प्रसवपूर्व जांच और रेनबो डाइट गर्भवती महिलाओं में पोस्ट-पार्टम हेमरेज जैसी गंभीर स्थिति को रोक सकते हैं और उनका जीवन बचा सकते हैं।
उत्तर प्रदेश में प्रति हजार आबादी पर 15 से 49 वर्ष की कम से कम 52.4% महिलाएं अब भी एनीमिया से पीड़ित हैं। ग्रेटर नोएडा के फोर्टिस अस्पताल में प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग के डॉक्टरों ने कहा कि यह कई बार गर्भवती महिलाओं के लिए जान का खतरा बन जाता है। एनीमिया के साथ ही पोस्ट-पार्टम हेमरेज कई गर्भवती महिलाओं की मौत का कारण माना जाता है।
डॉक्टरों ने बताया कि पोस्ट-पार्टम हेमरेज एक ऐसी स्थिति है जिसमें गर्भवती महिला का प्रसव के बाद काफी खून बह जाता है। ऐसे कई मामलों में उनकी मौत भी हो जाती है।
ग्रेटर नोएडा में फोर्टिस हॉस्पिटल की प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग की एडिशनल डायरेक्टर डॉ सोनाली गुप्ता
ने कहा कि पोस्ट-पार्टम हेमरेज महिलाओं के जीवन के लिए गंभीर खतरा है। जब एनीमिया से पीड़ित महिलाओं में पीपीएच हो जाता है तो मरीज की जान बचाना बेहद चुनौतीपूर्ण होता है। उन्होंने कहा कि स्थिति तब और भी खराब हो जाती है जब गर्भवती महिलाएं एक्लम्पसिया से पीड़ित होती हैं। इससे हाई बीपी, सिरदर्द, ठीक से न दिखना और ऐंठन जैसे लक्षणों के साथ दौरे भी पड़ सकते हैं।
डॉक्टरों ने कहा कि दौरे पड़ने से कई बार स्थितियां काफी बिगड़ जाती हैं और इससे महिलाओं के दिमाग पर भी असर पड़ता है। कभी-कभी मां और बच्चे दोनों की मौत हो जाती है। इसलिए यह बेहद जरूरी है कि गर्भवती महिलाओं की देखभाल बेहतर तरीके से हो और समय-समय पर उनका चेकअप किया जाए। प्रसवपूर्व देखभाल और पोषण में सुधार से ही जीवन बचाने में मदद मिल सकती है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के आंकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में प्रति हजार आबादी पर केवल 42.4% गर्भवती महिलाएं गर्भावस्था के दौरान प्रसवपूर्व कम से कम चार बार चेकअप के लिए जाती हैं। आंकड़ों से पता चलता है कि प्रति 1,000 लोगों में से केवल 9.7% गर्भवती महिलाएं 180 दिनों से अधिक समय तक आयरन और फोलिक एसिड का लेती हैं।
ग्रेटर नोएडा में फोर्टिस हॉस्पिटल प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग की एडिशनल डायरेक्टर डॉक्टर राखी गुप्ता
ने कहा कि गर्भवती महिलाओं और उनके बच्चे को जोखिम से बचाने के लिए हम रेनबो डाइट लेने की सलाह देते हैं। इस डाइट में हर रंग का खाना शामिल होता है और इसे संतुलित आहार माना जाता है। साथ ही चना, गुड़, साग, सब्जियां और मौसमी फल महिलाओं में पोषण को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं।
डॉक्टरों के मुताबिक, प्रसवपूर्व जांच से उन्हें महिलाओं की सेहत से जुड़ी सारी चीजों के बारे में जानकारी हो जाती है। जैसे डायबिटीज, हाई बीपी या दिल से जुड़ी चीजें महिला के गर्भवती होने पर कई बार मुश्किलें बढ़ा सकती हैं। ऐसे में समय रहते जांच से इन चीजों की जानकारी डॉक्टरों को हो जाती है और उनका इलाज संभव हो पाता है। डॉक्टरों ने कहा कि ऐसी स्थितियों में प्रसव के लिए एक विशेष केंद्र की जरूरत होती है। समाज के सभी वर्गों के बीच जागरूकता से मातृ मृत्यु दर और बच्चे को होने वाले जोखिम से बचाया जा सकता है।
भ्रूण के विकास की प्रगति की निगरानी और मां व भ्रूण ठीक हैं कि नहीं, यह पता लगाने के लिए गर्भावस्था के दौरान महिलाओं की प्रसवपूर्व जांच करवाई जाती है। यह मेडिकल सुपरविजन गर्भवती महिलाओं के लिए काफी सहायक साबित होता है। नियमित प्रसवपूर्व जांच से मां को जरूरी देखभाल मिलती है और गर्भावस्था के दौरान एनीमिया, प्री-एक्लेमप्सिया और हाई बीपी जैसी परेशानियां पकड़ में आ जाती हैं।