बीजेपी के लिए वरदान बन चुका है बिखरा बिखरा विपक्ष

देश में विपक्ष का बुरा हाल है। वह बुरी तरह बिखरा हुआ है। खुद विपक्षी नेता इस बात का अहसास कर रहे हैं। उनके मुताबिक विपक्ष की ये बिखरी हुई सूरत बीजेपी के लिए किसी वरदान से कम नही है। वह खुलकर इस बात को स्वीकार रहे हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव ने भी खुलकर कहा कि विपक्षी नेताओं में एकता नहीं है। उन्हें इस बात का डर है कि केंद्र सरकार उनके खिलाफ मामले दर्ज करवा सकती है। चिदंबरम जैसे कुछ नेता जेल में हैं जबकि अन्य जमानत पर हैं।

सिर्फ शरद यादव ही नही दूसरे विपक्षी नेता भी यही बात कह रहे हैं। विपक्ष आपस में लड़ रहा है। विपक्ष में एक भी सर्वमान्य नेता नही है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी विपक्ष का चेहरा होना चाहती हैं तो यूपी में मायावती और अखिलेश। ऐसा ही हाल कमोबेश हर राज्य का है। कांग्रेस हाशिए पर जा रही है। उसके वरिष्ठ नेता भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों में जेल में हैं। कांग्रेस नेता पी चिदंबरम प्रवर्तन निदेशालय की ओर से दर्ज धन शोधन के मामले में तिहाड़ जेल में न्यायिक हिरासत में हैं। विपक्ष के पास ऐसा कोई भी न्यूनतम साझा कार्यक्रम नही है जिसके आधार पर वह एकजुट हो सके।

विपक्ष में दरअसल एक ‘नेता’ की कमी है। नेता जो आगे बढ़कर लीड करे।जिसके पीछे लोग चलें, जिसकी बात मानें। विपक्ष में इस कद का एक भी नेता नही है। सत्ता पक्ष में मोदी और अमित शाह के निर्देशों पर सब एकजुट हैं। साथ ही उनकी सहयोगी पार्टियां भी एकजुट हैं। विपक्ष के बीच आपसी सहमति की इस कदर कमी है कि वे लोकसभा चुनाव के दौरान भी महागठबंधन नही बना सके। राहुल गांधी मैदान छोड़ चुके हैं। वह मैदान में जब थे, उस वक्त भी कोई उन्हें स्वीकार करने को तैयार नही था। विपक्ष में हर लीडर अपना ही इकलाब बुलंद करने में लगा हुआ है। राफेल के मुद्दे तक पर विपक्ष एक साथ नही आ सका। राहुल गांधी को सुप्रीम कोर्ट की फटकार ने रही सही आग भी बुझा दी। राहुल गांधी को अपने गैर जिम्मेदाराना बयान के लिए कोर्ट से माफी तक मांगनी पड़ी। इससे पहले भी कोई उनके साथ खड़ा नही हुआ था।

बड़ी बात यह है कि विपक्ष के पास अपना कोई मुद्दा भी नही है। सारे मुद्दे, सारे नैरेटिव सत्ताधारी पक्ष ही तय कर रहा है। हाल ही में कश्मीर में 370 हटाने के मुद्दे पर भी सत्ताधारी पक्ष को अभूतपूर्व सफलता मिली है। विपक्ष के भीतर ही दो फाड़ हो गया। कांग्रेस के अपने ही नेता 370 हटाने के समर्थन में उतर आए। विपक्षी पार्टियों में अन्य नेताओं ने भी कांग्रेस का साथ छोड़ दिया। इससे पहले पुलवामा हमले के बाद भी बीजेपी ने देश में नैरेटिव तय कर दिया था। पाकिस्तान मुद्दों के केंद्र में आ गया था। विपक्ष यहां भी अपनी भूमिका नही निभा पाया। राहुल गांधी को इसमें भी साजिश के तार दिखने लगे। 370 के मुद्दे पर राहुल के बयानों का पाकिस्तान तक ने इस्तेमाल किया। गांधी परिवार के लिए इससे बड़ी शर्मिंदगी की बात और क्या होगी। हालांकि राहुल ने पाकिस्तान की इस चाल का जवाब जरूर दिया मगर तब तक देर हो चुकी थी।

