ग्रेटर नोएडा ।भारत राष्ट्र को भारत के दृष्टिकोण से समझना और जानना है तो विकिपीडिया पढ़ना बंद कर देना चाहिए। यह सुझाव राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख अरुण कुमार ने दिया है। अरुण कुमार गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय में चल रहे तीन दिवसीय प्रेरणा विमर्श 2020 समारोह के पहले दिन के पहले चरण में प्रतिभागियों को संबोधित कर रहे थे।
कार्यक्रम का संचालन लोकसभा टीवी के संपादक श्याम किशोर सहाय ने किया। विशिष्ट अतिथि गौतमबुद्ध यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. भगवती प्रसाद ने जनसंचार के बारे में महत्वपूर्ण बातें समझाई
भारत की विरासत को जानने की जरूरत-
अमर उजाला के समूह संपादक उदय कुमार ने कहा कि हिमाचल के पहाड़ों से लेकर लहराती गंगा के बीच में सवा सौ करोड़ की जनसंख्या बसी हुई है, जिनकी भाषा, रहन-सहन अलग है इन्ही सब से भारत की बड़ी विरासत का निर्माण हुआ है।
बाजारूवाद संस्कृति की बढ़ती प्रवृत्ति-
देश आजकल इतनी तेज रफ़्तार से आगे की ओर बढ़ रहा है उसी प्रकार पत्रकारिता भी बढ़ती जा रही है जिसके कारण समाज की नियंत्रण व्यवस्था ख़राब हो रही है। उनका कहना है कि आज बच्चों के माता-पिता इतने व्यस्त होते हैं कि उनको संस्कार फोन और यूट्यूब से मिल रहे हैं। न्यूज 24 की मुख्य संपादक अनुराधा प्रसाद ने कहा भारत की विरासत से हमने पत्रकारिता, साहित्य और वाद-विवाद को मीडिया से अलग नहीं रखा।इस सत्र की शुरूआत पांचजन्य पत्रिका के संपादक हितेष शंकर ने की। उन्होंने बताया कि हमारी विरासत हमारे पुरखों के कामों का अभिलेख है।
हम भारतीय है या नहीं एक संकट-
कार्यक्रम के दूसरे विशिष्ट अतिथि, वरिष्ठ संपादक एवं डीडी न्यूज़ के एंकर अशोक श्रीवास्तव ने कहा कि मीडिया की सबसे बड़ी समस्या यह है, कि ज़्यादातर पत्रकार अपने आपको भारतीय ही नहीं मानते, यानी वो अपने भारतीय होने की बात को भूलकर अपना काम करतें हैं, पर क्या सच में इसकी ज़रूरत है भी।
विकृतियों से बचकर करें पत्रकारिता –
अमर उजाला के समूह संपादक उदय कुमार ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि उन सबको समाज की विकृतियों से बचकर काम करना चाहिए। उन्होंने कहा कि सत्य एक ही होता है और इसी बात को ध्यान में रखकर पत्रकारिता की जानी चाहिए। दिल्ली विश्वविद्यालय की निदेशक एवं कॉलिजिएट डॉ गीता भट्ट ने कहा कि पत्रकारिता में नैतिकता बहुत ज़रूरी है।
पत्रकारिता में विश्वसनियता पर संकट क्यों ?
मीडिया में विश्वसनियता का संकट विषय पर दैनिक जागरण समूह के कार्यकारी संपादक विष्णु त्रिपाठी ने कार्यक्रम की शुरूआत करते हुए कहा कि प्रमाणिकता का संकट बढ़ने की बजाय घट रहा है। हिंदी मीडिया की प्रमाणिकता के समक्ष कोई संकट नहीं है। आर्गनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर ने कहा कि ये संक्रमण का काल है। अखबार विश्लेषण कर गहराई से रिपोर्ट दे रहे हैं।
न्यूज पर किसी का नियंत्रण नहीं-
माखनलाल चर्तुवेदी के पूर्व कुलपति जगदीश उपासने ने कहा कि सबको लगता है कि वें प्रमाणिकता से पत्रकारिता करते हैं, और न्यूज के गेटकीपर हैं। लेकिन न्यूज पर किसी का नियंत्रण नहीं है। रिपब्लिक मीडिया नेटवर्क के वरिष्ठ सलाहकार एवं संपादक मेजर गौरव आर्य ने कहा कि अगर आप लड़कर युद्ध जीते तो क्या जीते। सोशल मीडिया युद्ध का हथियार है । वह एक इनफार्मेशन वारफेयर है। हमें हिंसा को अपनाना होगा
विमर्श की शुरुआत न्यूज 18 के वरिष्ठ संपादक और भइया जी कहिन शो से ख्याति प्राप्त प्रतीक त्रिवेदी जी ने अपने विचारों के साथ की। कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए ख्याति प्राप्त पत्रकार और लेखक आलोक मेहता जी ने कहा कि चाहे आपके पास कितना भी अनुभव हो लेकिन पत्रकारिता के क्षेत्र में आपको हमेशा कुछ न कुछ सीखने को हमेशा ही मिलेगा।