कुछ कर गुजरने का जज्बा अगर दिल में हो तो हर मंजिल आसान लगने लगती हैं। निःशुल्क चिकित्या वितरण के क्षेत्र में ऐसा कुछ ही कारनाम कर दिखाया है देश की जानीमानी रेडियोलॉजिस्ट डॉ. सुनीता दुबे ने। बीते दो दशकों से ‘फिट इंडिया मुहिम‘ के तहत वह स्वास्थ्य क्षेत्र में अपनी भुमिका निभा रही हैं। वह कहती हैं कि चिकित्सा क्षेत्र में केवल मरीजों का इलाज करना ही नहीं, बल्कि उन्हें बीमारियों के बारे में जागरूक भी करना होता है, तब ही स्वस्थ भारत की परिकल्पना को साकार हो सकती है।
मुंबई में आर्यन अस्पताल संचालित करने के साथ ही फिट इंडिया अभियान के तहत अब तक सभी राज्यों में स्वास्थ्य जांच शिविर और जागरुकता अभियान संचालित कर चुकी डॉ. सुनीता दुबे से विश्व महिला दिवस पर रमेश ठाकुर ने विस्तृत बातचीत की।
फिट इंडिया अभियान के लिए कैसे प्रेरित हुईं आप?
मन मेे दूसरों की सेवा करने का भाव शुरू से रहा। मुंबई के दस लाख की आबादी वाले क्षेत्र कुर्ला में 2003 से चिकित्सा क्षेत्र में सेवा का कार्य -रु39याुरू किया गया, वहां उस समय कोई अस्पताल नहीं था, लोग इलाज के लिए दूर घाटकोपर या इलाज के लिए दूर दराज तक जाते थे। जब मैने एमबीबीएस की प-सजय़ाई कर रही थी, तब से ही सोच लिया था कि ऐसे लोगों के लिए काम करना हैं, जहां किसी तरह की कोई मेडिकल सुविधा न हो। -रु39याुरूआत ऐसे ही महारा-ुनवजयट्र के सुदूर गांव से हुई, इसके बाद हमने मुंबई में ट्रस्ट के माध्यम से काम शुरू किया। फिट इंडिया अभियान मेरे दिल के बहुत करीब अभियान है, जिसे हमने 2015 में शुरू किया, अभियान के लिए मुझे खुद पूर्व राष्ट्रपति अब्दूल कलाम जी ने प्रेरित किया, फिट इंडिया अभियान में डॉ. अब्दुल कलाम जी के सानिध्य में हमें अभियान शुरु करने के पांच पिलर तैयार करने में सहायता मिली।
स्वास्थ्य क्षेत्र को ही क्यों चुना आपने?
हेल्थ बड़ा इश्यू है इस वक्त। प्लेज इंडिया, बी फिट बी हेल्दी, ट्रेंड इंडिया सीपीआर ट्रेनिंग, सेव लाइफ और स्क्रीन इंडिया, प्रीवेंट इंडिया जैसे कई अहम को फिट इंडिया अभियान में शामिल किया। हमने अभियान में प्रीवेंटिव हेल्थ को भी प्रमुखता से शामिल किया है, 33 सेंकेट में हमारे देश में एक कार्डियक अरेस्ट होता है, और 15 मिनट में सीपीआर प्रशिक्षण सीखा जा सकता है। पीआर प्रशिक्षण की मदद से एक जीवन भी बचा लिया जाएं तो यह समाज के लिए अहम योगदान होगा। सीपीआर की मदद से अब 43 हजार लोगों को इसका प्रशिक्षण दिया जा चुका है। केवल मुंबई में ही फिट इंडिया प्रोजेक्ट के तहत दिल्ली, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, महारा-ुनवजयट्र सहित दक्षिण भारत में अभियान शुरु किया जा चुका है।
कहा जाता है महिलाएं अपने स्वास्थ्य के प्रति ज्यादा गंभीरता नहीं दिखाती?
बिल्कुल ये सही बात है। हमने राजस्थान के जैसलमेर, तमिलनाडू, उत्तरप्रदेश से लेकर उत्तराखंड के कई दुर्गम इलाकों में जाकर काम किया है, सरकार की स्वास्थ्य के क्षेत्र में बहुत सारी योजनाएं हैं, लेकिन वह सही लोगों तक नहीं पहुंच रही है। जैसलमेर में हम 70 साल की एक ऐसी महिला से मिले, जो अपने जीवनकाल में कभी डॉक्टर के पास नहीं गई थी, महिला को मोतियाबिंद था। कैंप में
पंजीकरण कराने के बाद उसका ऑपरेशन किया गया। बाल विवाह, महावारी स्वच्छता आदि
ऐसे कई परेशानियां हैं, जिसपर अभी भी महिलाओं को जागरूक करने की जरूरत है। स्वास्थ्य के वि-ुनवजयायों पर अब महिलाएं खुलकर बात करने लगी हैं, पहले गांवों में महिलाएं महावारी, स्तन कैंसर, बच्चेदानी का कैंसर आदि से जुड़ी परेशानियां बताने में हिचकती थीं।
हेल्थ सेक्टर में किस तरह की चुनौतियां है और उसका समाधान क्या है?
