1- मोदी मैजिक और व्यक्ति केंद्रित चुनाव
साल 2019 का ये आम चुनाव मोदी मैजिक और मोदी विरोध पर लड़ा गया। नतीजा हम सबके सामने है। भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में ऐसा 48 बरस बाद हुआ है। 1971 का आम चुनाव व्यक्ति केंद्रित इंदिरा गांधी और इंदिरा गांधी के विरोध में लड़ा गया था। तब विपक्ष ने इंदिरा हटाओ का नारा दिया लेकिन इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया और लोकसभा की 352 सीटें जीतीं थी। 2019 का पूरा चुनाव नरेन्द्र मोदी पर केंद्रित हो गया। विपक्ष ने मोदी हटाओ का नारा दिया और मोदी ने गरीबी, भुखमरी, भ्रष्टाचार हटाओ का नारा दिया जिसे जनता ने जनादेश में बदल दिया। 2014 के लोकसभा चुनाव के चेहरे भी मोदी ही थे लेकिन तब विपक्ष की घेराबंदी इस तरह की नहीं थी जैसी इस बार हुई। सबसे ज्यादा सीटें देने वाले उत्तर प्रदेश में बीएसपी और एसपी ने गठबंधन कर लिया। विपक्ष का विरोध ऐसा की सारे मुद्दे गौड़ हो गए। चुनाव के केन्द्र बिंदु सिर्फ मोदी हो गए। इसलिए मोदी मैजिक और मोदी विरोध में मोदी मैजिक कामयाब रहा। नरेन्द्र मोदी का पिछला इतिहास यही बताता है कि वो विरोध में सबसे ज्यादा चमके हैं और राजनीति के अजातशत्रु बनकर निकले हैं।
2- पुलवामा हमला और राष्ट्रवाद
पुलवामा हमले के बाद मोदी सरकार ने जिस तरह पाकिस्तान को कड़ा जवाब दिया, पाकिस्तान में घुसकर जिस तरह एयर स्ट्राइक की, उससे ये संदेश गया है कि ऐसी स्ट्राइक मोदी सरकार में ही संभव है। उड़ी हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट में हुई एयर स्ट्राइक ने जनता का विश्वास मोदी सरकार पर और बढ़ा दिया। साल 2008 में यूपीए सरकार के दौरान मुंबई हमला इससे भी बड़ा था और उस वक्त मनमोहन सरकार पाकिस्तान को कड़ा जवाब नहीं दे पाई थी। इसलिए एयर स्ट्राइक के बाद जनता में ये संदेश गया कि ऐसी कार्रवाई सिर्फ मोदी सरकार में ही मुमकिन है। यानी कांग्रेस के शासन में ऐसी कार्रवाई संभव नहीं है। इसलिए राष्ट्रवाद ने बड़ा जनमत तैयार किया। बीजेपी का ये स्लोगन-मोदी है तो मुमकिन है-जनमत तैयार करने मेंनई पटकथा लिख दी।
3- कांग्रेस बनाम बीजेपी की कश्मीर नीति
कांग्रेस की कश्मीर नीति को देश की आम जनता ने पूरी तरह नकार दिया है। ये जनादेश तो फिलहाल यही कह रहा है। कांग्रेस ने अपने मेनोफेस्टो में वादा किया कि कश्मीर से धारा 370 नहीं हटाई जाएगी। साथ ही पार्टी ने वादा किया कि वह सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां) अधिनियम (अफ्सपा) 1958 में ‘सुरक्षा बलों के अधिकारों’ और नागरिकों के मानवाधिकारों में संतुलन बनाने के लिए संशोधन करेगी। जबरन लापता किए जाने, यौन हिंसा और यातना में मिली छूट (इम्युनिटी) को हटाएगी। कांग्रेस ने ये भी वादा किया कि वह ‘यातना निषेध कानून’ बनाएगी, जिसका मकसद हिरासत में आरोपी के खिलाफ थर्ड डिग्री टार्चर को रोकना और पुलिस की ऐसी किसी ज्यादती के खिलाफ सजा का प्रावधान करना होगा। साथ ही कश्मीर से फोर्सबल भी कम किया जाएगा। दूसरी तरफ बीजेपी ने अपने संकल्प पत्र में संकल्प लिया कि जम्मू-कश्मीर से धारा 370 और धारा 35ए को हटाने के लिए पार्टी कृत संकल्पित है। यही नहीं पुलवामा हमले के बाद मोदी सरकार ने अलगाववादी नेताओं की सुरक्षा वापस ली, उन पर कड़ा एक्शन लिया, उनकी टेरर फंडिंग की जांच जिस तरह से हुई उससे ये संदेश साफ गया, हमारे वोट से आतंकवाद पर चोट हो सकती है ऐसा सिर्फ मोदी सरकार में ही मुमकिन है। इसलिए पूरे देश में कांग्रेस के खिलाफ और बीजेपी के पक्ष में माहौल बना।
4- आतंकवाद पर जीरो टोलरेंस की मोदी नीति
मोदी सरकार जनता को ये भी संदेश देने में कामयाब रही है कि आतंकवाद को लेकर जीरो टोलरेंस की नीति है और सरकार इस पर कोई समझौता नहीं करेगी। आतंकी जम्मू-कश्मीर से बाहर कोई बड़ी आतंकी घटना को अंजाम देने में नाकाम रहे। संयुक्त राष्ट्र संघ में बार-बार चीन के वीटो के बाद भी मसूद अजहर को ग्लोबल आतंकी घोषित करना पड़ा। ये सीधे तौर पर मोदी सरकार की कूटनीतिक जीत थी और जनता में संदेश गया है ऐसा कांग्रेस की सरकार में मुमकिन
नहीं है ये सिर्फ मोदी सरकार में ही मुमकिन है।
5- बीजेपी की देशभक्ति बनाम कांग्रेस का देशद्रोह कांग्रेस ने अपने मेनोफेस्टों में घोषणा की अगर वो सरकार में आए तो देशद्रोह की धारा 124ए को खत्म कर देगी यानी जनता में संदेश ये गया कि कांग्रेस की सरकार आने पर हर
विश्वविद्यालय, गली-कूचे से टुकड़े-टुकड़े गैंग निकलने लगेंगे। जबकि बीजेपी का स्टैंड साफ था कि पार्टी टुकड़े टुकड़े गैंग देश में पैदा नहीं होने देगी। राष्ट्रहित सर्वोपरि है। इसलिए बीजेपी ने राष्ट्रवाद को मुद्दा बनाया और पार्टी इसमे कामयाब भी हुई।
6- बीजेपी बनाम कांग्रेस का हिंदुत्व
मोदी मैजिक के पीछे हिंदुत्व के मुद्दे ने भी बड़ा असर दिखाया। चुनावी सीजन में राहुल गांधी का जनेऊ पहनकर मंदिर-मंदिर जाना, उसके बाद पीर-मजारों पर जाना ये सब सियासी नजर आया लेकिन जब पीएम मोदी मंदिरों को गए तो जनता को लगा कि हिंदू धर्म को लेकर उनकी आस्था और प्रतिबद्धता पूरी तरह असली है और इसमें जरा भी दिखावटीपन नहीं है। जबकिराहुल गांधी के बारे में जनता ऐसी राय नहीं बना पायी।
7- चौकीदार चोर बनाम हम सब चौकीदार
राफेल विमान डील पर राहुल गांधी कोई सही तथ्य नहीं दे पाए, हर रैली में राफेल डील पर उनके आंकड़े बदल जाते। इस मसले पर सुप्रीमकोर्ट से भी उन्हे फटकार मिली। जनता में संदेश गया कि राफेल डील पर राहुल गांधी सही नहीं हैं और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बेदाग हैं। सुप्रीमकोर्ट में राहुल की माफी मांगने के बाद जनता में ये संदेह यकीन में बदल गया। इसलिए राहुल गांधी के जुमले ‘चौकीदार चोर है’ बेअसर साबित हुआ दूसरी ओर बीजेपी ने इसे एक मुहिम बनाई कि ‘हम भी चौकीदार हैं’..जो काफी कारगर साबित हुआ।
