लखीमपुर खीरी।मनुष्य ने पशुओं को उपभोग का साधन बना दिया है। हम प्रकृति के स्वभाव के विपरित इनका इस्तेमाल करते हैं। मनुष्य वर्षों पहले अपनी जरूरत के हिसाब से जानवरों को जंगल से ले आया। जैसे जिस कुत्ते का काम शिकार करना था, उसे हमने पालतू बना दिया। गाय को हमने अपने उपभोग के लिए खूंटे से बांध दिया।लेकिन अब जरूरत जब जरूरत निकल गई तो हमने उन्हें लावारिस छोड़ दिया।लेकिन आज के इस बदलते परिवेश में वन्यजीव सप्ताह विशेष में पढ़िए एक अनोखे डॉग लवर की कहानी…
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी ज़िले में पलिया क़स्बे के रहने वाले 45 वर्षीय डॉग लवर श्यामा प्रसन्न उर्फ लाल की बहुत ही अनोखी कहानी है जो देश की राजधानी दिल्ली में स्थित ऊर्जा और संसाधन संस्थान में क्षेत्र अन्वेषक की नौकरी को छोड़ कर के पिछले दस सालों से सड़कों पर घूमने वाले घायल आवारा कुत्तों को अपने घर पर रख कर उनका इलाज करतें चले आ रहे हैं।आज इसी कार्य को लेकर कस्बे में अब उन्हें सब डॉ लाल भैया कह कर के बुलाते हैं।लाल ने नमामि भारत से बात करते हुए बताया कि वो जब भी फील्ड पर जाते थे तो सड़क के किनारे जो भी बेजुबान जानवर घायलावस्था में मिल जाता तो उसका ईलाज किए बिना वो खाना नही खाते है।
घायल जानवरों को घर पे करते हैं भर्ती उन्ही के साथ करते हैं दिन की शुरुआत।
लाल घायल जानवरों को अपने घर पे लाकर भर्ती करते हैं।उन्हीं के साथ में खाना खाना उन्हीं के साथ सोना डाक्टर लाल की आदत हो गई हैं। अपने घर पर इस समय 50 से अधिक कुत्तो को पाल रखा है।सुबह पांच बजे सोकर उठना सभी के साथ सैर पर जाना उसके बाद उनके खाने का प्रबंध और उनका ईलाज करना डाक्टर लाल की आदत में शामिल हो गया है।आगे बताते कि क़स्बे के लोग उनके पास अपने पालतू पेट्स का ईलाज कराने आते हैं।उससे जो पैसा मिलता है वो पैसों से वो घर पर रह रहे बीमार पेट्सो के लिए दवाइयां और खाने का प्रबंध करते हैं।
डाक्टर यशवंत सिंह से मिली सेवा भाव की प्रेरणा
श्यामा प्रसन्न सेन उर्फ लाल ने बताया वर्ष 2009 में पशु चिकित्साधिकारी डॉ यशवंत सिंह की तैनाती के दौरान पलिया पशु चिकित्सालय में अपने टॉम (कुत्ता) का ईलाज कराने जाते थे। इस दौरान उन्होंने मुझे बेजुबानों के प्रति मेरा प्यार देख उन्होंने मुझे जानवरों के ईलाज करने की बहुत सी जानकारी दी।जिसके बाद मैंने उन्ही से प्रेरणा लेकर अब तक 50000 बेजुबानों की जान बचा चुका हूं।