पवन पांडे। महायोगी गोरखनाथ कृषि विज्ञान केंद्र, पीपीगंज, गोरखपुर के पशुपालन वैज्ञानिक डॉ विवेक प्रताप सिंह बताते हैं कि गर्मी के मौसम में पशु के बीमार होने की आशंका बढ़ जाती है लेकिन यदि उचित देखरेख व खान-पान संबंधी कुछ बुनियादी बातों का ध्यान रखा जाए तो गर्मी में पशु को बीमार होने से बचाया जा सकता है। साथ ही अगली व्यांत में अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है। गर्मियों में पशुपालको को सामने बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है उन्ही में से एक है पशुओ में अपच की समस्या। अपच होने पर पशु चारा खाना कम कर देता है, खाने में अरुचि दिखता है तथा पशु को बदहजमी हो जाती है।
इस समय पशु को पौष्टिक आहार न देने पर अपच व कब्ज लगने की संभावना होती है। अधिक गर्मी होने पर कई बार पशु मुंह खोलकर साँस लेता है जिससे उसकी लार बाहर निकलती रहती है। जिसके कारण पशु शरीर को ठंडा रखने हेतु शरीर को चाटता है जिससे शरीर में लार कम हो जाती है। एक स्वस्थ पशु में प्रतिदिन 100-150 लीटर लार का स्त्रवण होता है जो रुमेन में जाकर चारे को पचाने में मदद करती है। लार के बाहर निकल जाएं पर रुमेन में चारे का पाचन प्रभावित होता है जिससे गर्मियों में अधिकतर पशु अपच का शिकार हो जाता है। पशु का कम राशन लेना या बिल्कुल बंद कर देना इसका मुख्य लक्षण है। पशु का सुस्त हो जाना।
गोबर में दाने का आना जिसके फलस्वरूप उत्पादन का प्रभावित होना। इससे बचने के लिए पशु को हर्बल दवा रुचामैक्स की 15 ग्राम बड़े पशुओ को, 5 से 7.5 ग्राम बछड़ों बछड़ियों को तथा भेड़ व बकरीयो को 3 से 5 ग्राम मात्रा दिन में दो बार 2-3 दिनों तक देनी चाहिए। पशु को उसकी इच्छानुसार स्वादिष्ट राशन उपलब्ध करवाने के साथ-साथ स्वच्छ पानी की व्यवस्था करनी चाहिए। यदि 1-2 दिन बार भी पशु राशन लेना न शुरू करे तो पशु चिकित्सक की मदद लेकर उचित उपचार करवाना चाहिए। आजकल पशुपालकों के पास भूसा अधिक होने से वह पाने पशुओं को भूसा बहुतायत में देते हैं ऐसे में पशुओं का हाजमा दुरुस्त रखने एवं उत्पादन बनाएं रखने हेतु पशु को रुचामैक्स की 15 ग्राम मात्रा दिन में दो बार 7 दिनों तक देनी चाहिए।
इससे पशु का हाजमा दुरुस्त होगा और दुग्ध उत्पादन भी बढ़ता। पशुओं का उत्पादन क्षमता बनाये रखने के लिये उनके आहार में खनिज लवण एवं साधारण नमक का प्रयोग अवश्य करें। पशुओं के लिये पर्याप्त मात्रा में हरे चारे के प्रबंध करें।