झूठे रेप केस मामलों पर खट्टर के बयान का “मेंस राइट्स एक्टिविस्ट” ने किया समर्थन

नई दिल्ली। सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन के समन्वयक कुमार एस रतन ने सीएम मनोहरलाल खट्टर की सराहना करते हुए की वो सच्चाई के साथ खड़े हैं और सच बोलने की हिम्मत दिखाई है।उन्होंने युवा पुरुषों के मानवाधिकारों की रक्षा करने के लिए अपनी पूरी कोशिश की | गौरतलब है कि रेप मामलों पर हरियाणा के CM खट्टर ने कहा था कि “रेप और छेड़छाड़ की घटनाएं 80 से 90 प्रतिशत जानकारों के बीच में होती हैं इकट्ठे घुमते रहते हैं और एक दिन थोड़ी गड़बड़ हो गई, तो उस दिन उठाकर के एफआईआर करवा देते हैं कि इसने मुझे रेप किया”

महत्वपूर्ण बात यह है कि उनका भाषण महिलाओं के खिलाफ नहीं था बल्कि पुरुषों के खिलाफ व्यवस्था में नकारात्मक विचार को सुधार और बदलने के प्रति था।लेकिन तथाकथित नारीवादी जो खुद इज़्ज़त नहीं करना चाहते वे अपने निहित स्वार्थ के कारण श्री खट्टर को झुकाने का प्रयत्न कर रहे हैं |

NCRB के आंकड़ों के अनुसार लगभग 75% बलात्कार का मामला झूठा पाया गया है और यदि आप इन सभी मामलों में देखते हैं, तो ज्यादातर मामलों को या तो गुस्से में या पैसे के लिए या आपसी विवाद के कारण दायर किया जाता है । तो ऐसी परिस्थितियों में, यह कहना गलत नहीं होगा कि मामले विवाद का परिणाम हैं ।हमारे ऑर्गेनाइजेशन ऐसे कई मामलों के लिए नियमित रूप से इस तरह के कॉल प्राप्त कर रहे हैं कि जोड़े रिश्ते में थे और अब वे बलात्कार पीड़ित हैं।

कुमार एस रतन ने कहा कि देश में पुरुषों की स्थिति हर दिन बदतर होती जा रही है, और जांच एजेंसियों एवं न्यायिक प्रणालियों में पुरुषों के लिए पक्षपातपूर्ण विचार है, जिसे आसानी से #MeToo अभियान में देखा जा सकता है। देश में पुरुषों को कभी भी महिलाओं द्वारा अपराधी बनाया जा सकता है और पुरुषों को झूठे मामलों से बचाने के लिए एक भी कानून नहीं है साथ ही साथ देश में कोई मजबूत कानून नहीं होने के कारण शिकायतकर्ता को झूठा मामला दर्ज करने का कोई डर नहीं है |

#MeToo अभियान सिस्टम पर एक मजाक है

आज जहाँ नारी के सशक्तिकरण में स्थानीय निकायों से लेकर नगर,जिला,राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर अनेक संस्थाएं सक्रिय है, भारतीय संसद के अलावा सारे राजनैतिक दल सजग व सक्रिय हैं नारी सशक्तिकरण के नाम पर भारतीय समाज में एक होड़ सी लग रही है, आज की तारीख में भारतीय नारी के पक्ष में लगभग 49 कानून हैं, जबकि पुरुषॉं,लड़्कों,बालकों के हितों की रक्षार्थ एक भी कानून नही है, इस क्षेत्र में सरकारी स्तर पर एक भी संस्था नहीं हैं जहां पर पुरुष अपने पर हो रहे अत्याचारों के बारे में शिकायत कर सके, अपनी असहनीयवेदना का बखान कर पाए।

बलात्कार या दहेज उत्पीड़न या घरेलू हिंसा जैसे संगीन आरोप में देश में किसी भी पुरुष का आरोप लगाना आसान हो गया है क्योंकि जांच एजेंसियां ​​जांच करने में न तो इच्छुक हैं न ही काम करना चाहती हैं और साथ ही इनके व्यवहार भी पक्षपातपूर्ण होते हैं । इसलिए ऐसी परिस्थितियों में हम MRA, श्री खट्टर को उनके विचार के लिए नोबेल पुरस्कार का हकदार मानते हैं क्योंकि कोई भी अपने राजनीतिक करियर को पुरुषों के लिए बोलना नहीं चाहता, जिसकी उन्होंने परवाह नहीं की।हम MRA ऐसे समय पर श्री खट्टर का समर्थन करना कभी नहीं भूलेंगे क्यूंकि हम उन लोगों को समर्थन देने के लिए प्रतिबद्ध हैं जो पुरुष आयोग और पुरुष मंत्रालय बनाने में सहायता करेंगे।

 

News Reporter
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