नई दिल्ली। भारतीय पुरुष को जहां उनके बच्चों, परिवार, माता-पिता, समाज के लिए संरक्षक के रूप में देखा जाता है, जहाँ पुरुषों पर सारी जिम्मेदारियां हैं जैसे कि समाज, राष्ट्र, आश्रय, भोजन, कपड़े, विलासिता, सुरक्षा, स्वास्थ्य, एवं अन्य आवश्यक आवश्यकताएं परन्तु इन पुरुषों के लिए कानून की कोई सुरक्षा नहीं है। न तो वर्तमान और न ही पिछली सरकारों ने कभी वैवाहिक विवाद को हल करने के लिए प्रभावी तंत्र विकसित करने के लिए कदम उठाया है।वहीं दूसरी तरफ वैवाहिक मामलों में फँसे NRI पुरुषों के पासपोर्ट को ज़ब्त करने की योजना बना रही है।
सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन, नॉर्थ इंडिया सर्किल (एसआईएफएफ) के समन्वयक कुमार एस रतन ने जांच एजेंसियों एवं न्यायिक प्रणालियों में पुरुषों के लिए पक्षपातपूर्ण रवैये की चिंता जताई है । कानून पुरुषों के लिए इतने कठोर हैं कि एक छोटे परिवार के विवाद को अपराधी बना दिया गया है और पति और रिश्तेदारों को जमानत लेनी पड़ती है, जो एक आसान काम नहीं है। इतना हि नहीं , पारिवारिक विवाद में बच्चे के भी अधिकारों का हनन हो रहा है और विच्छेदित विवाहों में से लगभग सारे पुरुष अलग होने के बाद अपने बच्चों तक पहुंच खो देते हैं, और लगभग 1,50,000 बच्चे हर वर्ष अपने पिता के प्यार से वंचित हो जाते हैं ।
यूके (UK) में एसआईएफएफ समन्वयक मंगेश भालेराओ के मुताबिक, “चौंकाने वाला हिस्सा यह है कि, अगर किसी को वैवाहिक समस्या का सामना करना पड़ता है तो उसे कम से कम सात साल तक पांच से छह अदालतों में भाग लेना पड़ता है, चाहे निवासी भारतीय या अनिवासी भारतीय हो। अब, यह पुरुषों के लिए अधिक परेशान करने जैसा होगा, अगर सरकार पासपोर्ट को ज़ब्त करने की योजना बना रही है, और जब पासपोर्ट ज़ब्त किया जाएगा तो उन्हें सबकुछ छोड़ अचानक वापस आना होगा ।
ऐसी स्थितियों में, जब अदालत के मामले वर्षों तक चलते हैं, तो एनआरआई के लिए यह कैसे संभव है, विदेशी अदालतों में, तलाक से जुड़े मामलों में मुश्किल से छह महीने लगते हैं और यह भी कि भारत में रखरखाव राशि कठिन है। दुनिया में ऐसा कोई देश नहीं है जहां युवा लोग इतने लंबे समय तक अदालतें दौड़ में रहे हों, जहां हमारे युवा भारत के राष्ट्र के हित के लिए अपनी ऊर्जा डालने पर ध्यान देना चाहिए, पर वे इसे अदालतों में दे रहे हैं और वह भी वैवाहिक मुद्दों में। भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां पत्नी को रखरखाव राशि का भुगतान करने के लिए समय की कोई सीमा नहीं है, और इस तरह भारत आदर्श महिलाओं की सेना बना रहा है ।
आने वाले चुनावों में नोटा का बटन दबेगा
कुमार एस रतन ने बताया, पुरुषों को झूठे मामलों से बचाने के लिए कोई मजबूत कानून नहीं है, और अब सरकार वैवाहिक विवाद में एनआरआई पुरुषों को अपराधी बना रही है। अब पुरुष पक्षपातपूर्ण कानूनों के खिलाफ एकजुट हो रहे हैं ताकि वे सिस्टम में अपना सम्मान वापस ले सकें, जिसे अचानक 90 के दशक में छीन लिया गया था। अगर सरकार पुरुषों के साथ उत्पीड़न रोकने में विफल रही है, तो हमारे पास कोई भी विकल्प नहीं बचेगा और आने वाले चुनावों में नोटा का बटन दबेगा, जैसा कि हमने वर्तमान चुनावों में किया ।
भारतीय पुरुष के लिए पक्षपातपूर्ण व्यवहार राजनेताओं द्वारा किया गया है और इसके परिणामस्वरूप, उन्होंने लाखों पुरुषों का जीवन बरबाद किया है अब इन राजनेताओं को कानून में बदलाव कर इन पुरुषों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए भी काम करना होगा। पुरुष और उनके परिवार सहित लगभग 4 से 5 करोड़ मतदाता लिंग न्याय के नाम पर भेदभाव और आघात का सामना कर रहे हैं। जब वे मदद की गुहार लगाते हैं तो बदले में उन्हें धमकी मिलती है और पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया जाता है। अंततोगत्वा इसमें से कई लोग आत्महत्या का मार्ग अपना लेते हैं।
हमारे राजनेताओं को अगले राष्ट्रीय और राज्य चुनावों में इस वोट बैंक का जवाब देना होगा। वर्तमान में, पुरुष कार्यकर्ता समर्थकों को नोटा (उपर्युक्त में से कोई भी) के लिए मतदान करने के लिए निवेदन रहे हैं क्योंकि सभी प्रमुख पार्टियां पुरुषों के मुद्दों पर ध्यान नहीं देती हैं।
इस चुनाव सत्र में राजनीतिक दलों से सेव इंडियन फैमिली फाऊंडेशन की मांग:
- सरकार और न्यायालयों द्वारा पुरुषों और उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ संस्थागत भेदभाव के तुरंत अंत करे।
- परिवार के बीच सभी वैवाहिक विवादों से निपटने के लिए एकल खिड़की प्रणाली हो। आज वे लगभग 6 से 7 अदालतें चलाने के लिए बने हैं।
- पुरुष सदस्यों (बुजुर्ग पिता सहित) पर पत्नियों द्वारा सभी झूठी यौन उत्पीड़न, #MeToo की तुरंत रोक लगे।
- अलगाव और तलाक के दौरान बच्चों की डिफ़ॉल्ट एसपीजेआर (साझा पेरेंटिंग और संयुक्त जिम्मेदारी SPJR) लागू हो
- घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न और बलात्कार से पुरुषों की रक्षा के लिए कानूनों में संशोधन। वर्तमान में, इन सभी कानूनों से पुरुषों को बाहर रखा गया है।
- शिकायतकर्ता पर झूठे मामले में समान दंड का प्रावधान किया जाय।