तृप्ति रावत/ ममी को लेकर पश्चिमी देशों में तमाम क़िस्से-कहानियां चलती हैं। जिनको लेकर के कई फ़िल्में भी बन चुकी हैं। ममी के बारे में जानने के लिए हमेशा से कई तरह की रिसर्च और खोजबीन चलती रहती है। हाल ही में प्राचीन मिस्र के राजा तूतेनख़ामेन को लेकर एक नई खोज की गई है। जिसके बाद मिस्र के अधिकारियों ने एक चौंकाने वाला खुलासा किया है।
यह सभी को मालूम होगा कि मिस्र के प्राचीन राजा तूतेनख़ामेन की कब्र की खोज के लिए एक दशक तक खुदाई चली थी। उस वक्त हैरी बर्टन नाम के शख्स ने अपने कैमरे में उस नजारे को कैद किया था। हाल ही में उसी नजारे को एक प्रदर्शनी के ज़रिए हैरी बर्टन की ख़ास तस्वीरें फिर से लोगों के सामने रखी गईं है। माना जा रहा है कि 20वीं शताब्दी की ये सबसे उल्लेखनीय पुरातात्विक खोजों में से एक खोज है।
3 हज़ार साल पुराने तूतेनख़ामेन के मकबरे की खोज अपने आप में एक ऐतिहासिक है। इन पलों को कैमरे में कैद कर आने वाली पीढ़ियों के लिए संजोने की ज़िम्मेदारी भी उतनी ही अहम है। ये ज़िम्मेदारी हैरी बर्टन को सौंपी गई। उन्होंने इस महान खोज की 3,400 से ज़्यादा तस्वीरें उतारीं। मिस्र के पुरातत्व-विद हावर्ड कार्टर ने दस साल की मेहनत के बाद ये कामयाबी हासिल की थी। हैरी बर्टन की कई अनदेखी तस्वीरें अब कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में दिखाई जा रही हैं।
प्रोफ़ेसर क्रिस्टीना रिग्स पहली ऐसी शख्स हैं जिन्होंने हैरी की सारी तस्वीरों की स्टडी की है। छपी हुई तस्वीरों, नेगेटिव और रिजेक्ट्स को देखकर उन्होंने कहा कि 1922 में हुई इस महान खोज के कई नए पहलू सामने आए हैं। 1920 के दशक में इस खोज से जुड़ी कई तस्वीरें जारी की गईं, लेकिन इन अनदेखी तस्वीरों से नई जानकारी सामने आई है। प्रोफेसर रिग्स का कहना है कि “इन नई तस्वीरों ने प्राचीन मिस्र,आधुनिक मिस्र और पुरातत्व का नया दृष्टिकोण पेश किया है।” प्रोफ़ेसर रिग्स की ही मदद से तूतेनख़ामेन की तस्वीरों की ये प्रदर्शनी लगाई गई है।
ऊपर दी गई इस तस्वीर को देखकर ऐसा लगता है कि जैसे कि ये तस्वीर उस वक्त का हो जब तूतेनख़ामेन के मकबरे की खोज हुई थी। लेकिन असल में ये तस्वीर खोज के एक साल बाद यानी जनवरी 1924 में ली गई थी। खुदाई करने वाले लोगों ने उस दीवार को गिरा दिया था जो मकबरे के पहले कमरे को क़ब्रगाह से अलग करती थी। कार्टर उसी क़ब्रगाह में झांक रहे थे।
प्रोफ़ेसर रिग्स कहती हैं कि, “ये इस तस्वीर को देखकर हम सोचने लगते हैं कि कार्टर कुछ अद्भुत देख रहे हैं, कोई ऐसी चीज़ जिसमें से चमक निकल रही है।” लेकिन कोई आम इंसान ये नहीं समझ पाता कि ये पूरा दृश्य बनावटी है। कार्टर दरवाज़े के बीच से शाही क़ब्रों को निहार रहे हैं। बर्टन के साथ काम करने वाले लोगों ने तस्वीर लेने से पहले रिफ्लेक्टर लगाए होंगे जिससे कार्टर के पीछे से दी गई रोशनी दोबारा उनके चेहरे पर पड़ रही होगी।”