स्वास्थ्य के क्षेत्र में देश के लिए बहुत सारी चुनौतियां हैं, वेलनेस इंडस्ट्री का पिछले कुछ सालों में विकास हुआ हैं। लेकिन चिकित्सा जगत की जरूरत हैं उसे आज भी पूरा नहीं किया जा रहा। अन्य देशों के मुकाबले देश में स्वास्थ्य सेवाओं पर बहुत कम बजट खर्च किया जा रहा है। सभी के पास मेडिकल पॉलिसी नहीं हैं, जबकि स्वास्थ्य बीमा व्यवसाय तेजी से ब-सजय़ रहा है, यह किसके लिए हैं? जिसको हम दिखाना चाह रहे हैं वह हमारा लक्ष्य नहीं है। सरकारी अस्पताल होने के वजूद लोगों का अधिकांश व्यय चिकित्सा पर हो रहा है। शत प्रतिशत स्वास्थ्य बीमा हो नहीं पाया है।
हमारी निर्भरता विदेशी दवाईंयों के प्रति ज्यादा है, देशी जड़ी-ंबुटियों को नकारा जा रहा?
आपने एकदम सही कहा। देशी दवाईयों हम नकारते जा रहे हैं। लेकिन मैं इतना जरूर कहना चाहूंगी कि हमारे पास चिकित्सा के लिए संसाधनों की भी कमी हैं, इमरजेंसी चिकित्सा में होने वाला खर्च बहुत बढ़ गया है, हाल में हुए एक अध्ययन के अनुसार भारत में मरीजों के एवज में चिकित्सक बेहद कम हैं। हम बाहरी तकनीकि को अपना रहे हैं, जबकि भारतीय तकनीक को अधिक विकसित नहीं कर पा रहे हैं। हमने कई गांवों का दौरा किया हैं, जहां आयुष्मान भारत जैसी कई सुविधाओं का लाभ नहीं मिल रहा है, यह फंड कहां जा रहा है? इसलिए एक मजबूत सरकारी तंत्र बनाने की जरूरत है।
महिला दिवस के मौके पर महिलाओं को कोई संदेश देना चाहेंगी आप?
सबसे पहले खुद में विश्वास रखो, सभी महिलाओं में एक विशेष तरह की शक्ति होती है, कुछ इसे विकसित कर पाती हैं और कुछ नहीं। आप किसी भी परिस्थिति में हैं, जो कुछ भी कर रही हैं, उसमें केवल आपको शुरूआत करनी हैं, अपना लक्ष्य निर्धारित करना है, अपनी जिंदगी अपने अनुसार ही तय करनी है। आप दूसरे का सहयोग ले सकती हैं, लेकिन किसी पर निर्भर नहीं होना है। चुनौतियों के लिए खुद को ही तैयार करना है, याद रहें आपकी किसी पर भी निर्भरता न रहें, अपने रास्ते खुद बनाओं और फिर देखों जिंदगी कितनी बेहतर होती है।
आपदाओं के वक्त भी आप चिकित्सा सेवाएं मुहैया कराती हैं?
भारत एक बहुत बड़ा देश हैं, जिसमें कई तरह की मानवजनित और प्राकृतिक आपदाएं आती रहती हैं, लेकिन हर बार यह संभव नहीं होता है कि सही समय पर सहायता पहुंचाया जा सकें। सरकार की मदद से भी कई एजेंसियां काम कर रही हैं, जिसमें पूरा प्रशासनिक तंत्र भी कार्य करता है। बावजूद इसके अभी भी आपतकालीन सेवाओं को दस में से दस अंक नहीं दिए जा सकते, आपदाओं में राहत कार्य पहुंचाने के लिए अधिक बेहतर संसाधनों की जरूरत है।
(महिला दिवस पर देश की विख्यात रेडियोलॉजिस्ट चिकित्सक डॉ. सुनीता दुबे से रमेश
ठाकुर की महिलाओं के संघर्ष पर बातचीत।)