घोंतू ! हां यही नाम था उनका। बचपन में हमेशा गले से घर्र-घर्र की आवाज जो करते थे। सेहत ऐसी की गोद लेने में दम फूल जाए। अपने नाना के घर गए तो नाना ने घर से बाहर खेलने पर रोक लगा दिया किसी की नजर जो लग जाती। मोटा होने से गले से एक अलग आवाज आती थी इसी कारण नाम पड़ गया घोंतू। एक बहन छोटी थी इसलिए वो घोतिया कहलाई।
पहले कोई विरोध नहीं होता था मां-बाप जो नाम रख देते वो सभी को कबूल होता था। पापा ने भी अपने मां-बाबूजी से कभी यह नहीं पूछा कि घोंतू नाम क्यों रखा। घोंतू नाम रखने के पीछे हम सब जब पापा से कारण पूछते तो वो हंस कर अपना नाम रखने की कहानी बताते थे। चार बहनों में अकेले भाई थे इसलिए सबके लाडले भी थे। युवा होने की दहलीज पर अभी कदम ही रखा था कि दादा जी चल बसे। घर की पूरी जिम्मेदारी पापा के कंधों पर आ गई। बड़ी दीदी {मेरी बूआ} मां समान थी इसलिए उन्हीं के घर रहना शुरू कर दिया। तीन बहनों की शादी जल्द हो गई थी और दादी अब पापा की भी जल्द से जल्द शादी कर देना चाहती थी। घर का खर्चा चलना जरूरी था इसलिए पापा ने टाइपिस्ट की नौकरी शुरू कर दी। जल्द ही दादी ने लड़की भी ढूंढ लिया और मां से शादी हो गई। पढ़ने और आगे बढ़ने का जुनून था सो शादी के बाद भी पढ़ाई नहीं छूटी। ये उनकी मेहनत का ही नतीजा था जल्द ही वो प्रशासनिक सेवा के लिए चुन लिए गए।
“पापा का निधन पिछले साल 19 सितंबर को हुआ। 4 दशक तक उन्हें अपने साथ पाया ये पहला मौका है जब इस साल फादर्स डे पर वो मेरे साथ नहीं है। फादर्स डे पर उनके साथ रहने का मौका बहुत कम मिला लेकिन पापा को इस दिन फोन जरूर करता था। इस साल से ये भी संभव नहीं होगा। मां-बाप का प्यार किस्मत से लोगों को मिलता है वो हमारे लिए धरोहर के सामान है उन्हें सम्मान देकर ही हम उनकी इज्जत कर सकते हैं…”
बतौर प्रशासनिक अधिकारी वो एक बेहतर इंसान थे। गरीब और जरूरतमंदों की मदद करना वो कर्तव्य मानते थे। घर में हमेशा काम कराने वालों का तांता लगा रहता था। हम सब पापा की इस आदत से अक्सर खीझ भी जाते थे लेकिन वो वही करते जो उनका दिल करता। काम का उनपर जुनून था और हर वक्त हम सबों ने उन्हें काम करते ही देखा था। दादा जी के जल्दी चल बसने के कारण उन्हें अपने पिता का प्यार शायद नहीं मिला लेकिन हम सब चार भाई-बहनों को उन्होंने प्यार देने में कोई कटौती नहीं की। जब भी जिस किसी ने जो भी मांगा उन्होंने उसे पूरा किया। अपने लोगों का ख्याल तो सब रखते हैं लेकिन बहुत कम लोग पापा जैसे होते हैं जो सबका ख्याल रखते थे जो भी एक बार उनसे मिला वो उन्हीं का होकर रह गया।
