जामिया मिल्लिया इस्लामिया: 90 मिनटों में होगा सहायक प्रोफ़ेसर पद के 20 उम्मीदवारों का साक्षात्कार
यूजीसी के मानदंडों के अनुसार, सहायक प्रोफेसर के पद के लिए न्यूनतम योग्यता और पात्रता मानदंड को पूरा करने वाले को, साक्षात्कार के लिए कॉल लेटर प्राप्त होता है। दिल्ली विश्वविद्यालय और अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालय, समान मानदंडों का पालन करते हुए, साक्षात्कार के लिए अच्छी संख्या में ऐसे उम्मीदवारों को बुलाते हैं जिनका API 60 से अधिक होता है। यह साक्षात्कार कई दिनों तक चलता है, ऐसा होने से सभी उम्मीदवारों को चयन समिति के समक्ष उपस्थित होने अवसर प्राप्त हो जाता है।
इसके विपरीत जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय, पिछले कुछ वर्षों से, स्क्रीनिंग के शुरुआती चरण में ही अधिकतम उम्मीदवारों को बाहर करने का प्रयत्न करता है। जिसके कारण, बड़ी संख्या में भारत के शीर्ष विश्वविद्यालयों से पढ़े उज्ज्वल उम्मीदवारों का सहायक प्रोफ़ेसर बनने का सपना शुरुआती चरण में ही धराशायी हो जाता है।
सामाजिक कार्यकर्त्ता और दिल्ली हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले आकाश गुप्ता का कहना है, “जामिया में कुछ वर्षों से अनुचित नियम बना कर योग्य उम्मीदवारों को नौकरी से दूर रखा जा रहा है। विश्वविद्यालय प्रबंधन का मनमाना रवैय्या छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है। केंद्रीय विश्वविद्यालयों में अयोग्य लोगों के आने से शिक्षा का स्टार गिरने की पूर्ण सम्भावना रहती है।”
सूचना के अनुसार, जामिया में सहायक प्रोफ़ेसर जैसे महत्वपूर्ण पदों की भर्ती नियमों का ऐसा पेंच डाल दिया गया है की अधिक से अधिक योग्य उम्मीदवार अर्हता पूर्ण न करने के कारण साक्षात्कार से वंचित कर दिए जाते हैं। जिसके फलस्वरूप 1 पद के लिए मात्र 15-20 उम्मीदवारों को बुलाया जाता है। मज़ेदार बात यह है की जामिया में 20 उम्मीदवारों के साक्षात्कार के लिए मात्र 90 मिनट दिए जाते हैं। 24 दिसंबर को होने वाले साक्षात्कार के लिए 2-3.30 बजे सांय का समय निर्धारित किया, जिसका अर्थ है कि प्रत्येक उम्मीदवार का साक्षात्कार औसतन 4.5 मिनट होगा और सभी उम्मीदवारों का साक्षात्कार डेढ़ घंटे में समाप्त हो जाएगा।
“20 उम्मीदवारों के साक्षात्कार के लिए मात्र 90 मिनटों का कार्यक्रम यह स्वयं इंगित करने के लिए पर्याप्त है कि साक्षात्कार केवल एक औपचारिकता है, न कि एक वास्तविक उचित प्रक्रिया। कायदे में प्रोफ़ेसर जैसे पहत्वपूर्ण पद पर उम्मीदवारों का विस्तृत साक्षात्कार लिया जाना चाहिए जिसमे समयाभाव की सम्भावना नगण्य हो,” कुशल शर्मा, एडवोकेट, सर्वोच्च न्यायलय।
चयन में धांधली की सम्भावना इस बात से भी लगाई जा रही है क्योंकि सूत्रों के मुताबिक कई उम्मीदवारों को एक ही तिथि पर तीन अलग-अलग साक्षात्कारों में बुलाकर एक ही व्यक्ति को 2 – 3 मौके दिए गए हैं। नज़ीम हुसैन जाफरी, रजिस्ट्रार, जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय द्वारा 5 दिसंबर 2020 को साक्षात्कार के साक्षात्कार के लिए निमंत्रित करते हुए सूची जारी की गयी है। इन सूचियों के मुताबिक एक से अधिक साक्षत्कार तीन अलग-अलग पदों के लिए (सहायक प्रोफेसर के लिए 1 खुला पद, 1 – सहायक प्रोफ़ेसर, आधुनिक भारतीय इतिहास और एक एसोसिएट का पद) प्रोफेसर) एक ही चयन समिति के समक्ष प्रस्तावित हैं। इन सूचियों में जहाँ कइयों के पास तीन तीन साक्षात्कारों में जाने का मौका है वहीँ कई योग्य उम्मीदवारों को एक साक्षात्कार का भी मौका प्राप्त नहीं हुआ। मोहम्मद रइस खान नामक उम्मीदवार का नाम साक्षात्कार के लिए जारी की गयी तीन सूचियों में आया है।
नाम न छपने की शर्त पर सहायक प्रोफ़ेसर के पद पर साक्षात्कार के निमंत्रण से वंचित रहने वाले एक उम्मीदवार का कहना है, “वीसी और रजिस्ट्रार अपनी शक्तियों का खुलेआम दुरुपयोग करते हैं और अच्छे उम्मीदवारों को चयन समिति के समक्ष प्रस्तुत होने से रोक कर नियुक्ति से रोकते हैं।” उम्मीदवार चयन करने के लिए जामिया के एक और नियम को संदेह से देखा जा रहा है। इस नियम के मुताबिक जामिया में सहायक प्रोफ़ेसर सहित अन्य प्रोफ़ेसर की भर्ती में उन उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी जाएगी जिन्हे स्नातक एवं स्नातकोत्तर में प्रथम श्रेणी प्राप्त हुई हो। “जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय का यह नियम
बाकी केंद्रीय विश्वविद्यालयों से अलग है। केवल प्रथम श्रेणी के उम्मीदवारों को बुलाने का निर्णय जामिया प्रबंधन ने अपनी विशेष शक्तियों का प्रयोग कर किया है। कोई अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालय स्क्रीनिंग और नियुक्ति उद्देश्यों के लिए ऐसी शक्तियों का दुरुपयोग नहीं करता है।, ” अनुराग सिंह, एडवोकेट, सर्वोच्च न्यायलय।
एक देश, एक विधान, एक संविधान की सोच से जहाँ विभिन्न मोर्चों और नीतियों में समरसता लाने से सरकारी कार्यों में पारदर्शिता आयी है और सरकारी कार्यों में केंद्र सर्कार द्वारा सुगमता सुनिश्चित की जा रही है, वहीँ जामिया जैसे विश्वविद्यालयों का नियुक्ति के नियमों में बदलाव उन उम्मीदवारों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है जो सरकारी नौकरी की चाह में दिन रात मेहनत में लगे रहते हैं।