खुशखबरी: दिल्ली में लगा देश का पहला स्मॉग टॉवर

नई दिल्ली: मुख्यमंत्री श्री अरविंद केजरीवाल ने ‘प्रदूषण के खिलाफ युद्ध’ को और प्रभावी बनाने और दिल्ली को प्रदूषित हवा से मुक्ति दिलाने के लिए आज कनॉट प्लेस में देश के पहले स्मॉग टावर का उद्घाटन किया। सीएम श्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली वालों को बधाई देते हुए कहा कि प्रदूषण के खि़लाफ़ युद्ध में दिल्ली ने देश के पहले स्मॉग टावर की शुरुआत की है। अमेरिकी तकनीक से बना यह स्मॉग टावर हवा में प्रदूषण की मात्रा को कम करेगा। पायलट आधार पर शुरू हुए इस प्रोजेक्ट के नतीजे बेहतर रहे, तो पूरी दिल्ली में ऐसे और स्मॉग टावर लगाए जाएंगे। सीएम ने कहा कि आज तक देश में ऐसा टावर लगाकर प्रदूषित हवा को साफ करने का कभी प्रयास नहीं किया गया। हमारा यह नया कदम मील का पत्थर साबित होगा। वहीं, पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा कि हमने साकारात्मक सोच के साथ यह पहल की है। इसकी सफलता के बाद हमें प्रदूषण को कम करने में एक तकनीकी मदद मिलेगी।

दिल्ली के बाबा खड़क सिंह मार्ग पर कनॉट प्लेस में स्थापित वायु संशोधन प्रणाली स्मॉग टावर का उद्घाटन करने पहुंचे मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का मुख्य सचिव ने नवांकुर भेंट कर स्वागत किया। सर्व प्रथम मुख्यमंत्री ने अधिकारियों ने स्मॉग टावर की कार्य प्रणाली के संबंध में विस्तार से जानकारी प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने नाम पट्टिका का अनावरण किया और बटन दबाकर स्मॉग टावर का उद्घाटन किया। इस दौरान दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय और पर्यावरण विभाग, आईआईटी दिल्ली, आईआईटी बॉम्बे समेत अन्य अधिकारी उपस्थित रहे। यह कार्यक्रम दिल्ली पर्यावरण विभाग के दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति द्वारा आयोजित किया गया।

स्मॉग टॉवर प्रोजेक्ट की पृष्ठभूमि

बाहरी वायु प्रदूषण स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था, पारिस्थितिकी और जलवायु के लिए एक बड़ा खतरा है। दिल्ली बिगड़ती हवा, खासकर पीएम 2.5 की गुणवत्ता से जूझ रही है। यह आउटडोर एयर क्लीनिंग टेक्नोलॉजी लोगों को आसपास स्वच्छ हवा प्रदान करने के लिए परिकल्पित है। यह डाउनवर्ड एयर क्लीनिंग डिवाइस इसके आसपास में रहने वाली आबादी को सीधे स्वच्छ हवा प्रदान करता है। एयर क्लीनिंग सिस्टम के प्रदर्शन मूल्यांकन के लिए आईआईटी बॉम्बे और आईआईटी दिल्ली द्वारा सीएफडी मॉडलिंग और विस्तृत वायु गुणवत्ता निगरानी अध्ययन किया जाएगा।

 स्मॉग टावर की विशेषताएं-

– जमीन से स्मॉग टावर की ऊंचाई 24.2 मीटर।

-स्मॉग टावर का प्लान एरिया- 28X28 मीटर। (784.5 वर्ग मीटर) 

– टॉवर आरसीसी और स्टील संरचना से बना है। 

-टावर ऊपर से हवा खींचेगा और फ़िल्टर्ड हवा छोड़ेगा।

– पंखे के माध्यम से एक हजार घन मीटर प्रति सेकेंड फिल्टर हवा जमीन के पास छोड़ेगा।

– स्मॉग टावर का प्रभाव केंद्र करीब एक किलोमीटर के दायरे में है।

– इसमें कुल 40 पंखे लगे हैं।

– 25 घन मीटर प्रति सेकंड वायु प्रवाह दर है।

– 960 आरपीएम (रोटेशन प्रति मिनट) पंखे की गति।

– 16.1 मीटर प्रति सेकंड फैन की आउटलेट वेलोसिटी

– कुल फिल्टर की संख्या 5000 है।

– ईएसएस की क्षमता 1250 केवीए है।

थ्री-एम फ़िल्टर इलेक्ट्रोस्टैटिक एयर फ़िल्टर को आपके घर की हवा में सबसे छोटे हवाई कणों को पकड़ने की क्षमता के आधार पर रेट किया जाता है, जो आपके द्वारा प्रत्येक दिन सांस लेने वाले कणों का 99 फीसद कणों को बनाता है। यह छोटे कण आपके फेफड़ों में रह सकते हैं, जबकि बड़े कण मिनटों में फर्श पर आ सकते हैं। इन छोटे कणों को पकड़ने की एक फिल्टर की क्षमता के माप को माइक्रोपार्टिकल परफॉर्मेंस रेटिंग (एमपीआर) कहा जाता है और इसके फिल्टर का एमपीआर 2200 है।

नोवल फिल्टर धुएं, खांसी और छींक के मलबे, बैक्टीरिया और वायरस जैसे सूक्ष्म कणों और लिंट, घरेलू धूल और पराग सहित बड़े कणों को आकर्षित और कैप्चर करेंगे। स्मॉग टॉवर की मॉनिटरिंग इन बिल्ट स्काडा सिस्टम (पर्यवेक्षी नियंत्रण और डेटा अधिग्रहण) के माध्यम से की जाएगी।

इस तकनीक के फायदे

बाहरी वायु सफाई प्रणाली (स्मॉग टॉवर) के लिए उपयोग की जाने वाली अनुकूली स्वच्छ वायु प्रणाली (एसीएएन) प्रौद्योगिकी भारत में आईआईटी बॉम्बे द्वारा शुरू की गई है और मिनेसोटा विश्वविद्यालय द्वारा टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड को अपनी वाणिज्यिक शाखा क्लीन एयर-केयर एलएलसी के माध्यम से स्थानांतरित कर दी गई है। शहरी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण के कणों को कम करने के लिए एक नवीन वायु सफाई प्रणाली का आंकलन करने के लिए भारत में यह पहला पायलट अध्ययन है। आईआईटी बॉम्बे स्मॉग टावर के वायु प्रवाह, पीएम-2.5 कणों में कमी, प्रभावी प्रभाव क्षेत्रों जैसे विभिन्न मौसम विज्ञान और भौगोलिक आदि परिस्थितियों के सीएफडी मॉडलिंग का प्रदर्शन कर रहा है। आईआईटी बॉम्बे और आईआईटी दिल्ली टॉवर के प्रदर्शन का आंकलन करने और विभिन्न जलवायु परिस्थितियों में वायु कण पदार्थ की कमी की दक्षता का आंकलन करने के लिए दो साल के लिए प्रायोगिक पायलट अध्ययन करेंगे। प्रायोगिक अध्ययन के नतीजों से पूरी दिल्ली के लिए पीएम-2.5 के स्तर को कम करने में ऐसी तकनीक की संख्या और क्षमता के बारे में स्पष्ट अनुमान लगाया जाएगा।

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