वो दिन अनोखा था। ठीक एक दिन पहले ऐसा कुछ हुआ था जिसकी किसी ने कल्पना नहीं कि थी। पापा सो रहे थे। बेसूध, गहरी नींद में। कुछ ही घंटा पहले तो उनकी आंख लगी थी। जब से ब्रेन हेमरेज हुआ था तब से शरीर कमजोर हो गया था। बचपन से बड़ा होने तक हम सभी ने उन्हें अहले सुबह उठते देखा था। देर तक सोने वालों को देखकर वो नाराज भी होते थे। अब ऐसा नहीं था ब्रेन हेमरेज के बाद दवाइयां लेने के कारण वो अक्सर देर से उठते थे और उनकी नींद में खलल न पड़े इसका हम सभी ध्यान भी रखते थे।
उस दिन भी वो गहरी नींद में सो रहे थे, शरीर ठंडा पड़ चुका था। 24 घंटे पहले वो सोए थे उसके बाद उनकी आंखे खुली नहीं थी। शरीर को बर्फ की सिल्लियों पर रखा गया था। वो बेहद कोमल ह्रदय के इंसान थे लेकिन बर्फ पर पड़ा रहने के कारण शरीर अब सख्त होने लगा था। बर्फ का स्वरूप भी धीरे-धीरे बदल रहा था पानी बनकर कमरे में बिखर रहा था। पिघलते बर्फ के कारण गर्दन टेढ़ा होने का डर था। सिरहाने पर बैठा मैं सचेत था और हर पल उन्हें निहार रहा था। पापा आज तक इतनी लंबी नींद कभी नहीं सोए फिर आज क्या हुआ ?
मैं उन्हें उठाकर उनकी नींद में खलल नहीं डालता चाहता था लेकिन उनकी चुप्पी अब खलने लगी थी। जो इंसान हमेशा खुश रहता चेहरे पर हमेशा मुस्कान रहती थी वो भला इतनी देर चुप कैसे रह सकता है ? मैं उन्हें टकटकी लगाए देखता रहा। थोड़ी-थोड़ी देर पर उनके गालों पर हाथ फेरता शायद स्पर्श से पापा जाग जाएं लेकिन पापा ने इस बार शायद कभी न उठने को ठान लिया था। वो उसी हालत में पड़े रहे जिस हालत में अस्पताल से आए थे। शरीर में कोई हरकत भी नहीं हो रही थी।
घर में मातम पसरा था परिवार के हर सदस्य का रो-रोकर आंखे सूज चुकी थी। वो लम्हा हर किसी की जिंदगी में आता है आज मेरी जिंदगी में भी आया था लेकिन इतनी जल्दी आ जाएगा ये सोचा नहीं था।
विदाई की घड़ी आ चुकी थी। अंतिम यात्रा के लिए सेज सज चुका था। पापा के शरीर को सभी बंधनों से मुक्त कर दिया गया था। शरीर पर हल्दी का लेप चढ़ाया जा रहा था। मैं नहीं जानता ऐसा क्यों किया जाता है शादी के समय देखा था जब मुझे भी हल्दी का लेप लगाया गया था पर उस समय का वक्त कुछ और था। हंसी-ठिठोली के बीच हल्दी की रस्म अदायगी हुई थी लेकिन ये वक्त……। ये बेहद पीड़ादायक था।
बचपन से जिस चेहरे को हमेशा मुस्कुराता देखा आज वो मुरझाने लगा था। हल्दी का लेप लगाकर पापा का चेहरा फिर से दमक उठा था ऐसा जैसा उम्र का फासला कम हो गया हो। पापा की कलाई थामे मैं भी लेप लगा रहा था अचानक ऐसा कुछ हुआ जैसे…….!!!!…??? हां पापा के शरीर में हरकत हुई थी…!!! एक पल के लिए उन्होंने मेरी उंगलियों को पकड़ा था……!!! हां पापा का वो स्पर्थ था जैसे वो कुछ कहना चाह रहे हों। मैं घबरा कर उनके चेहरे को देखा….