उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम् ।
वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र संततिः ॥
अक्सर आपने विष्णु पुराण का यह श्लोक जहां तहां इस्तेमाल होते हुए देखा होगा. सरल हिंदी में इसे समझें तो कहा गया है कि समुद्र के उत्तर और हिमालय के दक्षिण में जो देश है वह भारत है और यहां की संतानें भारतीय हैं. लिखने पढ़ने में तो बहुतों ने इन पंक्तियों का इस्तेमाल किया. पर सही मायनों में इसे जीवन में उतारा मां भारती की एक ही संतान ने. वह संतान जिसका आज जन्मदिवस है. वह संतान जिसने उत्तर से दक्षिण तक भारत को एक करने का ऐसा राजसूय यज्ञ ठाना कि सारी बाधाओं को कुचल कर ही राहत की सांस ली. सही मायनों में विष्णु पुराण का यह श्लोक तभी सार्थक था जब भारत एक होता और मां भारती के इस लाडले ने तब असंभव माने जाने वाले इस काम को पूरा कर दिखाया. वह शख्स जो अपने जीते जी महापुरुष बन गया और जिसने न केवल भारतीय राजनीति को नई दिशा दी बल्कि आजाद भारत की राजनीतिक दशा को बदलने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनकी नेतृत्व क्षमता, प्रभावशाली कूटनीति, मजबूत इच्छाशक्ति, बुद्धि-चातुर्य, कुशल व्यवस्थापक क्षमता और अद्भुत दूरदर्शिता अतुलनीय रही. भारत को एकता के सूत्र में पिरोने वाले ऐसे महापुरुष को केवल एक दिन नहीं बल्कि हर दिन नमन करने, और उनके विचारों को मनन करने की आवश्यकता है. जब हम भारत को एकता के सूत्र में पिरोने की बात करते हैं तो उस महापुरुष का नाम अनायास ही हमारे सामने परिलक्षित हो जाता है, और वह हैं भारत के लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल.
आज के दिन यानि राष्ट्रीय एकता दिवस पर पूरे देशभर में पटेल जी को भारत के भौगोलिक एवं राजनीतिक एकीकरण के पीछे के सबसे बड़े योद्धा के रूप में याद किया जाता है और उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है. परंतु आज का ज्वलंत प्रश्न यही है कि हमने ऐसे महान व्यक्तित्व से क्या सीखा?
एक नजर अतीत पर
पटेल जी गांधी जी के विचारों से बहुत प्रभावित थे. शुरुआती दिनों में जब वे अहमदाबाद में वकालत कर रहे थे तभी उन्हें गांधी जी के एक वक्तव्य को सुनने का अवसर मिला। वे इतने प्रभावित हुए कि भारतीय स्वाधीनता आंदोलन से जुड़ने की ठानी. कुछ समय बाद उन्हें खेड़ा सत्याग्रह से जुड़ने और उसका नेतृत्व करने का मौका मिला. किसानों की समस्याओं को लेकर महात्मा गांधी ने कई आंदोलन किए जिसमें खेड़ा आंदोलन अहम है.
वर्ष 1918 में अंग्रेजों ने गुजरात के खेड़ा में सूखे से प्रभावित किसानों के कर न दे पाने के अनुरोध को अस्वीकार करते हुए उनपर दबाव डाला, तब गांधी जी ने इसके खिलाफ एक आंदोलन प्रारम्भ किया जिसकी अगुवाई पटेल जी को करने को कहा गया. पटेल जी ने किसानों का नेतृत्व करते हुए अंग्रेजों के ऊपर ‘नो टैक्स’ का दबाव बनाया. फलतः एक मजबूत संघर्ष के बाद अंग्रेजी हुकूमत को किसानों की मांगों को स्वीकार करना पड़ा. स्वतन्त्रता आंदोलन में पटेल की यह पहली बड़ी सफलता थी, जहां उनके सफल नेतृत्व का दर्शन हुआ.
हम सभी जानते हैं कि पटेल जी को ‘सरदार’, ‘लौह पुरुष’ और ‘बिस्मार्क’ की उपाधि से नवाजा गया, परंतु ये उपाधि उन्हें मिली कैसे इस पर भी थोड़ा प्रकाश डालना आवश्यक है. पटेल जी की वाक्पटुता जगजाहिर है। बारडोली सत्याग्रह के दौरान जिस तरीके से उन्होंने लोगों को समझाया और वे सभी अंग्रेजी हुकूमत को कर ना देने के लिए राजी हो गए. ये उनकी वाक्पटुता का ही एक मजबूत उदाहरण है. इस आंदोलन के सफल नेतृत्व-संचालन हेतु वहां के लोगों, विशेषकर महिलाओं ने उन्हें ‘सरदार’ कहकर पुकारा.
