों को पकने पर तोडऩा चाहिए। उर्द की फलियाँ पूरी तरह पाक कर काली हो जाय तो कटाई करना चाहिए। फसल अवशेष पर रोटावेटर चलाकर भूमि में मिला दें ताकि पौधे हरी खाद का काम करें। इससे मृदा में 25 से 30 किग्राम प्रति हैक्टेयर नाइट्रोजन की पूर्ति आगामी फसल के लिए हो जाती है। समय से निराई-गुड़ाई करने से अच्छी पैदावार ली जा सकती है। इसके लिए पहली सिंचाई के बाद खुरपी द्वारा निराई आवश्यक है। रासायनिनक विधि द्वारा 300 मिली प्रति एकड़ इमाजाथाईपर 10 प्रतिशत एसएल की दर से बुआई के 15-20 दिनों बाद पानी में घोलकर खेत में छिडक़ाव करें। ग्रीष्मकाल में कड़ी धूप व अधिक तापमान रहने से फसल में रोगों व कीटों का प्रकोप कम होता है। फिर भी मुख्य कीट जैसे माहू, जैडिस, सफेद मक्खी, टिड्डे आदि से फसल को बचाने के लिए डायमिथोएट 30% ई.सी. 1 ली कि दर से अथवा इमिडाक्लोरप्रिड 17.8 %एस. एल. 250 मिली.प्रति हैक्टरे के दर से प्रयोग करें। मूँग में पीले पत्ते के रोग (मोजैक) रोग का प्रकोप आधिक होता है इस रोग के बिषाणु सफेद मक्खी द्वारा फैलते है।