बीते गुरूवार को असम के दारांग जिले में पुलिस और स्थानीय लोगों के बीच हिंसक झड़प हो गई। अब तक इस झड़प में तीन प्रदर्शनकारियों की मौत होने की खबर है। इस घटना का एक वीडियो सामने आया है जिसमें एक फोटोग्राफर शव के साथ बर्बरता करता दिखाई दे रहा था। ये वीडियो विचलित करने वाला है।
मामला अवैध अतिक्रमण को हटाने का मालूम पड़ता है। जिसमे गुरूवार को कार्रवाई ने हिंसक रूप ले लिया। अब तक तीन लोगों की मौत हो गई है,और कम से कम 5000 लोग बेघर हो गए हैं। असम के मुख्यमंत्री हेमंत सरमा ने एक ट्वीट में कहा, अवैध अतिक्रमण के खिलाफ अपने अभियान को जारी रखते हुए, मैं खुश हूं और दारांग और असम पुलिस के जिला प्रशासन की प्रशंसा करता हूं। जिसने लगभग 4500 बीघा ज़मीन को खाली कर दिया है। 800 घरों को अपने कब्ज़े में कर लिया। 4 अवैध धार्मिक संरचनाओं को ध्वस्त कर दिया और सिपझार में एक निजी संस्थान को भी ध्वस्त कर दिया।
पूरे देश को झकझोर देने वाले इस एक वीडियो ने अधिकारियों को ज़रा सा भी विचलित नहीं किया। हालांकि बाद में बर्बरता करता फोटोग्राफर को गिरफ्तार कर लिया गया है। वीडियो की शुरुआत गांव से बाहर भाग रहे एक व्यक्ति के साथ होती है, जो किसी का पीछा करता है, जब उसे गोली मार दी जाती है और वहां खड़े पुलिसकर्मी बेवजह उसकी पिटाई करते है। जबकि उसे आसानी से काबू में किया जा सकता था, लेकिन यह विचार पुलिस के बड़े समूह के मन में नहीं था। जिन्होंने उसे गोली मार दी और लाठियों से गिरा दिया। उस ग्रामीण का निर्जीव शरीर वहाँ पड़ा था और किसी ने यह जाँचने की जहमत नहीं उठाई कि वह मरा है या जीवित है। बाद में कुछ पुलिस वाले उसे धीरे से ले गए। रिपोर्ट के मुताबिक फोटोग्राफर को तब से गिरफ्तार किया गया है। लेकिन सीआईडी ने गिरफ्तार किया है न कि असम पुलिस ने।
पुलिस और प्रशाशन पर उठते कई सवाल
1. क्या यह बेदखली अभियान एक तरफा है जो बंगाली भाषी नागरिकों को टारगेट कर रहा है?
2. धौलपुर गांव के ग्रामीणों को किस आधार पर अवैध प्रवासी करार दिया गया है? जबकि दशको से हज़ारो की संख्या में ग्रामीण वहां रहते आये है।
3. ग्रामीणों की इतनी बड़ी संख्या को देखते हुए सरकार की पुनर्वास नीति क्या है? जिसमे ग्रामीणों को वैकल्पिक क्षेत्र में शांतिपूर्वक बसाया जाए न कि बलपूर्वक। बातचीत के माध्यम से हिंसा से नहीं। आखिरकार उनके पास वह सब खोने का खतरा है जो उनके पास है जो उनका घर है और आजीविका का उनका आधार है। उनसे विरोध की उम्मीद है लेकिन सरकार की ओर से हिंसा ही एक मात्र विकल्प है ?
4. उस अदने से ग्रामीण को जान से मरने की क्या ज़रूर थी जब उसके पास सिर्फ एक लाठी थी ? उसे गिरफ्तार करने की जगह आतंकिओ जैसा व्यवहार कर मार क्यों गिराया गया ?
5. और अंतत: साशन और प्रशाशन को क्या यह नहीं मालूम कि यह ध्रुवीकरण और अल्पसंख्यकों पर लगातार हमले राज्य के सांप्रदायिक सौहार्द्र को नष्ट कर देंगे ?