पटेल जी की प्रशासनिक क्षमता और दृढ़ निश्चय की क्षमता अद्भुत थी. न केवल गांधी जी बल्कि उनके आलोचक भी उनके धैर्य, प्रशासनिक एवं कूटनीतिक क्षमता, दृढ़ निश्चय, विनम्रता और कार्यकुशलता के मुरीद थे. पटेल जी भारत के वर्तमान भौगोलिक स्वरूप का निर्माता माने जाते हैं. स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात 565 रियासतों का एकीकरण एक बेहद ही जटिल एवं दुरूह कार्य था, जिसे प्रथम उप-प्रधानमंत्री एवं गृहमंत्री के रूप में पटेल जी अपनी अद्भुत क्षमताओं के कारण ही इस नामुमकिन कार्य को मुमकिन कर पाये. इसी वजह से इन्हें लौह पुरुष या बिस्मार्क की उपाधि से नवाजा गया.
बिस्मार्क शब्द की संज्ञा उन्हें जर्मनी के बिस्मार्क को ध्यान में रख कर दी गयी थी. बिस्मार्क का पूरा नाम ऑटो एडुअर्ड लिओपोल्ड बिस्मार्क है. वे अपने समय के प्रभावशाली कूटनीतिज्ञ थे. उन्होंने अपने प्रभावशाली कूटनीतिक क्षमता के बल पर 30 से अधिक जर्मनभाषी राज्यों को मिलाकर एक शक्तिशाली जर्मन साम्राज्य की स्थापना की थी. अतः जब पटेल जी ने अपने कठिन परिश्रम एवं सफल कूटनीति के बल पर इन रियासतों का भारत में विलय करवाया, तब उन्हें भारत का बिस्मार्क कहा गया.
एक सफल कदम
किसी भी राष्ट्र की संपन्नता और विकास का आधार उसकी एकता और अखंडता की बुनियाद पर खड़ा होता है. भारतरत्न सरदार पटेल भारतवर्ष की एकता और अखंडता के सूत्रधार थे. वर्तमान सरकार ने स्वतन्त्रता संग्राम में महती भूमिका अदा करने तथा आजाद भारत को एकीकरण के सूत्र में बांधने वाले पटेल जी के प्रति श्रद्धांजलि रूप में दो महत्वपूर्ण कार्य किया, जिसे अतीत में पहले न किसी ने कभी सोचा और ना ही कभी किया. एक, वर्ष 2014 से आज के दिन को ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ के रूप में मनाया जाना और दूसरा, वर्ष 2018 में गुजरात के नर्मदा जिले में ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ की स्थापना, जो कि हमारी एकता एवं मूल्यों का प्रतीक है. निश्चित तौर पर, अपने आदर्श महापुरुष को नमन करने का यह एक स्वागतयोग्य अनुकरणीय कदम है.
सरदार पटेल के विचारों का मनन
भारत जैसे विविधता वाले देश में वर्ण-भेद और वर्ग-भेद रहित राजनीति को संकल्पना प्रदान करने में पटेल जी नाम अग्रणीय महापुरुषों में से एक है. वे किसी भी तरह के भेदभाव के विरोधी थे। पटेल जी ने महिलाओं तथा अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा, तथा अस्पृश्यता और जातिगत भेदभाव के खिलाफ बड़े पैमाने पर काम किया। चाहे किसानों के हित की बात हो या महिला स्वावलंबन, वे सदैव इनके हितों के समर्थक थे। देश के विकास में उनकी सकारात्मक सोच, प्रभावशाली कूटनीतिक क्षमता, कार्यकुशलता एवं दूरदर्शिता का विशेष प्रभाव एवं योगदान रहा है। जिस राष्ट्र की एकता और अखंडता हेतु सरदार पटेल ने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया, आज जरूरत है कि हम सभी सच्चे मायने में उनके विचारों को सत्यनिष्ठ भाव से आत्मसात करें और देश के विकास, उसकी एकता एवं अखंडता हेतु कटिबद्ध हो, आत्मार्पित हों।
आज जब चारों तरफ स्वार्थ लोलुपता की राजनीति हो, देश को जाति-धर्म के नाम पर बांटने की साजिशें हों, तो सरदार पटेल और भी प्रासंगिक हो उठे हैं. आज जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की संकल्पना पर आगे बढ़ते हुए सरदार पटेल के सपनों को पूरा कर रहा है तो कुछ ताकतें हैं जो निजी स्वार्थ के वशीभूत होकर इस यज्ञ में विध्न डालने का काम कर रही हैं. आज सरदार पटेल को याद कर ऐसी ताकतों को चिन्हित करने के बाद उन्हें लौह पुरुष की ही भाषा में जवाब भी देने की जरूरत है. राष्ट्रहित और राष्ट्रीय एकीकरण के मसले पर आज सरदार पटेल की ही नीति को आगे बढ़ाने की जरूरत है. आज देश के युवाओं को यह प्रण लेने की जरूरत है कि वह अपने मानस में लौह पुरुष को धारण करेंगे और राष्ट्र की एकता के लिए मजबूती से खड़े रहेंगे.
(व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत है)
डॉ. मुकेश कुमार श्रीवास्तव वरिष्ठ सलाहकार भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद(विदेश मंत्रालय)