तृप्ति रावत/ 18 जुलाई 2012 को हिंदी सिनेमा के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना ने दुनिया को अलविदा कहा था। आज से लगभग 75 साल, 6 महिने और 19 दिन पहले पंजाब के अमृतसर में एक ऐसे बाजीगर का जन्म हुआ था। बॉलीवुड में उन्हें राजेश खन्ना के नाम से जाना जाता है, लेकिन दुनिया उन्हें प्यार से काका बुलाती है। आज काका की पुण्यतिथि है।
1966 में राजेश खन्ना की पहली फिल्म ‘आखिरी खत’ रिलीज हुई थी। इसके बाद ‘आराधना’ और ‘दो रास्ते’ की सफलता से राजेश खन्ना को सुपरस्टार का तमगा हासिल हुआ। लड़कियों के बीच राजेश खन्ना की लोकप्रियता ऐसी छाई कि उन्हें खून से लिखे खत मिलते थे। स्टूडियो या किसी प्रोड्यूसर के ऑफिस के बाहर जहां राजेश खन्ना की सफेद रंग की कार खड़ी रहती थी लड़कियां उस कार को किस करती थीं। जिससे लिपस्टिक के निशान से उनकी गाड़ी गुलाबी रंग की हो जाती थी।
रात के 2 बजे राजेश खन्ना लगे थे रोने
लगातार 15 हिट फिल्मों का रिकॉर्ड बनाने वाले राजेश खन्ना के लिए वक्त हमेशा एक जैसा नहीं रहा। वो अपनी स्टारडम संभाल नहीं पाए। देर रात तक पार्टियां करने की वजह से उनके शरीर पर भी असर पड़ा और इसके बाद शुरू हुआ उनकी नाकामयाबी का दौर। राजेश खन्ना के करीबी एक दोस्त चंचल ने बताया था कि ‘दिल्ली में एक बार मैं, राजेश खन्ना की गर्लफ्रेंड और राजेश खन्ना बैठे हुए थे। रात के 2 बजे बाहर ‘आनंद’ फिल्म का गाना ‘जिंदगी कैसी है पहेली’ बज रहा था। मैं चुपचाप उस गाने को सुनता हुआ छत पर चला गया। गाना खत्म होने के बाद वापस लौटा तो देखा राजेश खन्ना अकेले कुर्सी पर बैठकर रोये जा रहे थे। उस वक्त मैंने पूछा- ‘क्या हुआ?’ तो राजेश खन्ना ने कहा- ‘जो आपको हुआ था और आप बाहर चले गए थे।
फिल्म के डायरेक्टर से मांगनी पड़ी थी माफी
आनंद से जुड़ा एक किस्सा बेहद मशहूर है जब राजेश खन्ना को डायरेक्टर से माफी मांगनी पड़ी थी। हुआ यूं कि फिल्म के सेट पर राजेश खन्ना रोज दो-तीन घंटे के लिए पहुंचते और ‘आनंद’ की शूटिंग करते। वो आम तौर पर थोड़ा-बहुत लेट हमेशा हो जाया करते थे। लेकिन एक बार ये देरी लंबी हो गई। ऋषि दा सेट पर बैठे चेस खेलते रहे थे, जैसे ही राजेश खन्ना आए ऋषि दा ने उन्हें कॉस्ट्यूम-मेकअप के लिए भेज दिया। राजेश खन्ना जैसे ही तैयार होकर बाहर आए ऋषिकेश मुखर्जी ने कहा ‘पैक अप’। यह सुनकर सेट पर सन्नाटा छा गया। फिर राजेश खन्ना ने ऋषि दा से ये कहते हुए माफी मांगी कि अब ये दोबारा नहीं होगा। और वो दोबारा कभी नहीं हुआ।
14 महिनों तक खुद को दीवारों के बीच किया था कैद
कहते हैं कि राजेश खन्ना की जिंदगी में एक दौर ऐसा आया जब उन्होंने खुद को 14 महीनों तक दीवारों के बीच कैद कर लिया था। उस दौर की मशहूर एक्ट्रेस डिंपल कपाड़िया चाहती थीं कि राजेश उनके साथ समय गुजारें लेकिन काका तो जैसे जिंदगी से रूठ ही गए थे। उन्हें न किसी से बात करना पसंद था और न ही किसी से मिलना। शराब, पार्टी और फ्लॉप फिल्मों ने काका की जिंदगी का रुख मोड़ दिया था। एक के बाद एक सिगरेट को अपने मुंह से लगाते काका की जिंदगी जहर बनती जा रही थी। वह गहरी सोच में डूबे रहते थे।
डिंपल काका का इंतजार करती थीं, वह उनसे बातें करना चाहती थीं लेकिन उन दोनों के बीच केवल सिगरेट का उड़ता हुआ धुंआ नजर आता था। जब काका अपनी आखिरी सिगरेट को ऐश ट्रे में बुझाते थे तो डिंपल को लगता था कि काका अब कुछ बोलेंगे। लेकिन, वह बस इतना ही पूछते थे ‘बच्चों ने आज क्या किया?’ यह दौर ऐसा था जब गिरते हुए करियर ग्राफ और शादी का बोझ काका पर भारी पड़ने लगा था।
अमिताभ बच्चन से 1.50 रुपए कम था राजेश खन्ना का हेयर कट
‘नमक हराम’ फिल्म से लोकप्रियता की चाबी काका के हाथ से सरक कर अमिताभ बच्चन के हाथ में चली गई थी। जब नमक हराम बनने की शुरुआत हुई, उस समय अमिताभ बच्चन एक फ्लॉप हीरो थे। उनके पास समय ही समय था इसलिए अमिताभ के हिस्से की शूटिंग पहले ही पूरी कर ली गई थी।
डिस्ट्रीब्यूटर्स को लगता था कि अमिताभ इस फिल्म के मुख्य हीरो हैं और राजेश खन्ना केवल गेस्ट अपीयरेंस दे रहे हैं। डिस्ट्रीब्यूटर्स ने अमिताभ के कान के ऊपर रखे बालों का मजाक उड़ाते हुए कहा था कि आपका हीरो बंदर की तरह लगता है, अगर बाल कटा लेगा तो हमें भी पता लग जाएगा कि उसके कान हैं भी या नहीं। लेकिन अमिताभ बच्चन के आने वाले वक्त को काका की निगाहों ने पढ़ लिया था।
काका ने कहा था- मेरा दौर बीत चुका, ये रहा कल का सुपरस्टार
काका ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उन्होंने फिल्मकार ऋषिकेश मुखर्जी से कहा था, मेरा दौर बीत चुका है, ये रहा कल का सुपरस्टार। तब तक अमिताभ बच्चन का कान को ढंकने वाला हेयरस्टाइल सुपरहिट हो चुका था। मुंबई के हेयर-कटिंग सैलून्स के बाहर बोर्ड लग चुके थे। राजेश खन्ना हेयर कट- 2 रुपए और अमिताभ बच्चन हेयर कट- 3.50 रुपए।
हालांकि अमिताभ के आगे निकलने से ज्यादा काका को इस बात की ज्यादा फिकर थी कि उनके फैंस उन्हें छोड़कर न चले जाएं और इस चिंता ने एक ऐसी ख्वाहिश का रूप ले लिया था जो उनके अंतिम समय में भी अधूरी रह गई। ये वो दौर था जब काका अपना आखिरी समय मुंबई के लीलावती अस्पताल में गुजार रहे थे।