हरियाणा के गुरुग्राम से एक हैरत अंगेज़ मामला सामने आया हैं। एक महिला द्वारा एक साल के अंदर 7 अलग अलग पुरुष के खिलाफ 7 रेप का मामले दर्ज कराया हैं। यह मामला तब सामने आया जब हरियाणा राज्य महिला आयोग ने हरियाणा राज्य पुलिस से एक महिला द्वारा दर्ज “फर्जी” बलात्कार के आरोपों की जांच करने को कहा है। कथित तौर पर, महिला ने एक साल के अंदर सात बलात्कार के मामले दर्ज कराये हैं। हरियाणा राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष प्रीति भारद्वाज दलाल ने मंगलवार को हरियाणा के पुलिस महानिदेशक पीके अग्रवाल को पत्र लिखकर मामले की जांच के लिए एक विशेष जांच दल गठित करने की मांग की हैं।
पत्र में, प्रीति भारद्वाज दलाल ने इस बात पर प्रकाश डाला कि आरोपी महिला ने पिछले एक साल में हरियाणा के गुरुग्राम जिले के सात अलग-अलग पुलिस थानों में सात अलग-अलग पुरुषों के खिलाफ बलात्कार का आरोप लगाते हुए सात मामले दर्ज करवाया हैं। दलाल ने मामले की जांच के लिए एक महिला और एक पुरुष अधिकारी की अध्यक्षता में एक एसआईटी के गठन का अनुरोध किया हैं। पत्र में कहा गया है कि एसआईटी तीन अन्य अधिकारियों का गठन कर सकती है। दलाल ने सख्त जांच का आह्वान किया क्योंकि इस मामले में संभवतः आपराधिक गतिविधियों की परतें थीं जो, जबरन वसूली, फीमेल फेटेल – हनी ट्रैपिंग के समान हो सकती हैं। दलाल ने लिखा, कानून दोधारी तलवार की तरह होती हैं। अगर कानून को किसी व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा के लिए बनाया जाता है, तो विरोधियों की स्वतंत्रता को कुचलने के लिए उनका दुरुपयोग भी किया जा सकता है।
7 में से 2 मामले झूठे पाए गए
कथित तौर पर, मामला तब सामने आया जब महिला ने हाल ही में सातवां पुलिस मामला दर्ज किया, जिसमें एक व्यक्ति पर शादी का वादा करके उसके साथ बलात्कार करने का आरोप लगाया गया था। सात में से दो मामले कथित तौर पर झूठे पाए गए हैं। आरोपी महिला ने कथित तौर पर उन पुरुषों को ब्लैकमेल किया, जिन पर उसने बलात्कार का आरोप लगाया था। और उन्हें उससे शादी करने के लिए मजबूर करने की कोशिश की थी। हरियाणा पुलिस ने उसके खिलाफ मामला दर्ज किया है। शिकायत के मुताबिक आरोपी ने 24 साल के एक शख्स को इसी साल अगस्त में रेप के एक मामले में ब्लैकमेल कर उससे शादी कर ली थी।
यह कहानी क्यों मायने रखती है?
यौन हिंसा पर भारत के कानूनों को मामले के दोनों छोर से आलोचना का सामना करना पड़ता है। कुछ कार्यकर्ता लिंग भेद पर न्यूट्रल रुख की वकालत करते हैं। तो कुछ यौन अपराधों के शिकार अक्सर शिकायत करते हैं कि इन अपराधों के लिए कानूनों को व्यापक परिभाषित करने की आवश्यकता है। जिसमें जबरदस्ती, मनोवैज्ञानिक दुर्व्यवहार, यौन अपराध आदि को दंडनीय अपराध के श्रेणी में डाला जाये। हालांकि, हरियाणा का यह ताजा मामला इस बात पर प्रकाश डालता है कि मौजूदा कानूनों का दुरुपयोग भी हो सकता है। और कैसे हो सकता है।
आइये हरियाणा के कुछ आपराधिक रिकॉर्ड देखते हैं
राज्य अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, 2018 और 2020 के बीच हरियाणा में पुलिस द्वारा निपटाए गए बलात्कार के लगभग 40 प्रतिशत मामलों को झूठा घोषित किया गया था। साथ ही, जिन मामलों में अदालती सुनवाई हुई, उनमें दोषसिद्धि दर हर 10 में से 2 घटनाओं से कम थी। पुलिस ने तीन साल के दौरान में 4,093 मामलों का निपटारा किया, जिनमें से 1,650 (40.3 प्रतिशत) बलात्कार के मामले झूठे पाए गए थे।
भारत में झूठे आरोप
उदाहरणों का हवाला देते हुए, एक अधिकारी ने कहा कि अक्टूबर 2020 में, एक महिला ने मौजूदा पुलिस वाले से बलात्कार का मामला वापस लेने के लिए कथित तौर पर 1 करोड़ रुपये की मांग की थी। जिसके बाद गुरुग्राम पुलिस ने उस महिला के खिलाफ जबरन वसूली का मामला दर्ज किया। अधिकारी ने कहा कि सितंबर 2019 में, रोहतक की एक अदालत ने कथित तौर पर एक झूठी सामूहिक बलात्कार की घटना की रिपोर्ट करने के लिए एक महिला के खिलाफ मामला दर्ज करने का आदेश दिया था।
भारत में पुरुषों पर झूठा मामला
हरियाणा के डीजीपी पीके अग्रवाल ने कहा, बलात्कार और शादी से जुड़े विवादों सहित कई मामलों में शुरू में बलात्कार का आरोप लगाया जाता है, लेकिन बाद में सबूतों के अभाव में आरोप हटा दिए जाते हैं। सामूहिक बलात्कार की घटनाओं में, कुल 139 में से 55 मामलों (39.6 प्रतिशत) को 2018 में झूठा घोषित किया गया था। इसी तरह के आंकड़े 2019 में 157 में से 80 (51 प्रतिशत) और 2020 में 159 में से 72 (45.3 प्रतिशत) थे।
2018 से 2020 में झूठे बलात्कार के आंकड़े
2018 में, एक ही महिला पर बार-बार बलात्कार से संबंधित 276 में से 104 शिकायतें (37.7 प्रतिशत) झूठी पाई गईं। इसी तरह की गिनती 2019 में 184 में से 60 (32.6 प्रतिशत) और 2020 में 403 शिकायतों में से 181 (44.9 प्रतिशत) थी। जब यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम की धारा 4 और 6 के तहत बाल बलात्कार की बात आती है, तो झूठे मामलों की कहानी वही रहती है। 2018 में 1,046 में से कुल 89 एफआईआर (8.5 फीसदी) मामलो को झूठा घोषित किया गया था। 2019 में यह 11 फीसदी (1,147 में से 126 झूठे) निकले थे। 2020 के लिए गिनती 12.4 प्रतिशत थी (1,097 में से 136 मामले झूठे घोषित किए गए)। यहां दोषसिद्धि दर 2018 में 32.5 प्रतिशत, 2019 में 32.4 प्रतिशत और 2020 में 25.2 प्रतिशत थी।