लखनऊ, समाजवादी पार्टी (सपा) को स्थापित करने में मुलायम सिंह के साथ जूझने वाले शिवपाल यादव अब सपा से दूर हो गए हैं. ऐसे में चाचा- भतीजे यानी शिवपाल और अखिलेश यादव के बीच छह साल से चल रही जंग अब आमने -सामने के संघर्ष में तब्दील हो गई है. इस संघर्ष में शिवपाल को मिलने वाला सपाइयों का समर्थन समाजवादी पार्टी को नुकसान पहुंचाएगा. भले ही सपा मुखिया अखिलेश यादव अभी अपने पिता मुलायम सिंह यादव को आगे करके शिवपाल समर्थकों को पार्टी में रोक रहने में सफल हो जाएं. परन्तु जैसे ही आजम खान जेल से बाहर आएंगे शिवपाल और आजम खान मिलकर अखिलेश यादव को राजनीति का नया पाठ पढ़ाएंगे.
- चाचा भतीजे की छह साल से चल रही जंग आमने सामने के संघर्ष में तब्दील
- मुलायम के जरिये कितने दिन शिवपाल समर्थकों को सपा में रोक पाएंगे अखिलेश
समाजवादी पार्टी के तमाम नेताओं और राजनीतिक विश्लेषकों का यही मत हैं. इन लोगों के अनुसार, वर्ष 2012 से 2017 के बीच अखिलेश यादव के नेतृत्व को लेकर उठने वाले तमाम सवालों को मुलायम सिंह यादव ने अपने राजनीतिक कौशल के जरिए समाप्त किया था. तब खुद को मुलायम सिंह यादव का राजनीतिक उत्तराधिकारी मानने वाले शिवपाल यादव को भी वे काबू में करने में कामयाब हुए थे. लेकिन तब जो परिस्थितियां थी, वह अब नहीं हैं. बीते छह वर्षों में जिस तरह से अखिलेश यादव संगठन पर अपना प्रभाव बढ़ाया उसके चलते जहां एक तरफ मुलायम सिंह यादव हाशिए पर चले गए. वही दूसरी तरफ शिवपाल सिंह को पार्टी में बार बार अपमानित किया गया. शिवपाल के साथ हुए इस व्यवहार से पार्टी में उनके समर्थक आहत हुए हैं. अखिलेश यादव को भी इसका अहसास हो गया है इसलिए उन्होंने अपने पिता मुलायम सिंह यादव को आगे किया हैं. और मुलायम सिंह ने प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और सपा के बीच लड़ाई की बात कर एक बार फिर राजनीतिक माहौल गरमा दिया है. जिसके चलते शिवपाल से साथ खुलकर खड़े होने वाले सपाइयों के कदम अभी थमें है लेकिन जल्दी ही शिवपाल के समर्थक तमाम सपाई सही वक्त पर शिवपाल सिंह के साथ खड़े हुए दिखेंगे.
लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार गिरीश पांडेय कहते हैं, शिवपाल यादव के साथ सपा के पुराने कार्यकर्ताओं का जुड़ाव रहा है. मुलायम के गढ़ वाले इलाकों में भी शिवपाल की अपनी पकड़ रही है, फिरोजाबाद, मैनपुरी, इटावा, कन्नौज, कानपुर देहात, औरैया से लेकर मऊ, आजमगढ़ अम्बेडकर नगर तक मुलायम परिवार की पैठ रही है. इन सभी जिलों में शिवपाल सिंह यादव की पैठ रही है और इन इलाकों में शिवपाल के समर्थक नेता बड़ी संख्या में सपा में हैं. इन नेताओं की उदासीनता के चलते ही बीते लोकसभा चुनावों में सपा -बसपा के कई प्रत्याशियों की हार हुई थी. फिरोजाबाद में ही अखिलेश यादव के सलाहकार माने जाने वाले रामगोपाल अपने पुत्र को जीता नहीं पाए थे. ऐसे में अब जब शिवपाल सिंह यादव ने घोषित तौर पर अखिलेश यादव की वर्किंग से खफा होकर अपना अलग रास्ता चुन लिया है तो जाहिर है कि सपा के यादव वोट बैंक में शिवपाल व अखिलेश को लेकर साफ बंटवारा होगा. तमाम सपाई जल्दी ही शिवपाल की प्रगतिशील समाज पार्टी (लोहिया) में दिखेंगे. तो सपा के भीतर असंतोष बढ़ेगा. शिवपाल समेत तमाम सपाई सपा की नीतियों और सक्रियता पर सवाल उठाते हुए अखिलेश यादव को घेरेंगे.
फिलहाल अखिलेश यादव पर साथियों और परिवार को जोड़कर रखने में नाकाम रहने का आरोप लग रहा है. ऐसे आरोप सपा मुखिया अखिलेश यादव के लिए खतरनाक साबित होंगे. जिसका संज्ञान लेते हुए ही बीते शुक्रवार मुलायम सिंह यादव ने बयान देकर लोगों को संदेश देने की कोशिश की है कि यह वक्त इस पार या उस पार रहने का है. अगर किसी और ठिकाने की तरफ गए तो वह पतन का कारण बनेगा. ऐसे में अगर कोई वोट बैंक सपा से छिटकता है तो पार्टी कमजोर होगी. फायदा भाजपा को होगा. मुलायम इसे अपनी तरह से कार्यकर्ताओं को समझाते दिख रहे हैं. लेकिन सवाल यह है कि भाजपा का डर दिखाकर मुलायम सिंह और अखिलेश यादव कितने समय तक शिवपाल के समर्थक सपाइयों को पार्टी में रोक पाएंगे. सपा मुख्यालय में पार्टी नेता इस सवाल पर अब जमकर माथापच्ची कर रहे हैं.