कहीं शरीर में जान तो बाकी नहीं ???? आखिर ऐसा क्या हुआ जो उन्होंने मुझे स्पर्श किया मेरी उंगलियों को पकड़ लिया ???? क्या वो कुछ कहना चाह रहे थे ?? क्या उन्हें डर लग रहा था ??? क्या वो जाना नहीं चाहते थे ??? वो स्पर्श ही ऐसा था जिसे भूला नहीं जा सकता। मां के गर्भ से निकले शिशु के स्पर्श जैसा कोमल। चंद साल पहले मैं भी जब इस दुनिया में आया था तब मैंने भी शायद पापा की उंगलियों को उसी तरह स्पर्श किया था जैसा पापा ने आज किया। तब मेरे लिए ये दुनिया अंजान थी आज पापा के लिए अनजाना हो गया। पापा शायद खुशनसीब थे जो बचपन में मेरे एक स्पर्श मिलने के बाद मैने जो मांगा वो हर पल उन्होंने दिया। बचपन से बड़ा होने तक कंधे से कंधा मिलाकर हर फैसले में वो मेरे साथ रहे लेकिन मैं कितना अभागा था कि आज कंधा देने की बारी मेरी थी साथ चलने के लिए नहीं बल्कि हमेशा के लिए बिछड़ने की।
हम सबको छोड़कर पापा बहुत दूर चले गए जहां से लौटकर कोई नहीं आता। निधन से दो दिन पहले ही उन्होंने मुझे फोन किया था पूछा था एकाउंट नंबर बताओ पोते {मेरे बेटे} का जन्मदिन नजदीक है उसे गिफ्ट खरीदकर भेंट कर देना। मैं टालता रहा लेकिन पापा अड़े रहे तब तक उन्होंने फोन नहीं छोड़ा जब तक मैं उन्हें एकाउंट नंबर बता नहीं दिया। पापा की जिद से थोड़ी खीज भी मुझे हुई थी। वो आखिरी बातचीत थी और उनके हाथों से लिखे गए मेरे नाम और एकाउंट नंबर भी आखिरी शब्द थे। ठीक 24 घंटे बाद खबर मिली थी पापा बाथरूम में गिर गए और हालत ठीक नहीं जल्दी घर चले आइए। खबर मिलते ही दिल्ली से पटना जाने के लिए ट्रेन का टिकट खंगाला। आम तौर पर इस रूट पर टिकट मिलना बेहद मुश्किल होता है लेकिन पहली ही ट्रेन में दो टिकट खाली मिल गया। ऐसे लगता है कि जैसे पापा को मालूम था कि टिकट मिलना कितना मुश्किल होता है उन्होंने अपना काम कर दिया था।
मैं उनकी अंतिम सांसे टूटने से पहले पहुंच गया दूर दराज से परिवार के बाकी लोग भी इकट्ठा हो गए। सब इंतजार में थे कि इस बार भी वो ठीक हो जाएंगे लेकिन सबको इकट्ठा कर वो चले गए।
आज सोचता हूं कि काश उस दिन लंबी बात कर लेता….काश उनकी जिद पर खीज नहीं करता…..काश एक बार मिल लेता लेकिन ये काश ऐसा शब्द है जो कभी पूरा नहीं होता आज तक न पूरा हुआ है और न भविष्य में कभी पूरा होगा।
पापा तुम बहुत याद आते हो….अगले जन्म में तुम मेरी औलाद बनना…..पिता का फर्ज तूमने बहुत अच्छे से निभाया है मुझे भी ये कर्ज उतारने का मौका देना।
पापा ने अपने जीवन वृत में C.g.Rossetti के लिखे कुछ लाइन को कोट किया है जिसका जिक्र करना यहां प्रासंगिक है-:
“Remember me when I am gone away
Gone Far away into silent land;
When you can no more hold me by the hand,
Nor I half turn to go, yet turning stay
Remember me when no more day by day
You tell me of our future that you planned;
Only remember me; you understand.
-प्रियप्रकाश (लेख़क वरिष्ठ पत्रकार हैं )