दिनांक 02/08/2019 दिन शुक्रवार को महायोगी गोरखनाथ कृषि विज्ञान केंद्र के द्वारा मृदा विज्ञान विषय पर “पोषक तत्वों की दक्षता बढ़ाने हेतु धान में समेकित पोषक तत्व प्रबंधन” शीर्षक पर प्रशिक्षण का आयोजन किया गया l कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए केंद्र के मृदा वैज्ञानिक संदीप प्रकाश उपाध्याय ने हरित क्रांति के बाद सघन कृषि पद्धतियों एवं अधिक पोषक तत्व ग्रहण करने वाली प्रजातियों के कारण समय के साथ मृदा में विभिन्न पोषक तत्वों की कमी हो गई है अतः खेत में पोषक तत्वों की क्षतिपूर्ति, ऊपरी मृदा का नुकसान रोकने, जैवांश की मात्रा बढ़ाने के लिए समेकित पोषक तत्व प्रबंधन प्रणाली को अपनाने के बारे में विस्तार से बताया जैसे कि मृदा जांच के आधार पर संतुलित पोषक तत्व प्रदान करना, टुकड़ों व फसल की मांग के अनुसार उर्वरक का छिड़काव, उर्वरकों का पत्तों पर छिड़काव, सूक्ष्म पोषक तत्वों का पत्तों पर छिड़काव एवं मंदगति से पोषक तत्व मुक्त करने वाले उर्वरक के प्रयोग से पोषक तत्वों की दक्षता बढ़ाई जा सकती हैl धान की फसल में पोषक तत्व प्रबंधन के बारे में विस्तार से चर्चा की एवं विशिष्ट स्थल पोषक तत्व प्रबंधन के उपकरण एवं नई तकनीकी जैसे क्लोरोफिल मीटर, लीफ कलर चार्ट, न्यूट्रिएंट्स मैनेजर, जीपीएस बेस्ट न्यूट्रिएंट्स मैनेजर के बारे में प्रसार कर्मियों को अवगत करायाl समेकित पोषक तत्व प्रबंधन में जैव उर्वरकों की उपयोगिता तथा जैव उर्वरकों (राइजोबियम, एजोटोबेक्टर, माईकोराइजा, समुद्री शैवाल, तरल कंसोर्सिया एवं जिंक सॉल्युबलाइजिंग बैक्टीरिया) के लाभकारी प्रभावों, प्रयोग करने की विधियों, मृदा उपचार, बीज व कंद उपचार को भी विस्तार से बताया गया।
वेस्ट डिकॉम्पोज़र से होने वाले लाभ से किसानों को अवगत कराया। साथ ही यह भी बताया कि धान की अच्छी पैदावार लेने के लिए उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी की जांच के आधार पर ही करना चाहिए यदि किसी कारणवश मिट्टी परीक्षण नहीं हो सका तो शीघ्र पकने वाली धान की प्रजाति में 120: 60 :60 (N:P:K) की दर से 210 किलोग्राम यूरिया, 130 किलोग्राम डीएपी, 100 किलोग्राम एम ओ पी की मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से देनी चाहिएl इसी प्रकार मध्य देर से पकने वाली धान की प्रजाति में 150: 75:60 के अनुपात में 260 किलोग्राम यूरिया, 160 किलोग्राम डीएपी, 100 किलोग्राम m.o.p. की मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए एवं संकर प्रजातियों के लिए 175: 75:75 के अनुपात में 315 किलोग्राम यूरिया, 160 किलोग्राम डीएपी, 125 किलोग्राम m.o.p. की मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से उर्वरक का प्रयोग करना चाहिए l जुताई के समय 10-12 टन गोबर या कंपोस्ट की खाद एवं जस्ते की कमी को पूरा करने के लिए 20 से 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट का प्रयोग लेवा करते समय अवश्य करना चाहिएl यूरिया की उपर्युक्त मात्रा आधी रोपाई से पहले तथा शेष मात्रा दो से तीन बार में देनी चाहिएl केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ आर पी सिंह के द्वारा धान की विभिन्न बीमारियों जैसे पीला हरदा, खैरा रोग, ब्राउन स्पॉट डिजीज शीत झुलसा रोग सीत सड़न जीवाणु झुलसा के साथ साथ टेक ऑल रोग जो कि फंगस के द्वारा होती है इस रोग के कारण बाली सफेद तथा जड़े काले रंग की उठता रोग जैसी हो जाती है व दाने नहीं बनते हैं के रोकथाम के बारे में बताया एवं विभिन्न कीट जैसे तना छेदक, पत्ती लपेट गंदी पद, हरा फुद्का, सफेद फुद्का, दीमक इत्यादि हेतु समेकित रोग एवं कीट प्रबंधन के बारे में विस्तार से जानकारी प्रदान कीl
बागवानी की फसल जैसे आम व अमरूद में कीट एवं रोग प्रबंधन के बारे में भी जानकारी प्रदान कीl इसके साथ कृषकों की आय बढ़ाने हेतु खरपतवार प्रबंधन धान की श्रीपद पद्धति तथा अन्य फसलों के साथ सहफसली खेती जैसे गेहूं के साथ गन्ना, चने के साथ धनिया इत्यादि के उत्पादन तकनीकों के बारे में बतायाl केंद्र के उद्यान वैज्ञानिक डॉ अजीत श्रीवास्तव ने बागवानी के पेड़ों में गुठी बांधना व कलम बनाने के साथ-साथ अमरूद केअल्ट्रा हाई डेंसिटी ऑर्चर्ड के बारे में विस्तार से बतायाl इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में कृषि विभाग के कृषि प्रसार कर्मी भटहट ब्लाक से हरेंद्र सिंह सूर्यनाथ जामवंत पटेल ब्लाक पिपराइच से मनोज कुमार भैरवनाथ हृदेश वर यादव एवं ब्लॉक खोराबार से कुमुदनी सिंह अमूल्यनिधि तिवारी तथा कुलदीप कुमार यादव सहित 15 प्रसार कर्मियों ने प्रशिक्षण प्राप्त कियाl