आकाश रंजन: वर्ल्ड मेन्टल हेल्थ डे के ठीक 2 दिन पहले यानि 8 अक्टूबर को नेटफ्लिक्स पर लीना यादव की बुराड़ी कांड पर लिमिटेड सिरीज़ रिलीज़ हुई है। इस सीरीज का नाम हाउस ऑफ़ सीक्रेट्स द बुराड़ी डेथ रखा गया है। यह एक डॉक्यूमेंट्री है जोकि काफ़ी अच्छी बनी है। लगभग 3 घंटे की सीरीज में एक एक मिनट तक लगातार आपको बांधे रखती है। मूल रूप से यह सीरीज बताती है कि किसी एक सोच में बंधे रहना किसी एक चीज़ में हमेशा लीन रहना आपकी जान भी ले सकता है। आस्था और मनोविज्ञान के बिच यह सीरीज घूमते रहती है। और अंत में आपको सोचने पर मजबूर करेगी कि हम जिस भी चीज़ या व्यक्ति में आँख मूंद कर विशवास करते है वो कितना सही और कितना गलत है। यह सीरीज इंसान की बिलीफ सिस्टम पर चोट करती है। किसी भी सोच से, ख्याल से, मानसिक ग़ुलामी से, आस्था से, घटना से या इतिहास से बंधे रहने से क्या हो सकता है कितना खतरनाक हो सकता है और कितना ज़रूरी है इससे निकलना ये सीरीज आपको 3 घण्टे में समझा देगी सहमा देगी और अंदर तक झकझोर कर रख देगी।
हाउस ऑफ सीक्रेट्स द बुराड़ी डेथ्स 2018 में दिल्ली के बुराड़ी इलाके में एक सामान्य भाटिया परिवार के घर की कहानी है। यह एक सत्य घटना पे आधारित है। यह सीरीज इसी परेशान करने वाली घटना की जांच से संबंधित है। मानसिक स्वास्थ्य के पहलू और मीडिया कवरेज की सनसनीखेज पत्रकारिता को भी बखूबी दिखाया गया है। इस घटना ने पूरे देश को जकड़ लिया था और किसी को भी ये बात हज़म नहीं हो रही थी कि एक परिवार के 11 लोगो की कैसे मृत्यु हो गयी। वो भी एक ही रात में एक साथ। यह सीरीज इसी घटना की चीर फाड़ करती है और सच्चाई को सामने लाने की कोशिश करती है।
सीरीज भारत के परिवारों और एक इंसान की गहराई पर प्रकाश डालती है कि कैसे कोई परिवार और एक इंसान सामने से ऊपर से सामान्य और अच्छा दिखता है। लेकिन अंदर ही अंदर किस तनाव किस विचार से किस तरह संलिप्त है जो उसे अंदर ही अंदर बीमार करता रहता है। जैसे अभी हाल के ही दिनों में हमने बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत के मामले में देखा कि इतना नाम शौहरत पैसा सम्मान और हमेशा खुश रहने के बावजूद किस तनाव से वो गुजर रहे थे जिसके कारण उन्होंने अपनी जान ले ली। सीरीज के ट्रेलर में मृत परिवार को एक शादी में नाचते और जन्मदिन मनाते हुए दिखाया गया है। इससे प्रतीत होता है कि घर में काफी खुशी का मौहाल है। लेकिन सच कुछ और ही है। अंदर ही अंदर भाटिया परिवार बीमार बहोत ही ज़्यदा बीमार है। इसी बीमारी के कारण एक ही रात में पूरा परिवार हमेशा के लिए शांत हो गया।
हत्या, सामूहिक आत्महत्या, या पूजा करने दौरान दुर्घटना आखिर क्या हुआ था उस रात को भाटिया परिवार के घर में ये जानने के लिए आपको ये सीरीज देखनी पड़ेगी। अंधविश्वास से लेकर सामूहिक मनोविकृति तक सीरीज कई कारणों पर आधारित है। लेकिन यह कोई स्पष्ट, निर्णायक उत्तर देने की कोशिश नहीं करती है। इसके बजाय निर्माता लीना यादव पुलिस अधिकारियों, पत्रकारों, चिकित्सा विशेषज्ञों और निश्चित रूप से मृत भाटिया परिवार के दोस्तों, रिश्तेदारों और पड़ोसियों की मदद से एक तरह का सामाजिक शव परीक्षण करती है जिससे इस घटना को समझने में मदद मिलती है। लीना यादव उन अंतरालों को देखती है जो दैनिक समाचार रिपोर्टों में एक वक़्त के बाद से ओझल हो गये और अनकहे से रह गए। अंततः मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता की कमी, पारिवारिक रहस्यों को गुप्त रखने का जुनून और समाज से अलग महसूस करने पर प्रकाश डालती है जो विडंबना यह है कि बहुत से परिवारों को इस पर गर्व होता है।
जिन लोगो को भूत प्रेत हॉरर फिल्मे देखना पसंद है वो तो इस सीरीज को आराम से देख सकते है लेकिन कमज़ोर दिल वाले रात के समय या अकेले देखने से बचे। वजह इसके बेहद ही डार्क रियल लाइफ फुटेज और बेहद डार्क बैकग्रौंड म्यूजिक स्कोर है। मरे हुए लोगो की तस्वीरो के साथ उनकी अंतिम संस्कार तक की तस्वीरें और वीडियोस देखना आपके रोंगटे खड़े कर सकता है। म्यूजिक स्कोर ए.आर.रहमान ने दिया है। जोकि बहुत हद तक डार्क है। भारत में इस तरह की फिल्मे सीरीज न के बराबर बनी है।
इस मामले ने कई सवाल खड़े किए है लेकिन आखिरकार सबसे बड़ी पहेली यह थी कि कैसे एक आदमी परिवार के 10 सदस्यों को कंट्रोल कर सकता है वो भी 11 सालो तक। जिसमे 80 साल से लेके 11 साल के बच्चे शामिल थे। हैरान करने वाली बात है की सभी युवा शिक्षित थे जिनमें से एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम कर रही थी और घटना से कुछ ही दिन पहले उसकी सगाई हुई थी।
अंत में ये सीरीज हमे सीखती है कि हमे अपनी आस्था पर परिवार पर इतिहास पर हर जगह हर वक़्त सवाल करना चाहिए और सवाल सुनना चाहिए। जिससे हम बेहतरी के लिए बढे न की मानसिक ग़ुलामी की ओर। केवल खुद को खुद की संस्कृति को श्रेस्ट माना बंद कीजिए अलग अलग संस्कृति वाले लोगो से मिलिए बात करिए समझिए। मानसिक रोग को स्वीकारिये बात करिए और डॉक्टर्स से संपर्क करिए। ये सब नहीं करेंगे बात नहीं करेंगे तो बुराड़ी जैसे सुशांत सिंह राजपूत जैसे कांड होते रहेंगे और हम कुछ कर समझ नहीं पाएंगे।