जालौन। किसी बड़े संस्थान से एमबीए की डिग्री प्राप्त किसी व्यक्ति का नाम सुनते ही दिमाग़ में आता है कि बड़ा ऑफ़िस, अच्छी सैलरी और मजे की नौकरी होगी लेकिन ये जरुरी नही है कि हर एमबीए करने वाला सिर्फ नौकरी करके ही अच्छे पैसे बनाये, हमारे आस-पास कुछ ऐसे भी लोग हैं जो एमबीए करके खुद का स्टार्ट-अप शुरू करके एक बेहतर उद्यमी बनकर नई ऊँचाइयों को छूना चाहते हैं। इनमें से ही एक हैं अजीत प्रताप जिन्होंने IIIBM इंदौर से एमबीए करने के बाद जर्मनी की एक प्रतिष्टित कम्पनी में बिजनेस हेड की पोस्ट और 25 लाख रुपये का पैकेज ठुकरा करके मटर की खेती शुरू किया है।और खुद की कम्पनी बनाकर के 5 करोड़ का सालाना टर्न ओवर करते है।
जालौन जिले में महेवा ब्लाक के सरसई गाँव के रहने वाले अजीत प्रताप ने “नमामि भारत” से बात करते हुये बताया 2017 में जब वो वापव विदेश से अपने गाँव तो देखा कि गाँव की जमीन पथरीली और बंजर पड़ी हुई थी।कही पे थोड़ी बहुत अलसी छिटक देते थे तो एक दो कुन्तल हो जाती थी।लेकिन अजीत ने उस जमीन पर वैज्ञानिक विधि से खेती करना शुरू किया और मटर की खेती शुरू मौजूदा समय मे 25 एकड़ की जमीन पर खेती कर रहे है।
एक एकड़ में 15000 की लगात और 80 हजार का मुनाफ़ा होता है।
अजीत प्रताप ने बताया कि मटर की खेती कैश क्रॉप मानी जाती है इसमें एक एकड़ में 15000 रुपये की लागत आती है और मुनाफ़ा की बात करें तो एक एकड़ में तक़रीबन 80000 हज़ार रुपये का शुद्ध मुनाफ़ा होता है।उन्होंने आगे बताया कि मौजूदा समय मे किसानों को मटर का क्लस्टर बना कर खेती करावा रहे है।
बनाई खुद की कम्पनी और विदेश तक भेजते है मटर का बीज
अजीत प्रताप ने खुद का बीज विधायन संयंत्र लगा करके बीज की ग्रेडिंग करा उसको भारत ही नही नेपाल ,बांग्लादेश और यरोप के की देशों में सप्लाई करते है।इसके साथ ही गाँव की महिलाओ को घरेलू महिलाओं को मटर से रोजगार दे रहे है।इससे गांव की महिलाये शसक्त होने के साथ साथ अपने घर के निर्णय लेने में भी समर्थ हो रही है।
बड़े पैमाने पर होती है जालौन में मटर की खेती
जालौन जिले को मटर का गढ़ माना जाता है यहाँ हजारों हेक्टेयर किसान मटर की खेती करते है। मटर दलहन में अपना सबसे अलग स्थान रखती है। अगैती मटर की खेती अक्टूबर में कई जा सकती है।वही बुवाई के 45 दिन बाद हरी फली आ जाती है।जिसका बाज़ार में अच्छा भाव मिलने का चांस रहता है।वही दाल बनने के लिये
120 से 130 दिनों में तैयार हो जाती है।
कर्नाटक,महाराष्ट्र ,पंजाब इस प्रजाति की होती है ज़्यादा डिमांड
गोविंद वलभ पंत कृषि विश्वविद्यालय द्वारा तैयार की गई मटर की प्रजाति पीएसएम 3 ,ए.पी. 3 कर्नाटक और महाराष्ट्र के किसानो के लिये बहुत अच्छी मानी जाती है।जायद में किसान लोग इसकी बुवाई कर सकते है।इसमे 45 दिनों में फली आ जाती है।उत्पादन 20 कुन्तल प्रति हेक्टेयर होता है।वही एक एकड़ में एक से लेकर डेढ़ लाख रुपये की आमदनी हो जाती है।
कम पानी के लिये अपनाया स्प्रिंकलर सिंचाई विधि
बुंदेलखंड में पानी की बहुत किल्लत है,इसको ध्यान में रखते हुये मैंने स्प्रिंकलर सिंचाई विधि को अपनाया है।इसके अलावा मटर कम पानी वाली फ़सल है तो दोनों ही मायने में बुंदेलखंड में स्प्रिंक्लर सिंचाई बहुत ही कारगर है।इससे पौधों जितना पानी खाद जितनी मात्रा में चाहिये आप उसको दे सकतें है।और श्रम की बात करें तो फ्लड इरिगेशन की तुलना में स्प्रिंकलर में श्रम कम लगता है।