राहुल गांधी का पोल खोलने वाली एक किताब आई है। उसमें दावा किया गया है कि राहुल गांधी ने भारत सरकार के खिलाफ षड़यंत्र रचा है। इसमें विदेशी लोगों ने उनकी मदद की है। किताब का नाम ‘ बोफोर्स नहीं राफेल है’। उसके मुताबिक राहुल गांधी राफेल मामले में झूठ बोल रहे हैं और जनता को गुमराह कर रहे हैं।
किताब की माने तो एचएएल को राफेल बनाने वाली कंपनी ने साझीदार बनाया है। जबकि राहुल गांधी का कहना है कि उसे साझीदार नहीं बनाया गया है। किताब ने इस आरोप को खारिज किया है। उसके हिसाब से राफेल के 70 साझीदार यानी आफसेट पार्टनर है।
एचएएल और थिलायंस उनमें से एक है। सबसे बड़ा साझीदार रिलायंस नहीं है। हालांकि राहुल गांधी की माने तो रिलायंस को ही सारा लाभ दिया जा रहा है जो तथ्यात्मक रूप से गलत है। वह इसलिए क्योंकि राफेल सौदे में मुख्य भूमिका रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन ( डीआरडीओ) की है। उसे 9000 करोड़ रुपये का काम मिला है।
आफसेट के तहत राफेल बनाने वाली कंपनी दाॅसो को 30000 करोड़ रुपये भारत में निवेश करना है। उसमें से 9000 करोड़ रुपये का काम डीआरडीओ के पास है। तो सवाल यह है कि राहुल गांधी कैसे कह रहे हैं कि अनिल अंबानी को 30000 करोड़ रुपये मिला। इसका जवाब सीधा है। राहुल झूठ बोल रहे हैं।
ऐसा ही भ्रम वे एचएएल वाले मामले में भी फैला रहे हैं। उसे राफेल सौदे से अलग नहीं किया गया। वह उसका हिस्सा है। अलग करने की योजना तो सप्रंग सरकार की थी। तभी तो एचएएल की क्षमता बढ़ाने के दिए तत्कालीन कांग्रेस ने कुछ नहीं किया। किताब की माने तो 2010 और 2012 में कंपनी के पास सुखोई तक का काम करने के लिए पैसे नहीं थे। कंपनी की माली हालत बहुत खराब थी। लेकिन तब राहुल गांधी को एचएएल का ख्याल नहीं आया।
राहुल गांधी को एचएएल का ख्याल तब भी नहीं आया जब वायु सेना के लिए प्रशिक्षु विमान का ठेका तक उसे देने के लिए सप्रंग सरकार तैयार नहीं थी। दस्तावेजों से भरी यह किताब राफेल मामले में राहुल गांधी को बेनकाब करती है और मोदी सरकार को क्लीन चिट देती है।