बता दें कि खुदाई के लिए 100 से ज़्यादा पुरुषों, लड़कों और लड़कियों को लगाया गया था। ऊपर दिख रही तस्वीर 1923 में ली गई थी। उस वक्त कई लोगों ने कड़ी मेहनत करके खुदाई में निकले शाही सामान को छह मील दूर लक्सर शहर पहुंचाया गया। इस क़ीमती सामान को बाद में बड़े पानी वाले जहाज़ के ज़रिए काहिरा के म्यूजियम में पहुंचाया गया। सिर्फ़ इस यात्रा में ही दो दिन लग गए। उस टाइम सूरज की गर्मी भी बढ़ी हुई थी। तापमान 38 डिग्री सेंटीग्रेट से ज़्यादा था।
क़ीमती पत्थरों और ख़ूबसूरत नक्काशीदार कांच से सजे तूतेनख़ामेन के इस सनुहरे मुखौटे को 1925 में बर्टन ने अपने कैमरे में कैद किया था। उन्होंने इस मुखौटे की हर एंगल से 20 से ज़्यादा तस्वीरें ली थीं। खुदाई के दौरान जब ये मुखौटा मिला था, उस वक्त इसपर एक तरह के पदार्थ की मोटी परत थी जिसे निकालने में कार्टर को हफ्तों लग गए थे। ये वो पदार्थ था जो प्राचीन मिस्र में धार्मिक अनुष्ठान के वक्त ममी पर डाला जाता है।
कुछ तस्वीरें आम लोगों को इसलिए नहीं दिखाई गईं क्योंकि उन्हें सिर्फ़ पुरातत्वविदों के लिए लिया गया था। ऊपर दिख रही तस्वीर राजा के ममी वाले रूप की है। ये मुखौटा लकड़ी का है जिसके माथे पर पेंटब्रश का हैंडल लगा हुआ था। इस हैंडल को छिपाने के लिए टेप का इस्तेमाल किया गया। छोटी उम्र के राजा के सिर की तस्वीरें 1960 के दशक तक कहीं भी जारी नहीं की गई थीं। ये पहली बार पेरिस में हुई बड़े तूत-थीम शो में ही दिखाई गईं। इस नेगेटिव से बर्टन के फ़ोटो खींचने के तरीके के बारे में जाना जा सकता है। मकबरे से मिले इस लकड़ी के पलंग की तस्वीर सफ़ेद बैकग्राउंड पर ली गई। साफ़ देखा जा सकता है कि दो लड़के बैकग्राउंड पकड़कर खड़े हैं।
बता दें कि हैरी बर्टन के पिता लकड़ी का काम करते थे। बर्टन ने इटली के फ्लोरेंस में रहते हुए फ़ोटोग्राफी का काम शुरू किया था। वहां उनकी मुलाकात एक अमीर अमरीकी शख्स डेविस से हुई। डेविस मिस्र में खुदाई के लिए फ़ंड किया करते थे। उन्होंने ही बर्टन को न्यूयोर्क के मेट्रोपॉलिटन म्यूज़ियम ऑफ़ आर्ट में लगवाया था। जहां से इन्हें काम के लिए मिस्र भेजा गया।
ऊपर दिख रही हार पहने लड़के की तस्वीर इससे पहले कभी किसी ने नहीं देखी थी। प्रोफ़ेसर रिग्स कहत हैं कि, “आप मिस्र के इस लड़के के चहरे पर मौजूद घबराहट को साफ़ देख सकते हैं। इसे तस्वीर के लिए मकबरे से मिला सोने का भारी हार पहनाया गया था।” कई सालों बाद एक स्थानीय शख्स शेख़ हुसैन अब्द अल-रासुल ने दावा किया कि इस तस्वीर में दिख रहा लड़का वही है। आज इस तस्वीर के कई प्रिंट शेख हुसैन के गेस्ट हाउस में लटके दिखते हैं। प्रोफ़ेसर रिग्स हैरानी जताती हैं कि उस वक्त की तस्वीरों के छह और सात साल की उम्र के बच्चे कठिन परिश्रम करते दिखते हैं।
प्रोफेसर रिग्स कहती हैं, “बहुत कम लोगों को पता है कि तूतेनख़ामेन के मकबरे की खोज को लेकर ब्रिटेन और मिस्र की सरकार के बीच विवाद हो गया था।” वो बताती हैं कि तूतेनख़ामेन के मकबरे की खोज मिस्र की एक बड़ी उपलब्धि थी। मिस्र के पुरातत्वविदों ने ज़ोर दिया कि मकबरे से निकली चीज़ों को मिस्र में ही रहने दिया जाए। लेकिन 1929 में साफ़ हो गया कि संग्रहालय में और किसी की हिस्सेदारी नहीं होगी। इसका मतलब ये था कि बर्टन को अपने काम का पैसा नहीं मिलेगा। इसके बावजूद उन्होंने न्यूयॉर्क के संग्रहालय को कुछ तस्वीरें दे दी थीं।