इसी साल अगस्त में अमेरिकी सेना जबसे अफगानिस्तान से बाहर गयी हैं, तब से तालिबान ने अफगान लोगो की नाम के दम कर रखा हैं। अब आलम ऐसा हैं कि अफगानी लोगो को खाने के वांद्दे हैं। हालत इतने बुरे होगये हैं कि, लोग अपनी बेटियों को बेचने पर मजबूर हो गये हैं। ताकि वे अपने और अपने दूसरे बच्चे को खिला पीला सके। संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों ने सोमवार को चेतावनी दी कि अफगानिस्तान दुनिया के सबसे खराब मानवीय संकटों में से जूझ रहा हैं। लगभग आधे से अधिक देश भीषण भोजन की कमी का सामना कर रहा हैं।
पहले कोरोना फिर तालिबान और अब सूखा उफ़ ये अफगानिस्तान का दुःख काहे ख़त्म नहीं होता ?
बीबीसी के एक रिपोर्ट के अनुसार तालिबान राज में अफगानी लोगो के पास कमाई का कोई साधन नहीं बचा हैं। दो वक़्त की रोटी खाने के भी वांदे हैं। किसी भी तरह दिल पर पत्थर रख कर लोगो अपनी बेटियों को बेचने पर मजबूर हो गए हैं। किसी की 6 माह की बेटी हैं तो किसी की 6 साल की कुल 18 से कम बेटियों को बेचा जा रहा हैं। ताकि घर परिवार में दूरसे लोगो का कुछ दिन पेट भर सके। किसी ने 35 हज़ार में अपनी बेटी को बेचा है तो किसी ने 1 लाख में। इंसानियत का इससे बड़ा नंगा नाच और कही नहीं हुआ होगा जितना यहाँ हो रहा हैं। सबसे बड़ा दुःख तो ये हैं कि इन छोटी छोटी बच्चियों जिनको बेचा जा रहा है वो अपने पैर पर चलना सीख जएंगी तब इन मासूमो को खरीदने वाले लोग अपने साथ ले जायेंगे। अगर धरती में कही आग का गोला हैं तो वह फट जाये, अब इंसान इस धरती पर रहने लायक नहीं बचे हैं।
क्या कर रही क्रूर तालिबानी सरकार ?
तालिबान राज में अफगान लोगो में बढ़ती भुखमरी को देखते हुए, तालिबान सरकार ने भोजन पर आयात शुल्क घटाया हैं। नकदी पैसो के कमी और बढ़ती कीमतों के बीच तालिबान सरकार ने खाने पीने के सामानो पर आयात शुल्क में कटौती की है। अफगान में कड़ाके की ठण्ड होती हैं, इस ठण्ड की वजह से भी अफगानों के लिए अपने परिवारों को खिलाने के लिए और अधिक कठिन हो गया है। अफगानिस्तान में खाने पीने का सामान का एक बड़ा हिस्सा दूसरे देशों से आता हैं। जिससे वह पहले से ही खाने पीने की कमी से जूझता रहता हैं। लेकिन अगस्त में अमेरिकी सेना के बहार जाने के बाद अफगान में सप्लाई चेन खतरे में हैं।
तालिबान सरकार के प्रवक्ता अहमद वली हकमल ने फोन पर कहा कि वित्त मंत्रालय ने एक टन आटे के लिए आयात शुल्क को 3,095 अफगानियों से घटाकर 1,000 अफगानी ($11) कर दिया है। जबकि एक टन खाना पकाने के तेल के लिए आयात शुल्क 5,885 अफगानियों से आधा करके 2,012 अफगानी कर दिया गया है। एक टन चीनी के लिए आयात शुल्क 3,483 अफगानियों से घटाकर 1,548 अफगानी कर दिया गया।
हकमल ने कहा कि अफगानिस्तान अपनी आधी से अधिक खाद्य जरूरतों को पड़ोसी देशों, विशेष रूप से पाकिस्तान, कजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान से लाता है। उन्होंने कहा कि देश चावल का एक महत्वपूर्ण खरीदार भी है, जो सालाना लगभग 600,000 टन चावल की खपत करता है। हकमल ने कहा कि कुछ आयातों की तस्करी ड्यूटी से बचने के लिए की गई थी। और कुछ सीमा शुल्क अधिकारियों को मदद के लिए रिश्वत दी गई थी। उन्होंने कहा कि तालिबान भ्रष्टाचार को रोकने के लिए काम कर रहा हैं। और इसके परिणामस्वरूप पिछले महीने की तुलना में ड्यूटी से होने वाला राजस्व दोगुना होकर 40 लाख डॉलर प्रतिदिन हो गया है।
25 अक्टूबर को संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में चेतावनी दी गई थी कि, गहराते आर्थिक संकट के कारण अफगानिस्तान की आधी से अधिक आबादी अगले महीने से भीषण भूखमरी का सामना करेगी। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन ने कहा कि डेटा संकलित होने के बाद से 10 वर्षों में 22.8 मिलियन लोग सबसे ज़्यदा जोखिम में हैं। यह तालिबान के सत्ता में आने से पहले अप्रैल में पिछले आकलन से 37% अधिक है। समस्या के समाधान के लिए तालिबान ने इस सप्ताह काबुल में “काम के बदले भोजन” कार्यक्रम का अनावरण किया। कृषि, सिंचाई और पशुधन मंत्रालय ने कहा कि योजना 40,000 लोगों को नौकरी देने की थी, जिन्हें भुगतान के रूप में गेहूं की बोरी मिलेगी।
क्या कहना है बाकि देशो का ?
अंतर्राष्ट्रीय समुदाय संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से सहायता के लिए सहमत हो गया है, क्योंकि तालिबान से निपटने के तरीके पर कोई ठोस सहमति नहीं है। अमेरिका और उसके सहयोगियों ने बार-बार कहा है कि, अफगानिस्तान सरकार को शब्दों के बजाय कार्यों से आंका जाएगा। चीन ने अफगानिस्तान को मानवीय सहायता प्रदान करने की योजना बनाई है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियन ने बुधवार को एक समाचार ब्रीफिंग में कहा, चीन अमेरिका और पश्चिमी देशों से प्रतिबंध हटाने का आग्रह करता है। सभी पक्षों से अफगान तालिबान के साथ तर्कसंगत और व्यावहारिक तरीके से जुड़ने का आह्वान करता है। तालिबान का अब तक का रिकॉर्ड दिखाता है कि जी-20 मदद के लिए अनिच्छुक क्यों है ऐसी खबरें हैं कि कुछ देश पहुंच सकते हैं। फाइनेंशियल टाइम्स ने बताया कि यूरोपीय संघ मानवाधिकारों की पैरवी करने और मानवीय सहायता के लिए काबुल में अपने राजनयिक कार्यालय को फिर से खोलने की योजना पर विचार कर रहा है। तालिबान ने मोटे तौर पर इस फैसले का स्वागत किया है।