8- जो योजनाएं गेमचेंजर साबित हुईं मोदी सरकार कई योजनाएं गेमचेंजर यानी वोट बटोरू साबित हुईं हैं। ये सभी योजनाएं देश के दूर-दराज के इलाकों में जमीन पर उतरी हुई नज़र आई हैं। मसलन उज्जवला योजना, एससी- एसटी एक्ट, मुद्रा योजना, जनधन, गांव-गांव में सड़क और बिजली पर काम, गरीबों के लिए प्रधानमंत्री आवास योजना, किसानों को 6 हजार रुपये की सालाना सरकारी मदद और सरकार का स्वच्छता अभियान ने जमीन पर जनमत बनाने का काम किया है। साथ ही गरीब सवर्णों को 10 फीसदी का आरक्षण जिसमें गरीब अल्पसंख्यकों को जोड़ा गया। ये सब योजनाएं गेमचेंजर साबित हुईं। इसके विपरीत कांग्रेस की न्याय योजना जिसमें गरीबों को 72 हजार रुपये सालाना देने की
बात कही गई थी, पर जनता ने विश्वास नहीं किया।
9-नामदार बनाम कामदार
पीएम मोदी ने जनता में ये संदेश देने में कामयाब हो गए कि आज जहां वो स्टैंड कर रहे हैं वो सिर्फ काम के चलते हैं यानी वो कामदार हैं लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष सिर्फ नामदार हैं और वो जहां आज स्टैंड कर रहे हैं वो सिर्फ खानदान के बल पर हैं। यानी राहुल ने ऐसा जमीन पर कुछ नहीं किया है जो वो पीएम पद के लिए योग्य माने जाएं। पीएम मोदी ये बात जनता को समझाने में काफी कामयाब रहे।
10- अब की बार, 300 पार के पीछे की मजूबत रणनीति
पीएम मोदी और अमित शाह ने अब की बार 300 पार का दावा क्यों दिया। इसको भी समझने की जरूरत है। बीजेपी का ये दावा हवा-हवाई नहीं था, बल्कि पूरे अत्मविश्वास और सोच समझकर दिया गया नारा था। दरअसल 2014 के आम चुनाव में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो 312 सीटें ऐसी थीं जिन पर जीत का अंतर 1 लाख से ज्यादा था। इनमें से 207 सीटें बीजेपी ने जीती थीं। इतना ही नहीं इनमें से 42 सीटों पर जीत का अंतर 3 लाख से ज्यादा था। इसी तरह 75 सीटों पर बीजेपी उम्मीदवारों को अपने प्रतिद्वंदी से 2 लाख वोट ज्यादा मिले। इसके अतिरिक्त 38 सीटों पर डेढ़ लाख वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी। ये सभी सीटें मिलकर 207 बनती हैं जो उसकी कुल सीटों का करीब 75 फीसदी। यानी बीजेपी को हराना है तो इन सीटों पर पचास हज़ार से डेढ़ लाख तक वोटरों को बीजेपी से मुख्य विपक्षी पार्टी की तरफ शिफ्ट होना था, जो मुमकिन नहीं था। इसलिए बीजेपी ने अब की बार 300 पार का नारा दिया था।
11- मेरा बूथ, सबसे मजबूत
संगठन के मामले में बीजेपी बेहद मजबूत हालत में है। हर बूथ पर उसके कार्यकर्ता हैं। मेरा बूथ सबसे मजबूत का बीजेपी ने केवल स्लोगन नहीं दिया बल्कि उसे जमीन पर उतारकर दिखाया भी। दूसरी पार्टियों के जहां टेंट तक नहीं पहुंचे वहां बीजेपी के कार्यकर्ताओं का समर्पण देखा गया। जैसा बूथ मैनेजमेंट अमित शाह ने किया उसके मुकाबले राहुल गांधी का मैनेजमेंट कहीं नहीं ठहरा। उपरोक्त सभी बातों/मुद्दों ने चुनाव की पूरी फिजा को बीजेपी के पक्ष में कर दिया और
विपक्ष देखता रह गया।
@बृजेश द्विवेदी (लेखक वरिष्ठ टीवी पत्रकार हैं)