सन्तोषसिंह नेगी / केदारनाथ रुद्रप्रयाग जिले में है दो दिनों से लगातार बारिश के बाद केदारनाथ में मौसम सुहाना हो गया है ऐसा लगता है मानो स्वर्ग पृथ्वी पर नजर आने लगा यात्रियों की संख्या में कमी आई है लेकिन केदारनाथ में निर्माण कार्य जोरो पर है ।
मंदिर का प्राचीन इतिहास
पुराण कथा अनुसार हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया। यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर अवस्थित है। यह मंदिर सर्वप्रथम पांडवों ने बनवाया था,
राहुल सांकृत्यायन के अनुसार ये मंदिर 12-13वीं शताब्दी का है। इतिहासकार डॉ. शिव प्रसाद डबराल मानते हैं कि शैव लोग आदि शंकराचार्य से पहले से ही केदारनाथ जाते रहे हैं, तब भी यह मंदिर मौजूद था। माना जाता है कि एक हजार वर्षों से केदारनाथ पर तीर्थयात्रा जारी है। कहते हैं कि केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के प्राचीन मंदिर का निर्माण पांडवों ने कराया था। बाद में अभिमन्यु के पौत्र जनमेजय ने इसका जीर्णोद्धार किया था।
मंदिर के कपाट खुलनेे बन्द होने का समय
मंदिर के कपाट खुलनेे बन्द होने का समय
दीपावली महापर्व के दूसरे दिन (पड़वा) के दिन शीत ऋतु में मंदिर के द्वार बंद कर दिए जाते हैं। 6 माह तक दीपक जलता रहता है। पुरोहित ससम्मान पट बंद कर भगवान के विग्रह एवं दंडी को 6 माह तक पहाड़ के नीचे ऊखीमठ में ले जाते हैं। 6 माह बाद मई माह में केदारनाथ के कपाट खुलते हैं तब उत्तराखंड की यात्रा आरंभ होती है
पंकज शुक्ला कहते है छः माह मंदिर और उसके आसपास कोई नहीं रहता है, लेकिन आश्चर्य की 6 माह तक दीपक भी जलता रहता और निरंतर पूजा भी होती रहती है। कपाट खुलने के बाद यह भी आश्चर्य का विषय है कि वैसी ही साफ-सफाई मिलती है जैसे छोड़कर गए थे भगवान शिव का साक्षात रूप है