नई दिल्ली। इंटरनेशनल मेंस डे के पूर्व संध्या पर सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन (एसआईएफएफ) और कई अन्य गैर सरकारी संगठनों के सदस्यों ने 17 नवंबर को दिल्ली के जंतर मंतर दिल्ली में “पुरुष आयोग” और “साझा पेरेंटिंग और संयुक्त जिम्मेदारी” की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन किया और संस्थागत भेदभाव और भारत में पुरुषों की सुरक्षा की कमी के खिलाफ नारेबाजी की तथा आयोग ना बनाने की स्थिति में नोटा को हथियार बनाने का अल्टीमेटम दिया है। वकील और पुरुष अधिकार कार्यकर्ता रोपेंशु प्रताप सिंह और बरखा त्रेहन ने “पुरुष आयोग” की मांग रखी और कहा कि इस देश में जानवरों के लिए भी कमीशन है लेकिन पुरुषों के लिए नहीं, और इसके प्रभाव के रूप में भारत में पुरुषों के जीवन को अपराधी बनाया जा रहा है। श्री रूपेंशु ने बलात्कार कानून कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न और घरेलू हिंसा कानून जैसे जेंडर न्यू़्ट्रल कानूनों की मांग की।
कुमार एस रतन ने बच्चों के लिए अलग मंत्रालय और एसपीजेआर (साझा पेरेंटिंग और संयुक्त जिम्मेदारी) के कार्यान्वयन की मांग की और माता-पिता के बीच अलगाव में बच्चों के जीवन की चिंता को बताया। आम तौर पर बच्चों की कस्टडी माता को दे दिया जाता है और फिर बच्चे अपने पिता के प्यार और देखभाल के अधिकार से वंचित होते हैं। उन्होंने आगे कहा कि चूंकि बच्चा एक युवा व्यक्ति है, इसलिए उन्हें कानून द्वारा parenting के लिए “कस्टडी” कैसे दिया जा सकता है, इसलिए इसका समय “इसे बाल जीवन पेरेंटिंग” के साथ सकारात्मक अर्थ में बदलना है।
एक प्रमुख पुरुष अधिकार कार्यकर्ता विक्रम बिस्यार ने कहा कि पत्नी को गुजाराभत्ता देने का कोई फार्मूला होना चाहिए, सामान्य रूप से पत्नी पति की आजीवन आय की मांग करती है और इसके कारण केस वर्षों तक चलता रहता है। उन्होंने कहा कि झूठे मामलों में शिकायतकर्ता को भी समान दंड देने का प्रावधान होना चाहिए।दर्शनकारियों में मनमीत सिंह, राजकुमार शर्मा, मनोज कुमार, बरखा ट्रेहन, गुरमीत सिंह, लोकेश यादव, केडी झा, अजित चौधरी मौजूद रहे।
पुरुषों के संगठन ने सरकार को नोटा वोट अल्टीमेटम दिया।
अगले 2 वर्षों में, लगभग 1.7 करोड़ युवा पुरुषों का विवाह भारत में होगा, और पिछले 10 वर्षों में, 50 लाख से अधिक पुरुषों को पहले से ही दुर्व्यवहार, झूठे दहेज और बलात्कार के मामलों का सामना करना पड़ा और उन्हें अपने बच्चों तक से मिलने नही दिया जा रहा है। भारत में कानूनों के मुताबिक पुरुषों के पास लगभग कोई अधिकार नहीं है, जब पुरुषों पर महिलाओं द्वारा क्रूरता के नियमों की बात आती है तो पुरुषों के साथ खुले भेदभाव होते हैं। पुरुष एक संस्था में चल रहे हैं जो उन्हें दूसरे श्रेणी के नागरिक या दास की तरह बना देता है। 12 साल से 80 वर्ष की आयु वर्ग के 1 करोड़ पुरुष झूठे बलात्कार, झूठी मीटू और झूठी यौन उत्पीड़न के मामले झेल रहे हैंक्योंकि भारत सरकार और सुप्रीम कोर्ट ऐसी महिलाओं और अन्य लोगों को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाती। पीआईएल दाखिल करना भारत में बहुत महंगा है और पुरुषों को प्रतिष्ठा, सामाजिक सम्मान और यहां तक कि उनके करियर खोने का जोखिम होता है।
एसआईएफएफ और पुरुषों के सभी अन्य गैर सरकारी संगठनों ने इन सभी करोड़ों और उनके परिवार के सदस्यों से अनुरोध करते हुए जागृत होकर अगले आम चुनाव में नोटा (उपरोक्त में से कोई भी) वोट देने का फैसला किया है अगर सरकार उनकी मांगों पर ध्यान नही देती। इस सोशल मीडिया युग में पुरुषों की इस मांग पर ध्यान नही दिया जाता तोकरोड़ों पुरुष न केवल उनके खिलाफ मतदान करेंगे, बल्कि उनके खिलाफ अभियान भी चलाएंगे।
#MeToo आंदोलन और सरकार की प्रतिक्रिया:
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प निर्दोष युवा पुरुषों के लिए खड़े थे और लोगों को चेतावनी दी “It is a very scary time for young men in America, where you can be guilty of something you may not be guilty of.”
अमेरिकी राष्ट्रपति को सच्चाई और लोकतंत्र के लिए खड़े होने का साहस था। वहीं भारत सरकार और नारीवादी, निर्दोष पुरुषों और परिवार झूठे मामलों से पीड़ित पुरुषों की सुरक्षा के लिए कोई मंशा नहीं है।
इस चुनाव सत्र में राजनीतिक दलों से सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन माँग किया है कि सरकार और न्यायालयों द्वारा पुरुषों और उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ संस्थागत भेदभाव को खत्म किया जाय और एक जोड़े के बीच सभी वैवाहिक विवादों से निपटने के लिए एकल खिड़की प्रणाली की व्यवस्था हो अलगाव और तलाक के दौरान बच्चों की साझा पेरेंटिंग और संयुक्त जिम्मेदारी की व्यवस्था हो, इसके साथ ही घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न और बलात्कार के झूठे आरोपों से पुरुषों की रक्षा के लिए कानूनों में संशोधन हो जैसी मांग रखी है।