जिस काला नमक चावल से बनी खीर खाकर गौतम बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद अपना उपवास तोड़ा था, वही काला नमक चावल अब अपने ही घर में अपना अस्तित्व खो रहा है। काला नमक धान की पहचान बुद्ध काल से है। बढ़ती महंगाई कम उत्पादन, मजदूर न मिलने की वजह से किसानों का रुझान इस धान की तरफ से खत्म होता जा रहा है।
महायोगी गोरखनाथ कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. विवेक प्रताप सिंह बताते हैं कि सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयासों से कालानमक को नई पहचान मिलने से कृषकों में काफी उत्साह है। जब से कालानमक चावल को एक जनपद एक उत्पाद के रूप में गोरखपुर को शामिल किया गया है तब से कृषकों को पुनः एक बार फिर आशा की किरण दिखी है और कृषक इस मौके को छोड़ना नही चाहते हैं। कृषकों का एक बड़ा समूह इसके उत्पादन एवं विपणन हेतु एक संगठन बना कर कार्य करने जा रहा है। डॉ. सिंह बताते हैं कि निकट भविष्य में श्री गोरखनाथ कृषक मलउर उत्पादक संगठन द्वारा काला नमक चावल को पुनः देश स्तर पर उत्पादित करके ले जाया जाएगा। यह उत्पादक संगठन काला नमक उत्पादन के क्षेत्र में एक अग्रणी भूमिका निभाएगा। महायोगी गोरखनाथ कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा इस उत्पादक संगठन का गठन कराया गया है यह संगठन काला नमक चावल उत्पादन के नाम से जाना जाएगा। इससे जुड़े कृषको द्वारा शुद्ध काला नमक चावल उत्पादन किया जाएगा एवं इसकी मार्केटिंग देश विदेश स्तर पर किया जाएगा। गोरखपुर को कालानमक के लिए शामिल किया गया है क्योंकि यहा की जलवायु काला नमक चावल उत्पादन के लिए बहुत ही मुफीद है और यह बहुत पहले से कालानमक की खेती होती रही है। संगठन के निदेशक विष्णु प्रताप सिंह बताते है कि इस संगठन का मुख्य उद्देश्य कालानमक चावल और बीज उत्पादन से है और वह इस काला नमक चावल को संगठन के माध्यम से उत्पादित कराकर देश विदेश तक पहुंचाना चाहते हैं।