पवन पाण्डेय पीपीगंज गोरखपुर/ महायोगी गोरखनाथ कृषि विज्ञान केंद्र चौक माफी पीपीगंज गोरखपुर के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ आर पी सिंह ने किसानों को सलाह देते हुए बताया कि पर्यावरण शब्द परी एवं आवरण से मिलकर बना है, परी का मतलब चारों ओर तथा आवरण का मतलब परिवेश है या दूसरे शब्दों में कहें तो पर्यावरण अर्थात वनस्पतियों प्राणियों और मानव जाति सहित सभी सजीवों और उससे संबंधित भौतिक परिसर को पर्यावरण कहते हैं जिसमें वायु जल भूमि पेड़-पौधे जीव-जंतु मानव तथा उनकी विविध गतिविधियों का समावेश होता है। डॉ सिंह ने इस अवसर पर माननीय मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश श्री योगी आदित्यनाथ जी को जन्मदिन की शुभकामनाएं तथा उनके दीर्घायु की कामना की, साथ ही पर्यावरण परिवर्तन के कृषि में दुष्प्रभावों के बारे में बताया कि वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड बढ़ने से धान में झुलसा रोग, भीत झुलसा रोग अधिक लगता है तथा तापमान में नमी बढ़ने से रोगों कीटो का प्रकोप बढ़ता है तथा नए प्रकार के रोग व कीट उत्पन्न होते हैं जो फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं साथ ही जीवाणु रोग फफूद जनित रोग विषाणु जनित रोग फसलों पर अधिक लगते हैं।
कार्यक्रम को प्रारंभ करते हुए विषय वस्तु विशेषज्ञ उद्यान डॉ अजीत कुमार श्रीवास्तव ने बताया कि वर्ष 2020 में यह दिवस 5 जून दिन शुक्रवार को पूरे विश्व में मनाया जा रहा है तथा इस वर्ष का थीम जैव विविधता है। उन्होंने बताया कि आजकल नए आविष्कारों, जनसंख्या वृद्धि, औद्योगीकरण एवं शहरीकरण के कारण प्रकृति का संतुलन बिगड़ गया है जिसका प्रभाव जलवायु परिवर्तन पर विशेष रूप से देखने को मिल रहा है। विषय वस्तु विशेषज्ञ मृदा विज्ञान डॉ संदीप प्रकाश उपाध्याय नेने बताया कि वर्तमान में पर्यावरण परिवर्तन के प्रभाव से असंतुलित होकर प्राकृतिक संपदाओं का संतुलन बिगड़ गया है तो दूसरी तरफ कृषि एवं जनजीवन भी प्रभावित हो रहा है उन्होंने यह भी बताया कि पिछले दो दशकों से तापमान में वृद्धि वर्षा का बहुत कम या ज्यादा होना तूफानों की संख्या बढ़ना जैसे निसर्ग, हुदहुद, फैलिन आदि जलवायु परिवर्तन को बताने वाले संकेत हैं। पौधों में फल आने की अवस्था में तापमान अधिक होने से फूलों का सूख जाते हैं। तापमान बढ़ने से प्रमुख फसलों में कीड़ों व रोगों से 50% तक नुकसान होता है। साथ ही मित्र सूक्ष्मजीवों तथा मित्र कीटों की संख्या में भी परिवर्तन होता है जिससे मिट्टी की दशा में परिवर्तन होता है।
कार्यक्रम में आगे विषय वस्तु विशेषज्ञ शस्य विज्ञान डॉ अवनीश कुमार सिंह ने कृषि पर पर्यावरण परिवर्तन के दुष्प्रभावों के बारे में और जानकारी प्रदान की तथा बताया कि तापमान बढ़ने से खरीफ के खरपतवार रबी में भी पनप सकते हैं जिससे फसलों का उत्पादन प्रभावित होता है। पर्यावरण परिवर्तन से प्रकाश संश्लेषण क्रिया प्रभावित होना, फसलों में दाना छोटा होना, फसलों में जल की मांग बढ़ना इत्यादि के बारे में बताया। विषय वस्तु विशेषज्ञ कृषि प्रसार डॉ राहुल कुमार सिंह ने पर्यावरण परिवर्तन के प्रभाव को कम करने की रणनीति के बारे में बताया जैसे कि मनुष्य द्वारा उत्सर्जित ग्रीन हाउस गैसों को कम करना होगा, पानी का जरूरत भर ही प्रयोग किया जाए, टपक सिंचाई व जल छिड़काव विधि, मल्चिंग, चेक डैम और गड्ढा बनाना होगा जिससे जल संरक्षण किया जा सके सूखा गर्मी प्रतिरोधक, कम पानी व कम अवधि वाली प्रजातियों को खेती में समावेश करना होगा। कम पानी की दशा में मोटे अनाजों को अपनी खेती में समावेश करना होगा। जैविक विधि से खेती करने पर जलवायु परिवर्तन के खेती पर प्रभाव को कम किया जा सकता है।
इसके लिए जैविक खादों, जैविक कीटनाशक, जैविक रोग नाशी आदि का प्रयोग अपनी खेती में करना होगा। साथ ही अनुरोध किया कि अपने पड़ोस में पौधे अवश्य लगाएं तथा उनका ख्याल भी रखें। विषय वस्तु विशेषज्ञ पशुपालन डॉक्टर विवेक प्रताप सिंह ने पर्यावरण परिवर्तन से स्वास्थ्य पर प्रभाव के बारे में बताते हुए वितरित किए जाने वाले औषधीय पौधों के बारे में विस्तार से बताया की सहजन, तुलसी तथा मीठी नीम के क्या-क्या औषधीय फायदे हैं तथा इनमें उपस्थित तत्व किस प्रकार से हमारे लिए लाभदायक हैं साथ ही यह भी बताया कि पर्यावरण परिवर्तन से हृदय संबंधी बीमारियां, नीरजलन संक्रामक बीमारियों का फैलना, कुपोषण आदि प्रमुख समस्याएं हैं। साथ ही बताया कि कृषि भूमि में भी पोषक तत्वों का क्षय होता है जिससे मनुष्य का पोषक तत्व ग्रहण करना प्रभावित होता है तथा पोषण व जीवन यापन स्तर भी प्रभावित होता है। तत्पश्चात किसान बंधुओं में सहजन तुलसी तथा मीठी नीम का पौध वितरण किया गया। इस अवसर पर कंप्यूटर प्रोग्रामर गौरव सिंह, लैब टेक्नीशियन जितेंद्र सिंह, लेखाकार शुभम पांडे तथा फॉर्म मैनेजर आशीष सिंह सहित किसान बंधु छेदी प्रजापति, रमापति यादव, राजाराम, चंद्रकेश, रामसेवक छोटू यादव आदि उपस्थित रहे।