कोविड -19 महामारी के एक नए विश्वव्यापी उछाल में डेढ़ महीने और विशेषज्ञों की अब राय है कि ओमीक्रॉन को एक हल्के वेरिएंट के रूप में कहना गलत है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपने ताज़ा आदेश में कहा, पहले की लहरों के दौरान प्रभावित देशों ने जो देखा, उससे अस्पताल में भर्ती होने की संख्या कम है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यह वेरिएंट हल्का है। वैरिएंट को पहली बार नवंबर में दक्षिण अफ्रीका में पहचाना गया था और कहा गया था कि यह हल्का है क्योंकि यह गंभीर बीमारी का कारण नहीं बना है। अब, दुनिया भर में ओमीक्रान के मामलों की संख्या बढ़ रही है और कुछ देशों में अस्पताल में भर्ती होने की संख्या भी बढ़ रही है।
ताज़ा निष्कर्षों के बारे जानिए वैज्ञानिकों का क्या कहना है ?
डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक टेड्रोस एडनॉम घेब्रेयसस ने कहा कि ओमीक्रॉन पिछले वेरिएंट की तरह ही लोगों को अस्पताल में भर्ती होने को मजबूर कर रहा है। और लोगों को किन जान ले रहा है। इस तरह डेल्टा की तुलना में यह कम गंभीर प्रतीत होता है, खासकर उन लोगों को जिन्हें टीका लगाया जाता है।
भारतीय मूल के वैज्ञानिक रवींद्र गुप्ता, कैंब्रिज इंस्टीट्यूट फॉर थेराप्यूटिक इम्यूनोलॉजी एंड इंफेक्शियस डिजीज में क्लिनिकल माइक्रोबायोलॉजी के प्रोफेसर का मानना है कि एक सौम्य ओमाइक्रोन एक विकासवादी गलती है और अगला संस्करण अधिक विषैला हो सकता है।
वैज्ञानिकों ने कहा युवा लोगों और टीकाकृत युवाओं पर इसका प्रभाव कम गंभीर साबित होता है। लेकिन बुजुर्गों पर ओमीक्रॉन का प्रभाव गंभीर होता दिख रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार, ओमीक्रॉन के हल्के होने की वज़ह यह भी है कि डेल्टा वेरिएंट काफ़ी ख़तरनाक रहा है।
डॉ गुप्ता ने कहा कि ओमीक्रॉन हल्का है हमारे फेफड़ो पर काम घातक है।