फिल्म समीक्षा : गली बॉय-नयी उम्मीदों का गीत

नई दिल्ली। इस मंगलवार को अप्रत्याशित छुट्टी मिल गयी। लेकिन दिन जब यूँ ही गुज़र गया तो शाम बीतते बीतते ख्याल आया कि क्यों न फ़िल्म ही देख ली जाए। सात बजे ख्याल आया और आठ बजे के शो में हम मौजूद थे सिनेमा हॉल के अंदर। गली बॉय देखने के लिए।गली बॉय फिल्म निर्देशक जोया अख्तर की नयी फिल्म है। फिल्म धारावी स्लम में रहने वाले मुराद और उसके सपनों की कहानी है। मुराद के, रैप स्टार गली बॉय बनने की कहानी है। मुराद की मुख्य भूमिका में रणवीर सिंह जंचते हैं।

फिल्म का एक सीन है। मुराद और उसके पिता के बीच बहस हो रही है। मुराद के पिता की भूमिका निभा रहे विजय राज कहते हैं कि सपनों का सच्चाई से मेल खाना जरुरी होता है। इस पर मुराद कहता है कि सच्चाई अगर उसके सपनों से मेल नहीं खाती तो वो अपनी सच्चाई को बदल देना ज्यादा बेहतर समझता है। इस एक लाइन में पूरी फिल्म को समझा जा सकता है।

फिल्म रैप स्टार नेजी और डिवाइन की जिन्दगी पर आधारित है। इसलिए पूरी फिल्म में शुरु से अंत तक आपको रैप ही सुनाई पड़ेगा। फिल्म का संगीत ही फिल्म में ऊर्जा भरता है। गाने फिल्म का हिस्सा बनकर सामने आते हैं। ऐसे में रैप के अलावा किसी और तरह के संगीत की आशा आप फिल्म में नहीं कर सकते। फिल्म इस बात को सहज स्वीकार करती दिखती है। मुराद के गाने उसके परिवार वालों को समझ नहीं आते हैं। एक दृश्य में मुराद की मामी उसे कहती है- ‘अगर तुझे गाने ही गाने हैं तो तू गज़ल क्यों नहीं गा लेता, तेरे मामू को भी पसंद आएगी।’

नेज़ी और डिवाइन जैसे रैप स्टार नयी पीढ़ी के हीरो है। ये दोनों स्लम से निकल कर अपने रैप की बदौलत आज शोहरत बटोर रहे हैं। नेजी यानि नावेद शेख ने 2014 में आईपैड पर अपना पहला म्यूजिक वीडियो आफत बनाया। उसके बाद 2015 में नेज़ी और एमसी डिवाइन ने साथ मिलकर नया वीडियो ‘गली में’ बनाया। ये रैप गीत काफी चर्चित रहा। दोनों को ही इससे नयी पहचान मिली। इस गीत को कई फिल्मी हस्तियों ने सोशल मीडिया पर शेयर भी किया था। फ़िल्म में भी ये रैप उसी दमखम से नज़र आता है जिसे रणवीर सिंह ने खुद गाया है। ये रैप स्टार सोशल मीडिया की बढ़ती ताकत दिखाते हैं। सोशल मीडिया ने ही इन्हें नयी पीढ़ी का स्टार बनाया है। फिल्म के एक सीन में रणवीर सिंह अपने पिता को यू-ट्यूब पर अपना वीडियो दिखाते हैं और कहते हैं कि उनके वीडियो को चार लाख से ज्यादा लोगों ने देखा है। उनके पिता कहते हैं, इससे क्या हासिल होगा उन्हें। जवाब में रणवीर कहते हैं कि इसका मतलब है कि उनकी कदर हैं लोगों को। कल वो रहे या नहीं लेकिन उनका काम रहेगा लोगों के बीच।

जोया अख्तर अपनी पुरानी फिल्मों ‘जिन्दगी ना मिलेगी दुबारा’ और “दिल धड़कने दो’ के अभिजात्य वर्ग से निकल कर इस बार स्लम की गलियों में भटकती दिखती हैं। लेकिन आपसी रिश्तों का ताना-बाना और उनकी उलझने यहां भी है। पूरी फिल्म एक उदासी के बैकड्राप में गुजरती नजर आती है। मुराद का संघर्ष अपनी पहचान तलाशने के साथ साथ व्यक्तिगत स्तर पर भी चलता है। उसके अब्बू कम उम्र की नयी अम्मी घर ले आते हैं। उसके मामू जब उसकी मदद करते हैं तो उसमें एहसान ज्यादा होता है। ये टकराव परिवार में दिखता है। उसके दोस्तों से उसे मदद मिलती है। साथ ही उसका साथ देती है उसकी प्रेमिका सफीना।।आलिया भट्ट सफीना की भूमिका में हैं। उनका काम वाकई काबिले तारीफ है. सफीना का किरदार भी सही तरह से तराशा गया है। वो अपने प्रेमी से इस भावनात्मक स्तर पर जुड़ी है जो उसे उसके लिए काफी पज़ेसिव बना देता है। दूसरी कोई लड़की अगर मुराद को मैसेज भी कर देती है तो वो उससे हाथापाई करने से भी पीछे नहीं हठती है। उसे जो चाहिए उसके लिए वो अपने परिवार से झूठ बोलने से भी गुरेज नहीं करती।लेकिन वो सवाल भी उठाती है कि आखिर उसे झूठ बोलने की जरुरुत ही क्यों पड़ी। और जब वो ये पूछती है तो उसकी अम्मी के पास कोई जवाब नहीं होता। और फिर उसे जो थप्पड़ पड़ते हैं वो उनकी निराशा और हताशा को ज्यादा दिखाते हैं। अपनी बंदिशों को तोड़ने को ही अपनी आज़ादी मानने वाली सफीना के किरदार को आलिया ने बखूबी जिया है। एक जगह वो कहती हैं कि ज़िन्दगी में जब भी कुछ बेहतर मिले तो उसे ले लेना चाहिए। तब ऐसा लगता है कि वो अपनी उम्र की तमाम लड़कियों की आवाज़ बन गयी हैं।

इस फ़िल्म से सिद्धान्त चतुर्वेदी ने दमदार डेब्यू किया है। वो रणवीर के दोस्त एमसी शेर के किरदार में है। उनका किरदार एमसी डिवाइन से प्रेरित है। धारावी की गलियों में खुद की तलाश में भटक रहे रणवीर को वो उसकी नयी पहचान देते है – गली बॉय की। वो रणवीर को उसकी ताकत पहचानने को कहते हैं। वो कहते हैं – असलीपन को आने दे, नकली को जाने दे। और जब एक बार मुराद अपने हालात से पनपते विद्रोह को शब्द देता है तो फिर नयी राहें उसके लिए खुल जाती हैं।ऐसे में जब रणवीर ये कहते हैं – ‘अपना टाइम आएगा’, तो दर्शक भी उनके साथ जुड़ जाते हैं। और ये जुमला नयी पीढ़ी की उम्मीदों का गीत बन जाता है – अपना टाइम आएगा।

-अमित शर्मा ( लेख़क वरिष्ठ पत्रकार और प्रोफ़ेसर हैं )

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