विपक्ष में एकजुटता नहीं होने की सबसे बड़ी वजह है राजनीतिक पार्टियों का निजी स्वार्थ। विपक्ष में सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते गांधी परिवार विपक्षी एकता की अगुवाई चाहता है। मगर विपक्ष इसके लिए तैयार नही है। गांधी परिवार की लीडरशिप मानने के लिए अब ना तो मायावती तैयार हैं, ना ही ममता बनर्जी और ना ही अखिलेश यादव। सबके सब अपनी लीडरशिप चाहते हैं। एक के बाद दूसरे ऐसे अहम मुद्दे सामने आ रहे हैं जिनमें विपक्ष बुरी तरह बंटा और बिखरा नजर आ रहा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब देश में ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ (लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ) कराने की बात कही तो यहां भी विपक्ष पूरी तरह से बंटा हुआ नजर आया। पीएम के इस बैठक का कांग्रेस, सपा-बसपा समेत 16 दलों ने जहां बहिष्कार किया. वहीं, सीपीआई (एम), एनसीपी और नेशनल कांफ्रेंस समेत कई विपक्षी दल शामिल होकर अपनी बात रखी। ऐसे सवालोें पर भी विपक्ष एक साथ नही आ सका।

एक राष्ट्र, एक चुनाव के मुद्दे पर पक्ष और विपक्ष के 40 दलों को बैठक के लिए आमंत्रित किया गया था। पीएम के द्वारा बुलाई गई इस बैठक में जेडीयू, अकाली दल समेत 21 पार्टियों के नेता शामिल हुए थे। इस बैठक में तीन दलों ने लिखित में अपने सुझाव भेजे थे। जबकि कांग्रेस, टीएमसी, आम आदमी पार्टी, सपा, बसपा, टीडीपी, डीएमके समेत 16 दल शामिल नहीं हुए। विपक्षी दलों की ओर से कई बड़े नाम इस बैठक का हिस्सा बने। इसने भी विपक्ष की एकजुटता तार तार कर दी।

विपक्षी दल की तरफ से एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार, बीजेडी अध्यक्ष नवीन पटनायक,  वाईएसआर कांग्रेस के जगनमोहन रेड्डी, नेशनल कांफ्रेंस के फारुख अब्दुल्ला और सीपीआई (एम) के महासचिव सीताराम येचुरी जैसे नेता ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पर बुलाई बैठक में शामिल होकर अपनी बात रखी। पीएम ने इस पर विचार के लिए समिति बनाने की बात कही। ऐसे एक नही कई मुद्दे हैं जहां विपक्ष एकमत नही है। उसकी राय अलग अलग है।

विपक्षी एकता की कमी का असर संसद के उच्च सदन यानि राज्यसभा में भी खुलकर दिखाई दे रहा है। राज्यसभा में भाजपा अभी बहुमत से दूर है, इसके बावजूद वह विपक्ष की ताकत को खत्म करने में सफल रही है। एनडीए ने उच्च सदन में बहुमत के बिना भी विधेयकों को पारित करने की क्षमता हासिल कर ली है। यह सब विपक्ष में बिखराव के चलते संभव हुआ है। सरकार ने राज्यसभा में अपनी रणनीति में कई बदलाव किए हैं। तटस्थ दलों टीआरएस, बीजद और वाईएसआर को सत्तापक्ष ने अपने पाले में कर लिया है। कांग्रेस, तृणमूल और वामदलों के बीच सदन में कई मुद्दों पर तालमेल नहीं बैठ पा रहा है। इससे सरकार का फायदा हो रहा है। मसलन, तीन तलाक बिल को तृणमूल कांग्रेस चयन समिति को भेजने के पक्ष में तो है, पर राज्य में सियासी नुकसान से बचने को वह इसके खिलाफ वोट नहीं करना चाहती।

राज्यसभा में सरकार एक के बाद एक कई बिल पारित कराने में सफल रही है। विपक्ष का आरोप है कि इनमें से 14 विधेयक ऐसे थे, जो किसी संसदीय समिति के पास नहीं भेजे गए। आरटीआई, तीन तलाक, गैरकानूनी गतिविधियां निवारण संशोधन बिल पर भी विपक्ष की यही तस्वीर सामने आई है।

अभिषेक उपाध्याय

News Reporter
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