संतोष नेगी। चमोली के पोखरी ब्लाक में विप्रो आर्थियन व संकल्पतरू फांउडेशन की ओर से शिक्षकों को पर्यावरणीय एक दिवसीय संगोष्ठी कार्यशाला के माध्यम से प्रशिक्षित किया गया हरेला का जीवन मे क्या महत्व है विस्तृत जानकारी दियी गयी कार्यक्रम संयोजक शिक्षक धनसिंह घारिया के नेतृत्व में आयोजन किया गया हरेला पर्व के अवसर पर खण्ड शिक्षा अधिकारी कार्यालय परिसर में वृक्षारोपण कार्यक्रम का आयोजन किया गया सभी वक्ताओं ने कहा हरेला पर्व के माध्यम से समाज को पर्यावरण से जोड़ने का प्रयास करना जरूरी है यह संस्कृति का भी प्रतिक है।
हरेला क्यों मनाया जाता है।
उत्तराखण्ड में श्रावण मास में पड़ने वाले हरेला को ही अधिक महत्व दिया जाता है! क्योंकि श्रावण मास शंकरभगवान जी को विशेष प्रिय है। यह तो सर्वविदित ही है कि उत्तराखण्ड एक पहाड़ी प्रदेश है और पहाड़ों पर ही भगवान शंकर का वास माना जाता है। इसलिए भी उत्तराखण्ड में श्रावण मास में पड़ने वाले हरेला का अधिक महत्व है सावन लगने से नौ दिन पहले आषाढ़ में हरेला बोने के लिए किसी थालीनुमा पात्र या टोकरी का चयन किया जाता है। इसमें मिट्टी डालकर गेहूँ, जौ, धान, गहत, भट्ट, उड़द, सरसों आदि 5 या 7 प्रकार के बीजों को बो दिया जाता है। नौ दिनों तक इस पात्र में रोज सुबह को पानी छिड़कते रहते हैं। दसवें दिन इसे काटा जाता है। 4 से 6 इंच लम्बे इन पौधों को ही हरेला कहा जाता है।
घर के सदस्य इन्हें बहुत आदर के साथ अपने शीश पर रखते हैं। घर में सुख-समृद्धि के प्रतीक के रूप में हरेला बोया व काटा जाता है! इसके मूल में यह मान्यता निहित है कि हरेला जितना बड़ा होगा उतनी ही फसल बढ़िया होगी! साथ ही प्रभू से फसल अच्छी होने की कामना भी की जाती है तथा जीवन सार्थक उदेश्य की ओर बढ़ता है।
इस अवसर पर पोखरी ब्लाक के 25 विद्यालयों ने प्रतिभाग किया जिसमे राजकीय शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष प्रदीप भण्डारी, मंडी भगत कण्डवाल ब्लाक अध्यक्ष प्रदीप विष्ट, एन एस नेगी विप्रो के कार्यक्रम प्रशिक्षण अशीष शाह रेखा पटवार मीनाक्षी राणा आदि मौजूद थे।